फरीदाबाद (मज़दर मोर्चा)। कर्ज में डूबी आरएस इंजीनियरिंग वर्क्स को कर्जदाता कंपनी पेगसस एसेट्स रीकंस्ट्रक्शन प्रा. लि. ने एक दिन में फैक्ट्री खाली करने का रिकवरी नोटिस भेज दिया। पीडि़त पक्ष ने चंडीगढ़ स्थित ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी-2) की शरण ली तो न्यायाधिकरण ने नोटिस को अव्यवहारिक करार देते हुए स्थगन आदेश जारी कर दिया।
जानकारी के अनुसार आरएस इंजीनियरिंग नाम की कंपनी ने कर्ज लिया था। कंपनी को 31 अक्तूबर तक पेगसस एसेट्स को 12.10 लाख रुपये चुकाने थे। इसके विपरीत पेगसस प्रबंधन ने 27 अक्तूबर को कंपनी को एक रिकवरी नोटिस जारी किया। इसमें निर्धारित 12.10 लाख रुपये की जगह 16 लाख रुपये 28 अक्तूबर तक जमा कराने को कहा गया था। जमा न कराने की सूरत में पेगसस 28 अक्तूबर को ही फैक्ट्री पर कब्जा कर लेगी।
इस आदेश के खिलाफ कंपनी प्रबंधन डीआरटी-2 गया। केस की सुनवाई कर रहे पीठासीन अधिकारी एमएम ढोंचक ने पेगसस के नोटिस को सिक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एन्फोर्समेंट और सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट 2002 की धारा 17 (1) के तहत गलत करार दिया। पीठासीन अधिकारी का कहना था कि पेगसस ने बहुत ही कम समय सीमा का नोटिस जारी किया है जिसका पालन करने में कोई भी खुद को असहाय महसूस करेगा। पेगसस की इस तरह की कार्रवाई को न्यायाधिकरण चुपचाप आंख बंद नहीं स्वीकार कर सकता। ऐसे हालात में प्रतिभूित संपत्ति पर कब्जा किया जाना किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता, इसलिए न्यायाधिकरण इस कार्रवाई को स्थगित करता है। कंपनी पर कब्जा न किया जा सके इसके लिए न्यायाधिकरण ने फरीदाबाद के डिस्ट्रक्ट मजिस्ट्रेट को ईमेल से सूचना भेजी है ताकि वह उन अधिकारियों को रोक सकें जिन्हें उन्होंने कब्जा दिलाने के लिए तैनात किया था। साथ ही डीसीपी एनआईटी को भी इस आदेश का पालन कराने के लिए सारन थाने को आदेश देने को कहा गया।
न्याय होना ही पर्याप्त नहीं न्याय होता भी दिखना चाहिए, जो इस मामले में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। यही आदेश यदि दो चार दिन बाद जारी किया जाता और इस बीच गिद्ध दृष्टि वाली कंपनी जायदाद कब्जा लेती तो फिर गरीब कर्जदार के लिए बड़ा भारी संकट पैदा होना निश्चित था, यदि इसी तरह त्वरित न्याय जनता को मिलने लगे तो न्यायपालिका की साख काफी बढ़ सकती है।