मज़दूर मोर्चा ब्यूरो राज्य विजिलेंस (एसवीबी) बीते एक माह में दो एचसीएस अधिकारियों को रिश्वतखोरी में गिरफ्तार करके नौकरशाही में हंगामा खड़ा कर दिया। सरकारी कायदे कानूनों के अनुसार तो इतने बड़े अधिकारियों को पकडऩे से पहले सरकार से स्वीकृति लेनी अनिवार्य होती है। सर्वविदित है कि इतने बड़े अधिकारी आम तौर पर खुद अपने हाथ से रिश्वत की रकम नहीं पकड़ते। इसके लिये वे अपने प्यादों का इस्तेमाल करते हैं। एसवीबी प्रमुख कपूर ने इन्हीं प्यादों को पकड़ कर, उनको सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करके असली रिश्वतखोर अफसरों को धर दबोचा।
दोनों ही अधिकारी (एसडीएम अमरिन्दर सिंह, डिप्टी सेक्रेटरी एचपीएससी अनिल नागर)2019 में इस पद के लिये चयनित हुए थे। इन अधिकारियों को चुनने वाले आयोग में व्याप्त अथाह भ्रष्टाचार ने साबित कर दिया है कि चयनित होने के लिये अभ्यार्थियों को करोड़ों रुपये की रिश्वत देनी पड़ती है। विदित है कि चयनित होने वाले इन अफसरों को मासिक 60-70 हजार से अधिक वेतन नहीं मिलता। इस वेतन से तो नौकरी पाने के लिये खर्च किये गये करोड़ों रुपये का ब्याज भी वसूल नहीं हो सकता। जाहिर है कि खर्च की गई रकम को ब्याज सहित वसूल करने के लिये बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी करना उनकी ‘मजबूरी’ बन जाती है। ऐसा भी नहीं है कि ये अफसर कहीं भी तैनात होने पर मोटी लूट कमाई कर सकते हैं। इसके लिये उन्हें अच्छी मलाईदार तैनाती पाने के लिये हर तरह की जुगाड़बाज़ी करनी पड़ती है। तैनाती पाने के बाद उन्हें उच्चाधिकारियों व राजनेताओं को भी लूट में से हिस्सा देना पड़ता है।
इस लूट कमाई के बल पर ही काले धन की समानान्तर अर्थव्यवस्था पनपती है। देश की सारी चुनावी राजनीति इसी काली अर्थ व्यवस्था के दम पर ही चलती है। इसी के दम पर चुनाव जीतने के लिये हर कोई बेतहाशा धन खर्च करता है। जब कपूर जैसे अधिकारी काली अर्थव्यवस्था चलाने वाले इन पायों को कुचलने लगेंगे तो इस काली अर्थव्यवस्था का क्या होगा? सर्वविदित है कि काली कमाई करने वाला हर अफसर अपने सिर पर बड़े अफसरों व राजनेताओं का हाथ रखकर चलता है। इसी के चलते वह बेखौफ होकर लूट कमाई करता है। जाहिर है कि जब लूट कमाई करने वाले अफसरों पर इस तरह से गाज गिरने लगेगी तो सारा राजनीतिक ताना-बाना ही प्रभावित होगा। ऐसे में इन लोगों द्वारा सरकार पर दबाव बनाना स्वाभाविक है। इस दबाव के चलते ही हो सकता है कि शत्रुजीत कपूर समझौता कर लें या सरकार उनको कोई और नया काम सौंप दिया जाय। विदित है कि यह महकमा सीधे खट्टर के आधीन है।