विवेक कुमार 26 फरवरी की सुबह-सुबह शाहदरा, दिल्ली से विधि का व्हाट्सऐप मैसेज आया जिसमे एक भारतीय लडक़ा कह रहा है कि हम यहाँ खारकीव यूक्रेन में फंसे हुए हैं और दीदी इस विडिओ को एनडीटीवी पर भेज कर या कैसे भी करके वायरल करवाओ, कुछ ही घंटों के बाद देखा तो विडिओ वायरल हो चुका था।
विधि मेरे अजीज दोस्त सुधीर वत्स की बड़ी बेटी है। विधि की छोटी बहन वंशिका यूक्रेन के वी.एन.खजारियाँ मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस अंतिम सेमिस्टर की छात्रा है, और वीडियो वंशिका ने ही अपने दोस्त नदीम के साथ शूट किया था। वंशिका भारत सरकार की कृपा से यूक्रेन और रूस की लड़ाई में हजारों भारतीयों की तरह फंस चुकी है। 28 फरवरी को किसी तरह वंशिका और उसके दोस्तों से बात होने पर यूक्रेन में भारतीय छात्रों की परेशानियों और सरकार के प्रयासों के जो हालात मालूम पड़े उसे पाठक इस रिपोर्ट के माध्यम से समझ सकते हैं।
वंशिका ने बताया कि वह और उसके तीन दोस्त खारकीव के किसी बंकर में छुपे हुए हैं और खाने-पीने का सारा सामान खत्म हो चुका है। किसी तरह कुछ यूक्रेनी नागरिक सुबह के वक्त दूध और ब्रेड दे जाते हैं जिससे कि एक वक्त का खाने के लिए मिल जाता है। अब वे इंतजार कर रहे हैं कि भारत सरकार उनको इस मुसीबत से निकाले।
दरअसल इस मुसीबत में वंशिका और उस जैसे हजारों छात्र फंसे ही भारत सरकार की उदासीनता और नालायकी के कारण हैं। वंशिका के दोस्त नदीम ने फोन पर बताया कि 15 फरवरी को भारत सरकार की तरफ से हिदायत दी गई कि जल्द से जल्द वे यूक्रेन से निकल जाएँ। इस हिदायत के बावजूद बच्चों पर यूक्रेन से न निकलने का ठीकरा गोदी मीडिया के द्वारा फोड़ा जा रहा है जबकि सच्चाई यह है कि यूक्रेन का एयर स्पेस बंद किया जा चुका था तो बच्चे यूक्रेन से किस माध्यम से भारत आते। इस बात को लेकर बच्चों और उनके परिजनों ने यूक्रेन में भारतीय दूतावास से संपर्क साधा पर दूतावास ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया।
इसके बाद 19 फरवरी को भारतीय दूतावास ने यूक्रेन इंटरनेशनल फ्लाइट से भारतीयों को निकालने की अपील जारी की जिसकी टिकट लगभग 90 हजार रुपये की थी जो कि आम दिनों में 35 हजार के करीब होती थी। ज्यादातर बच्चों के पास इतनी बड़ी रकम उपलब्ध नहीं थी। वंंशिका और उसके दोस्तों को 27 फरवरी के आपदा में अवसर तलाशती एयर इंडिया की टिकट 66 हजार की मिली जो कभी टेक ऑफ ही नहीं कर सकी।
24 फरवरी को अपने ही रूसी देशवासियों के लिए काल बने बैठे पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दिया और अब जो भारतीय छात्र जहां फंसे थे वहीं फंसे रह गए। वंशिका और उसके दोस्त भी बंकर में छुपे रहे। इस बीच दूतावास से मदद के नाम पर जो हेल्प लाइन नंबर जारी किये गए वे किसी टेलीकॉम कंपनी के कस्टमर केयर ऑपरेटर से अधिक समझदार नहीं लग रहे थे। या तो वे फोन उठाते ही नहीं या उठाते हैं तो एक ही घिसा-पिटा जवाब देते कि जहां हैं वहीं बने रहे। भारत सरकार की बच्चों को युद्धक्षेत्र से निकालने की क्या तैयारी है इसपर उनके पास जवाब के नाम पर कुछ नहीं है । जो जहां है वो वहीं रहे, पर खाए क्या और पीये क्या इसका कोई जवाब ही नहीं, न बंदोबस्त।
