विज्ञापन घोटाला : निगम सचिव की रिपोर्ट खारिज कराने के लिए गठित की गई निचली रैंक की कमेटी

विज्ञापन घोटाला : निगम सचिव की रिपोर्ट खारिज कराने के लिए गठित की गई निचली रैंक की कमेटी
March 10 08:30 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) नगर निगम के हितों को दरकिनार करते हुए विज्ञापन के नाम पर 7 करोड़ 22 लाख रुपयों से अधिक की बंदरबांट करने के दोषी अधिकारियों को बचाने के पैंतरे निगम में शुरू हो गए हैं। घोटाला उजागर करने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कराने की सिफारिश वाली निगम सचिव जयदीप की रिपोर्ट की भी जांच कराने का हास्यास्पद और विवादास्पद निर्णय निगम आयुक्त मोना ए श्रीनिवास ने लिया है। हास्यास्पद ये, कि निगम सचिव जैसे उच्च पद के अधिकारी की रिपोर्ट की जांच उससे निचली रैंक के अधिकारियों मुख्य अभियंता, वित्त आयुक्त और सहायक जिला न्यायवादी से कराई जाएगी। विवादास्पद इसलिए, कि निगम सचिव की रिपोर्ट में जिला न्यायवादी कार्यालय को भी दोषी ठहराया गया है, यानी चोरी की तफ्तीश खुद चोर करेगा।

शहर भर में विज्ञापनों के जरिए अवैध कमाई और अधिकारियों के बीच बंदरबांट के समाचार लगातार प्रकाशित होने पर तत्कालीन निगम आयुक्त जीतेंद्र दहिया ने जुलाई 2023 में निगम सचिव जयदीप से मामले की जांच कराई थी। निगम सूत्रों के अनुसार जांच में बहुत ही गंभीर खामियां पाई गईं। इनमें पहली कमी ये थी कि विज्ञापन का ठेका जारी करने, आवंटन, शुल्क लेनदेन आदि सारे काम ऑनलाइन किए जाने थे। इससे संबंधित सॉफ्टवेयर बनाने और एक साल तक तकनीकी सपोर्ट देने का काम दिल्ली की डीएमएमआईटी नामक कंपनी को दिया गया था लेकिन एक साल की सपोर्ट वाली शर्त ही समाप्त कर दी गई। तत्कालीन कार्यकारी अभियंता (विज्ञापन) ओमबीर सिंह ने ठेका अनुबंध में जानबूझ कर 104 जगहों से नगर निगम का नाम हटवा दिया।

नतीजा ये हुआ कि विज्ञापन अनुबंध अब ठेका कंपनी और कार्यकारी अभियंता के बीच हुआ, यानी कोई गड़बड़ी होने पर नगर निगम न्यायालय में वाद दर्ज कराने का अधिकारी ही नहीं रहा। एक्सईएन ओमबीर ने एनआईटी जोन और ओल्ड फरीदाबाद जोन के विज्ञापन के लिए मेसर्स स्क्वायर आउटडोर लिमिटेड और मेसर्स श्री श्याम नाम की कंपनियों के साथ अनुबंध किया। बल्लबगढ़ जोन में तो और भी बड़ा खेल किया गया। यहां गड़बडिय़ों के कारण मेसर्स ग्लोबल एडवरटाइजमेंट इंडिया नाम की कंपनी को अयोग्य करार दे दिया गया था लेकिन बाद में उसे ही ठेका दे दिया गया।

इन कंपनियों को निर्धारित स्थान पर ही अनुबंध में बताई गई संख्या में ही गैंट्री और यूनिपोल पर विज्ञापन करना था। जांच में यह भी सामने आया कि इन कंपनियों ने निर्धारित स्थानों की जगह अधिक आय वाले प्रमुख स्थानों पर विज्ञापन लगाकर मोटी कमाई की जिसका नुकसान राजस्व नहीं मिलने से निगम को हुआ। यही नहीं, इन कंपनियों ने तय संख्या से कहीं अधिक विज्ञापन लगाकर 16 महीनों तक खूब कमाई की। निगम सूत्रों के अनुसार जो यूनीपोल और गैंट्री लगाने का ठेका दिया गया था केवल उन्हीं में हेराफेरी कर निगम को 7 करोड़ 22 लाख रुपयों का नुकसान पहुंचाया गया। इनके अलावा जो विज्ञापन अवैध रूप से लगाए गए उनकी कमाई तो कई करोड़ रुपये प्रतिमाह होती थी जिसमें से एक धेला भी निगम को नहीं मिला। जाहिर है कि यह सब निगम के खाऊ कमाई अधिकारियों को चढ़ावा चढ़ाने के बाद ही किया जा सकता है।

