ये पब्लिक है,ये सब जानती है

ये पब्लिक है,ये सब जानती है
January 31 01:36 2023

विष्णु नागर
हम इसे लोकतंत्र कहते और मानते हैं मगर कारपोरेट घराने इन लोकतंत्रिक दलों को पिछले चार साल में ही 10700 करोड़ दे चुके हैं और इसका 57 प्रतिशत केवल भाजपा को मिला है तो बताइए ये नीतियां किसके लिए बनाएंगे? इन्हें करीब 11 हजार करोड़ देनेवालों के लिए या आपके- हमारे लिए? हमारे लिए लव जिहाद, धर्मांतरण, राममंदिर आदि रहेगा और इनके लिए कारपोरेट की कमाई के दरवाजे चौपट खुले रहेंगे। हमारे लिए नफऱत के दरवाजे खुले रहेंगे, इनके लिए अकूत धन कमाने के द्वार!

सरकार आज इनके लिए सबकुछ करती है। सरकार का मुखिया फोन करके पड़ोसी देश के मुखिया को फोन करता है कि हमारे खासमखास सेठ जी को फलां ठेका दे दीजिए। बाद में लीपापोती की जाती है मगर ये पब्लिक है,ये सब जानती है। केवल नेता ही समझदार नहीं है, इन्होंने अपनी धूर्तताओं, चालाकियों, झूठों से जनता की समझ भी काफी बढ़ा दी है।जो किसी खास कारपोरेट के हित के लिए विदेशी सरकार से सिफारिश कर सकते हैं,वे खुद जो कर सकते हैं,वह क्यों नहीं करेंगे?और एक हद तक इनके निर्णयों से यह बात स्पष्ट भी है। अडाणी की संपत्ति 2014 के बाद कितनी बढ़ी है,यह इसी से जाहिर है।

और हमसे भाजपा कहती है कि हमने चुनावी बांड योजना पारदर्शिता के लिए शुरू की है। ये कैसी पारदर्शिता है? ऐसी पारदर्शिता की पता ही नहीं चलता कि जिन कारपोरेटों के हित साधे जा रहे हैं, उसका चुनावी बांड के नाम पर दी गई राशि से कितना और कैसा संबंध है? जिनके असली मालिक कारपोरेट हैं,जनता की क्यों सुनेंगे?

उन्हें अपनी आलोचना क्यों पसंद आएगी? वे क्यों लोकतांत्रिक आजादियों को बरकरार रखना चाहेंगे? इनका दमन क्यों नहीं करेंगे? नकली राष्ट्रवाद की आड़ में कारपोरेटों की ताकत इतनी क्यों नहीं बढ़ाएंगे कि सोशल मीडिया तक पर इनका कब्जा पूरी तरह हो जाए?

और विपक्ष भी जोरदार ढंग से क्यों बोलेगा? उसे भी तो कम ही सही मगर इन कारपोरेट से कुछ तो मिल रहा है!कल अधिक भी मिल सकता है!
राहुल गांधी बोलते तो हैं अडाणी -अंबानी के खिलाफ, कारपोरेट घरानों के विरुद्ध मगर कांग्रेस को भी कारपोरेट की ओर से दस फीसदी धन मिला है। उसकी राज्य सरकारों का आचरण भी कारपोरेट हितों के पक्ष में जाता है।यही नहीं अडाणी का काम न पश्चिम बंगाल में रुकता है,न केरल में।कभी आम आदमी पार्टी को सत्ता में आने के बावजूद पहले पार्टी -फंड का सख्त अभाव झेलना पड़ रहा था,अब वह भी मजे में है। किसी को चुनावी बांड से खास शिकायत नहीं।

इसलिए ज्यादातर लोकतंत्र के नाम पर इधर से और उधर से नाटकबाजी चलती रहती है। राहुल गांधी अपनी भारत यात्रा के समापन के करीब पहुंच रहे हैं, वे यह घोषणा क्यों नहीं करते कि हमारी पार्टी को जब जनता इतना समर्थन दे रही है तो हम चुनावी बांड से पैसा नहीं लेंगे।लोग अगर एक रुपया भी देंगे तो उसकी रसीद देंगे,पूरी पारदर्शिता बरतेंगे। जनता की बात,नफऱत का विरोध और कारपोरेट घरानों की फंडिंग साथ साथ नहीं चल सकेंगे। कारपोरेट से दूर रखने की हिम्मत दिखाए बगैर सारी राजनीति नाटक से आगे नहीं बढ़ पाएगी।

आजादी मिलने के बाद भी तो दल लोगों से चंदा लेते थे,अब भी लें वरना कारपोरेट मजबूत होते रहेंगे और साधारण वोटर अशक्त होता रहेगा।उसे मंदिर- मस्जिद ही मिलेगा।झूठे आंकड़े विकास की गंगा बहती रहेगी,मोदी जी देशसेवक, राष्ट्र उद्धारक, भगवान विष्णु का अवतार बताए जाते रहेंगे। लोगों को उल्लू बनाना जारी रहेगा। जयश्री राम और भारत माता की जय करके लोगों को अफीम खिलाई जाती रहेगी। सांप्रदायिकता की अफीम खाकर भूखी जनता मदमस्त रहेगी।

 

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Mazdoor Morcha
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