कैसे हो? कहाँ हो? हो भी कि अब नहीं ही हो? बहुत दिन हो गए, तुम्हारा कोई समाचार नहीं मिला?. चिंता होने लगी. ऐसे भी कोई ख़बर से गायब होता है क्या? बताओ तो! कितनी हसरत से हम तुम्हें देखा करते थे. तब हर दिन तुम्हारे बारे में कुछ-न-कुछ बातों का पता मिल जाता था. तुमने हमारे इतने पैसे रख रखे हैं, और इस तेजी से तुम्हारे पास जमा रकम बढ़ रही है! हमारी भावनाएँ यह सब जानकर हिलोरे लेने लगती थीं. हम तुम्हारे बारे में सुनकर किसी के प्रति घृणा से भर जाते थे, किसी से प्रेम करने लगते थे. कभी ओज, कभी क्रोध, कभी करुणा, कभी निर्वेद; सारे भाव के आधार तुम बन गए थे. कह सकता हूँ कि तुम ही हमारे नीरस जीवन में रस की निष्पत्ति करते थे. तुम्हारे बारे में पढ़-सुनकर मन रोमांचित हो जाता था. एक दिन तो यह पता चला कि तुमसे हम अपना जमा वापस ले लेंगे और आपस में बाँट लेंगे. ओह, उस क्षण की कल्पना ही कितना सुख देती है! तुम हमारी हालत नहीं समझ सकते. कम-से-कम ऐसी कल्पना से हमें दूर मत किया करो. अपने बारे में कुछ-न-कुछ बताते रहा करो. मुझे पता है कि तुम हमसे अब कुछ नाराज़ हो. हमने तुम्हारा स्वदेशी संस्करण तैयार कर लिया है; लेकिन इसमें नाराज़ होने की क्या बात है? कोई चोरी-छिपे तो किया नहीं! ‘मेड इन इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’, ‘वोकल फोर लोकल’- जैसे नारे हमने खुलकर लगाए हैं! इसके बाद ही अपना स्वदेशी स्विस बैंक तैयार किया है. हम जो करते हैं, वह डंके की चोट पर करते हैं. वह छिप-छिपाकर करनेवाला जमाना गया! इस अमृत काल में भ्रष्टाचार भी अमृतमय है. इसलिए तुम्हें हैरान होने की आवश्यकता नहीं. मुझे पता है, तुममें जमा काला धन अब गए बीते दिनों की बात हो गया, तुम श्रीहीन हो गए. होना ही था! फिर भी ऐसा नहीं है कि हम तुम्हारी सुधि लेना छोड़ दें. हम आज भी तुम्हारा सम्मान करते हैं. खाता छिपाने की तुम्हारी विधि सदा से प्रशंसनीय है. हम भी उसी कोशिश में लगे हैं. इस तरह देखो, तो तुम्हारा महत्त्व कभी कम नहीं हुआ. हमें ऐसे ही रास्ता बताते रहो. और कभी-कभी अपना समाचार देते रहा करो. तुम्हारी ओर चकोर की तरह टकटकी लगाए रखनेवाला पुराना प्रेमी
-एक भारतीय नागरिक, अस्मुरारी नंदन मिश्र