विज्ञापन लगाने में विभिन्न सरकारी विभागों के हित न टकराएं, इसके लिए अनुबंध होने के सात दिन के भीतर एक स्टीयरिंग कमेटी गठित की जानी थी जिसमें नगर निगम, यातायात पुलिस, अनुबंध कंपनी सहित एक अन्य सदस्य को शामिल किया जाना चाहिए था। यातायात पुलिस को इसलिए शामिल किया जाना था ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि यूनीपोल या गैंट्री ऐसी जगह न लगाई जाएं जिससे यातायात प्रभावित होता हो। अक्तूबर 2020 में अनुबंध हुआ लेकिन कमेटी का गठन नहीं हुआ। उस समय नए तैनात हुए निगमायुक्त ने आदेश दिया तो 11 अगस्त 2021 को कमेटी गठित की गई लेकिन तब भी इसमें यातायात पुलिस के प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया न ही ठेका कंपनी के प्रतिनिधि को बुलाया गया।
ठेका कंपनी को प्रत्येक तिमाही का एडवांस विज्ञापन शुल्क जमा करवाना होता, यदि कंपनी पेशगी नहीं जमा कराती तो उसकी सिक्योरिटी से यह धन समायोजित कर ठेका कंपनी से सिक्योरिटी मनी पूर्ण कराने का प्रावधान था लेकिन कंपनियों ने इसका खूब उल्लंघन किया। एक्सईएन ओमबीर से लेकर एई पदमभूषण, जेई राकेश शर्मा तक किसी ने भी कार्रवाई नहीं की, ऐसा कर ठेका कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया। इस सबकी जानकारी होनेे के बावजूद निगम के जिला न्यायवादी कार्यालय के अधिकारियों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की न ही इस हेराफेरी की जानकारी आला अधिकारियों को दी। इस सबसे बड़ी बात कि अनुबंध के अलावा विज्ञापन से संबंधित रिकॉर्ड न तो ऑनलाइन रखे और न ही कागजी दस्तावेज के रूप में, यानी सारी लूट कमाई और बंदरबांट मौखिक और हवा हवाई ढंग से की गई। सूत्रों के अनुसार निगम सचिव ने अपनी रिपोर्ट में घपले में आपराधिक केस दर्ज कराने, आर्थिक अपराध शाखा से जांच कराने और एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच कराने की सिफारिश की थी। उन्होंने अपनी यह रिपोर्ट 21 अगस्त 2023 को निगम आयुक्त के कार्यालय में दाखिल की थी, इसकी रजिस्टर इंट्री 186 थी, बताया जा रहा है कि निगम से यह रिपोर्ट भी गायब करा दी गई है।

मुख्यमंत्री खट्टर की पिछली बार हुई ग्रीवांस कमेटी की बैठक में एक पत्रकार ने विज्ञापन घोटाले का सवाल उठाया था तो उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे जांच कराने की बात कह पल्ला झाड़़ लिया था। बताया जा रहा है कि सीएम के आदेश पर निगमायुक्त मोना ए श्रीनिवास ने जांच कमेटी का गठन किया है, उसे निगम सचिव की रिपोर्ट को गलत साबित करने का कठिन कार्य दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि आला अधिकारी की रिपोर्ट की जांच करने की हिम्मत कमेटी के सदस्य जुटा नहीं पा रहे हैं, अब आक़ा के आदेश का पालन करने की मजबूरी में वह काले को सफेद करने को मजबूर होंगे।

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Mazdoor Morcha
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