वंशिका और उसके तीन दोस्तों को पता चला की भारत सरकार ने रेलवे स्टेशन पर भारतीय छात्रों को पहुंचने के लिए संदेश भिजवाया है। तमाम बच्चे स्टेशन पर पहुंचे पर दूतावास से कोई प्रतिनिधि नहीं मिला। बच्चे जो किसी तरह स्टेशन आए थे जान बचा कर वापस अपने बँकरों में छुपने को मजबूर हो गए। वंशिका ने तय किया कि बंकर में भूख से मरने से अच्छा है कि बॉर्डर की तरफ जाने के प्रयास में मारे जाएँ। अपने साथ रखे कच्चे राशन को वहीं छोड़ कर सिर्फ सूखे फलों के भरोसे चारों दोस्तों ने बिल्डिंग के बंकर को 28 फरवरी की दोपहर 1 बजे छोडक़र मेट्रो रेल के बंकर में शरण ली और थोडे ही वक्त के बाद रेलवे स्टेशन की तरफ भागे। बंकर छोडऩे के कुछ ही मिनट के बाद एक मिसाइल ने उस बंकर को तबाह कर दिया जिसमे वंशिका अपने तीन दोस्तों के साथ कुछ देर पहले तक छुपी हुई थी।
चारों तरफ होती बमबारी के आतंक से घबराए बच्चों को जो भी पहली ट्रेन मिली उसमे किसी तरह दाखिल हो गए। दिन भर भीड़ से ठसाठस ट्रेन में सफर करके रात 1 बजे ट्रेन लीविव पहुंची जहां से हंगरी देश की सीमा करीब 75 किलोमीटर है। लीविव पहुँच कर देखा तो भारत सरकार की कोई मदद नहीं थी। जबकि पाकिस्तान सरकार की तरफ से एक बस खड़ी थी जिसके पास यहाँ तक की अपडेट थी कि उसके बच्चे कहाँ तक आ गए और कितने लडक़े कितनी लड़कियां इस बस में लेकर वे बॉर्डर के लिए निकलेंगे। वहीं भारत सरकार का दूतावास हेल्पलाइन जारी करके सोया पड़ा मालूम होता था। किसी भी स्तर पर भारत सरकार की अप्रोच प्रोफेशनल की नहीं दिखी, वंशिका ने बताया।
पाकिस्तानी दूतावास के कर्मचारियों ने वंशिका और उसके दोस्तों को भी अपनी बस में बैठाने का बंदोबस्त किया और साथ ही बिरयानी तक खिलाई। जिस पाकिस्तान को हम पानी पी-पी कर कोसतेे हैं उसने इस मुसीबत में साथ देकर हमें आत्मग्लानि से भर दिया, वंशिका की दोस्त दिव्या ने कहा। इन सबके बीच विधि जो वंशिका की बड़ी बहन है उसे लगता है कि पापा मम्मी ज्यादा परेशान न हों इसलिए वंशिका ने खाने पीने को लेकर झूठ बोला कि यूक्रेन के लोग खाना दे रहे हैं जबकि खुद यूक्रेन के लोगों के पास खाना नहीं है। एक-दूसरे की फिक्र करने वाले अक्सर ऐसा करते हैं।
