फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) चुनाव नज़दीक आते ही जहां भाजपा के पन्ना प्रमुख से लेकर कार्यकर्ता तक पार्टी प्रत्याशी को जिताने के लिए अभी से जुट गए हैं, वहीं गुटों में बंटी बिना संगठन वाली कांग्रेसी नेता एक दूसरे को ही चुनौती देकर पार्टी कमजोर करने में लगे हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट कर खुद को नेता कहलाने वाले नई पीढ़ी के कांग्रेसी पार्टी के स्थापित नेताओं को चुनौती दे रहे हैं।
हुड्डा और सैलजा गुट में बंटी कांग्रेस प्रदेश में कार्यकर्ता संगठन नहीं होने के कारण जनता पर अपनी पकड़ खोती जा रही है। चुनाव नज़दीक हैं और दोनों गुट के नेता अलग अलग शक्ति प्रदर्शन कर पार्टी की फूट को सार्वजनिक कर लुटिया डुबोने में लगे हैं।
टैक्स चोरी के आरोपी कारोबारी मनोज अग्रवाल ऑटो रिक्शाओं पर, बैनर-पोस्टर लगाकर बीते चार पांच साल से खुद को कांग्रेेसी नेता साबित करने में लगे हैं। धन बल के दम पर वो शैलजा गुट के करीबी तो हो गए लेकिन जिताने वाली जनता से शायद ही कभी उन्होंने संवाद कायम किया हो, या जनता से जुड़े मुद्दों पर कोई आंदोलन किया हो। हाल ही में उन्होंने शक्ति प्रदर्शन के लिए बल्लभगढ़ में एक रैली की। रैली में जुटाई गई भीड़ में अधिकतर को तो उनका नाम भी नहीं मालूम था। कुछ महिलाओं ने पांच सौ रुपये दिहाड़ी पर रैली में शामिल होने की सच्चाई बताई। इतना धन खर्च करने के बावजूद मनोज अग्रवाल की यह रैली फ्लॉप ही साबित हुई, जनता ने कुमारी सैलजा को भी ठीक से नहीं सुना। मनोज अग्रवाल दरअसल हुड्डा गुट की शारदा राठौर को चुनौती दे रहे हैं।
शारदा राठौर पूर्व विधायक हैं इसलिए जनता में उनकी पहचान है लेकिन जिस प्रकार से जन संपर्क में उनकी सक्रियता घटी है वह पार्टी के लिए चिंताजनक साबित हो सकता है। अब यह तो भविष्य बताएगा कि बल्लभगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस किस को प्रत्याशी बनाएगी लेकिन चुनाव के करीब दो दावेदारों के कारण जनता कांग्र्रेस को गंभीरता से नहीं ले रही है।
एनआईटी विधानसभा से कांग्रेस के विधायक नीरज शर्मा हैं, ये हुड्डा गुट से हैं। पार्टी के स्थापित विधायक को सैलजा गुट के बताए जाने वाले ज्योतिंद्र भड़ाना चुनौती दे रहे हैं। उनके भी बैनर पोस्टर दिखाई दे रहे हैं। जनता से दूर सोशल मीडिया पर कुछ फॉलोअर बटोर कर खुद को जन नेता बताने वाले ज्योतिंद भड़ाना खुद को एनआईटी विधानसभा से भावी प्रत्याशी बता रहे हैं। समझा जा सकता है कि वह भी जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए न तो कभी जनता के बीच गए और न ही कभी कोई जनांदोलन किया। बस यह विशेषता कि वे प्रदेश स्तर के एक नेता के करीबी हैं, विधायक पद के दावेदार हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार कांग्रेस का तो कोई संगठन नहीं है लेकिन नेता का अपना संगठन और कार्यकर्ता होते हैं, ज्योतिंद्र भड़ाना के साथ ऐसा कुछ नहीं है। चुनाव में उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं ये तो भविष्य की बात है लेकिन वो कांग्रेस के लिए वोट कटवा साबित हो सकते है।
ऐसे समय में जब भाजपा एक एक बूथ जीतने के लिए रणनीतियां बना रही है, वहीं कांग्रेस के नेताओं में एकजुटता की जगह फूट उजागर होना पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं है। प्रदेश स्तर के नेता यदि गुटबंदी छोडक़र एकजुट नहीं होंगे तो सत्ता का वनवास और भी लंबा हो सकता है।