विधानसभा चुनाव में सीमा की राह में होंगे असीमित रोड़े

विधानसभा चुनाव में सीमा की राह में होंगे असीमित रोड़े
December 12 01:14 2023

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) । बड़लख विधानसभा से दो बार की विधायक सीमा त्रिखा की अगले विधानसभा चुनाव का टिकट पाने की राह आसान नहीं होगी। बीते विधानसभा चुनाव में जीत का अंतर बहुत घट जाने के कारण सीमा के टिकट पाने की संभावनाएं काफी सीमित हो गई हैं। वहीं इस विधानसभा से तीन कद्दावर पंजाबी भाजपाई भी सीमा का टिकट झटकने के दावेदार हैं। धनपशु करतार भड़ाना भी बेटे के लिए भाजपा का टिकट खरीदने का दम भर रहे हैं।

2014 में कांग्रेस विरोधी और मोदी लहर पैदा किए जाने के कारण केंद्र के साथ ही हरियाणा में भी भाजपा की सरकार बनी थी। बडख़ल विधायक सीमा त्रिखा ने कांग्रेस विधायक महेंद्र प्रताप सिंह को 36,609 वोटों के अंतर से मात दी थी। सीमा को 70,218 वोट मिले थे जबकि महेंद्र प्रताप महज 33, 609 वोट ही पाए थे। सीमा की इस जीत में मोदी लहर के साथ पहली बार सांसद बने किशन पाल गूजर का हाथ रहा। अधिकतर गूजर मतदाताओं ने महेंद्र प्रताप का साथ छोड़ सत्ता के नए केंद्र बने किशनपाल गूजर के इशारे पर सीमा को वोट दिए थे।

सत्ता मिलते ही बेकाबू हुईं सीमा त्रिखा ने खुद को पंजाबी समुदाय का नेता साबित करने के लिए ने पहले से स्थापित पंजाबी नेताओं के पर कतरने शुरू कर दिए। एनआईटी तीन दशहरा मैदान में रावण दहन, एनआईटी एक नंबर हनुमान मंदिर प्रबंधन में सीमा त्रिखा ने विधायक चंदर भाटिया के भाई राजेश भाटिया, जगदीश भाटिया के विरोधियों को समर्थन दिया। इस उठापटक में सीमा त्रिखा को कुछ नए समर्थक मिले तो काफी विरोधी भी तैयार हो गए। विरोधियों को कमजोर करने की जुगत में लगीं सीमा पहले कार्यकाल में कोई उल्लेखनीय विकास कार्य नहीं करा सकीं। नतीजा हुआ कि आम जनता उनसे नाराज हो गई। 2019 के विधानसभा चुनाव में वो बमुश्किल ढाई हजार के अंतर से चुनाव जीत सकीं। राजनीतिक जानकार इसे प्रशासन की मेहरबानी बताते हैं। बताया जाता है कि मतगतणना के अंतिम चरण तक कांग्रेेस प्रत्याशी विजय प्रताप करीब सात हजार मतों के बड़े अंतर से आगे चल रहे थे। अंतिम बैलट मशीन की मतगणना के समय मीडिया को बाहर कर दिया गया और कुछ समय बाद सीमा त्रिखा को ढाई हजार वोटों के अंतर से जीता घोषित कर दिया गया था। इस चुनाव में उनका यानी भाजपा का वोट बैंक करीब 17 प्रतिशत घटा था जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के मत पच्चीस प्रतिशत से अधिक बढ़े थे। सीमा चुनाव कैसे जीतीं इस पर नहीं जाएं तो भी जनता में उनकी घटती लोकप्रियता तो सामने आ ही गई। बताया यह भी जाता है कि इस चुनाव में सीमा त्रिखा को पंजाबी समाज ने दरकिनार कर दिया था, उनको यह छोटी सी जीत गूजर मतदाताओं के कारण मिली थी।