भारत सरकार जो भाषणों में नागरिकों के लिए चाँद-तारे तोड़ लाने तक के दावे कर देती है, उसके पास फिक्र के नाम पर अपने नागरिकों के लिए केवल हेल्प लाइन नंबर है जो उठता नहीं। भाजपा समर्थित आईटी सेल व अपने नेताओं के माध्यम से वहाँ फंसे छात्रों को निकम्मा और बेकार साबित करने का प्रोपोगैंडा भी भाजपा द्वारा फैलाया जा रहा है। कूटनीतिक स्तर पर भारत सरकार की अक्षमता की पुष्टि यूक्रेन की सीमाओं पर भारतीयों को देश में दाखिल न होने देने की खबरों ने की। मीडिया की खबरों में हमने छात्रों को कहते देखा-सुना कि बॉर्डर पर भारतीयों को छोडक़र अन्य सभी को जाने दिया जा रहा है। यहाँ तक कि कुछ भारतीयों के साथ यूक्रेन के सुरक्षाबलों ने मारपीट भी की।
प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर अटल बिहारी तक की सुरक्षा में उच्च पद पर काबिज रहे भूतपूर्व आईपीएस वी एन राय की बात एक्सपर्ट एडवाइस के तौर पर मानें तो, “इन सभी घटनाओं के पीछे का कारण भारत सरकार की कूटनीतिक और पेशेवर स्तर पर विफलता है। श्री राय ने बताया कि एशियाई देशों से अलग यूरोप के देशों में ऐसा नहीं होता कि आप कोई जुगाड़ भिड़ा कर सीमा पार कर लें। यदि भारत सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर रोमानिया, हंगरी, पोलैंड और अन्य देशों से भारतीय दूतावास के माध्यम से बात कर व्यवस्थाओं को सुनिश्चित किया होता तो बेशक भारतीय बच्चों को रात सीमा पर खुले आसमान के नीचे -2 डिग्री में नहीं काटनी पड़ती। वीएन राय ने बताया कि 20 वर्ष पहले तक जब भी प्रधानमंत्री विदेश जाते थे तो दूतावास की क्षमता को चार गुना तक बढ़ा दिया जाता था। यूक्रेन जैसी स्थिति में भी ऐसा ही करने की जरूरत थी न कि चार मंत्रियों को पड़ोसी देशों में भेजकर मोदी जिंदाबाद करवाने में जितना प्रयास भारत सरकार ने यूक्रेन के मसले को चुनाव प्रचार और मोदीपुराण बनाने में किया है उसका आधा भी अगर दूतावास की क्षमता को दोगुना करने और कूटनीतिक प्रयास में लगाया होता तो पिक्चर कुछ और ही होती। सुरक्षाकर्मी ने मारपीट की क्योंकि उसके पास भारतीयों को जाने देने के निर्देश नहीं हैं जिनका पालन वह कर रहा है। इसी तरह जान बचाने के लिए बच्चे सीमा पर जाने का प्रयास करेंगे ही जो मारपीट होना तय है। इसे अब फूल देकर नहीं रोका जा सकता। शांत क्षेत्र तक से अपने नागरिकों को न लेने आ सकने वाली सरकार दावा कर रही है कि उसने छात्रों का सफल निकास किया जबकि युद्ध क्षेत्र से बच्चे स्वयं अपनी ही जान जोखिम में डाल कर निकले। कुछ पैदल, कुछ बस से और कुछ अब तक नहीं निकल सके, सरकार ने केवल एड्वाइसरी जारी की कि अब खीव खाली कर दो चाहे जैसे, और अब खारकीव को खाली कर दो पर कैसे इसका कोई जवाब नहीं।
इस सब के बीच वंशिका और उसके दोस्तों को ले जाने वाली पाकिस्तानी बस हंगरी न जाकर रोमानिया की सीमा पर गई और वंशिका और उसके दोस्तों ने किसी तरह रोमानिया बॉर्डर पार करके फिलहाल सीमा पर शरण ली हुई है। इंतजार है कि कब भारत सरकार का प्रचार वाला जहाज उन्हे उठा कर मोदी जिन्दाबाद के नारे लगवाता हुआ उनके भारत देश महान में ले आए।