“वाह भाई वाह, कमाल की खबर है!” “कोई ख़ास बात है, क्या?” “बिलकुल, ख़ासम-ख़ास” “हम भी तो जानें” “छपा है कि, चालू साल में यात्रियों के दबाववाले मार्गौं में करीब 150 प्राइवेट ट्रेनें चलाई जाएँगी” “यह तो अच्छी ख़बर है , सोचो, सुविधा बढ़ेगी, मुसाफिऱोँ की भीड़ घटेगी.” “हांँ ये बात तो है , आगे लिखा है कि, किराया भले ही 15 से 25 परसेंट महँगा होगा, लेकिन वायु-सेवा जैसी सुविधा और समय की गारंटी होगी” “वाह ये तो सोने में सुहागा जैसा है, और भी कुछ है?” “बहुत कुछ है , जैसें परिचालन में कोई दिक्कत न हो इसलिए , रेलवे के गार्ड और लोको पायलट होगे , मरम्मत और आपातकालीन सेवा का जिम्मा भी रेलवे का होगा और टिकिट की बुकिंग भी रेलवे करेगी.” “यह तो और भी अच्छी बात है , एक तो सुरक्षा की दृष्टि से कहीं कोई झोल नहीं होगा और दूसरे किसी की नौकरी पर कोई ख़तरा नहीं होगा” “बिलकुल , बड़ी बारीकी से योजना बनाई गई है, सबका ख्याल रखा गया है लेकिन एक बात समझ में नहीं आई” “वह क्या?” “अरे भाई , डिब्बा , इंजन का कारख़ाना रेलवे का , प्लेटफ़ॉर्म रेलवे का, पटरी रेलवे की , सुचारू परिचालन , देखरेख का जिम्मा रेलवे और रेलवे कर्मियो का , जब सब काम रेलवे ही करेगा तो फिर…” “बस-बस, रहने दो , आगे जो कहोगे मुझे मालूम है , यहीं न कि , निजी ट्रेन चलने की ज़रूरत क्या है ? रेलवे ख़ुद क्यों नही चला लेता या मोटा मुनाफ़ा किसके खाते जायेगा वगैरह-वगैरह” “हांँ यही सब कहने जा रहा था” “अरे भाई , योजना बनानेवाले इतने घामड़ नहीं होंगे , बहुत सोच समझ कर स्कीम बनाई होगी , ताकि सबका ज़्यादा-से-ज़्यादा भला हो ! और फिर हमें, तुम्हें कौन-सा इन ट्रेनों में चलना है , जो अपना दिमाग़ खपाये कि किराया महँगा होगा या सस्ता , रेलगाड़ी कौन चलाएगा ? मुनाफ़ा कौन कटेगा?””हांँ ये तो है “ “तो फिर चलो , कहीं ठेले की फ़ाइव स्टार चाय पीते है.”
-जावेद उस्मानी