उनकी जीत की हक़ीक़त भाजपा आलाकमान को तो मालूम ही है। दूसरे कार्यकाल में भी खट्टर सरकार की तरह सीमा की साख भी लगातार गिरती नजर आ रही है। भरोसेमंद सूत्रों का मानना है कि सीमा यदि इस बार चुनाव लड़ती हैं तो उन्हें हार का मुंह देखना पड़ेगा। ऐसे में आला कमान दूसरे चेहरों पर दांव खेल सकता है। इनमें दो नाम प्रमुख हैं पहला भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव जेटली और दूसरा धनेश अदलखा। इनके अलावा बडखल विधानसभा कोषाध्यक्ष राजन मुथरेजा भी बड़े दावेदार हैं। ये तीनों ही पंजाबी समुदाय से आते हैं।
यहां बताना जरूरी है कि बडख़ल विधानसभा पंजाबी मतदाता बाहुल सीट है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक यहां करीब एक लाख पंजाबी, पचास हजार दलित, पच्चीस हजार गूजर वोटर हैं। इनके अलावा सवर्ण, मुस्लिम और ओबीसी वोट करीब पंद्रह हजार हैं। जातिगत राजनीति से दूर रहने वाली भाजपा यहां से पंजाबी प्रत्याशी को तरजीह देती है। इस आधार पर राजीव जेटली, धनेश अदलखा और राजन मुथरेजा की दावेदारी मजबूत दिख रही है।

खट्टर के करीबी राजीव जेटली राष्ट्रीय प्रवक्ता होने के बावजूद अधिकतर समय इसी विधानसभा क्षेत्र में ही बिताते हैं, पार्टी आलाकमान में भी उनकी बेहततरीन पकड़ बताई जाती है। नगर निगम चलाने वाला बेताज बादशाह कहे जाने वाले धनेश अदलखा भी सीएम खट्टर के खास बताए जाते हैं। बडख़ल में होने वाले खट्टर के किसी भी कार्यक्रम में वह प्रमुखता से नजर आते हैं। कोषाध्यक्ष राजन मुथरेजा भी प्रमुख दावेदार हैं। इन तीनों नेताओं की जनता में पकड़ हो न हो, आला कमान में अच्छी पकड़ हैं और तीनों ही सीमा की गिरती साख को अपने हक में भुनाने के लिए भाजपा आला कमान से लेकर सीएम कार्यालय तक सक्रिय हैं।

भाजपा के इन पदाधिकारियों के अलावा धनपशु करतार भड़ाना अपने बेटे मनमोहन भड़ाना को बडख़ल विधानसभा से टिकट दिलाने की कवायद में जुटे हैं। कांग्रेस, भाजपा सहित सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय पार्टियों से मधुर संबंध रखने वाले करतार के बारें में कहा जाता है कि वह पैसे के दम पर किसी भी पार्टी का टिकट खरीदने की क्षमता रखते हैं। भाजपा के जानकारों का भी मानना है कि आला कमान तक पहुंच रखने वाले करतार बेटे मनमोहन को टिकट दिलवा सकते हैं।

सीमा की दावेदारी घटने का एक और कारण उनकी उम्र 55 वर्ष से अधिक होना भी है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 55 वर्ष से अधिक उम्र वाले, पिछले चुनाव में बहुत कम मतांतर से जीतने वाले विधायकों की जगह नए और युवा चेहरों को टिकट दिया है। संघ व भाजपा आला कमान हरियाणा में एंटी इन्कंबेंसी यानी सरकार विरोधी लहर के प्रति चिंतित है। ऐसे में सरकार की साख बचाए रखने के लिए तीन राज्यों वाला दांव यहां भी लागू किया जा सकता है। सीमा त्रिखा इन दोनों कसौटियों यानी 35 से 55 की उम्र और अधिक वोटों के अंतर से जीत, पर फेल नजर आती हैं। इसके विपरीत, धनेश अदलखा, राजीव जेटली, राजन मुथरेजा और मनमोहन भड़ाना चुवा और नए चेहरे हैं। इन परिस्थितयों के साथ सीमित होते जनाधार और घटती लोकप्रियता के बीच सीमा को अपना टिकट बरकरार रखने के लिए असीमित मेहनत करनी पड़ सकती है।

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Mazdoor Morcha
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