फरीदाबाद (म.मो.) अपने अब तक के सेवा काल में 55 तबादलों से सुसज्जित वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने मुख्यमंत्री खट्टर को पत्र लिख कर कहा है कि राज्य में चहुं ओर व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने का ठेका उन्हें दिया जाय इसके लिये उन्हें विजिलेंस प्रमुख बनाया जाय।
तरस आता है बेचारे अशोक खेमका की समझ पर जो 36 साल तक हरियाणा सरकार की और आठ साल तक खट्टर की नौकरी करने के बावजूद यह नहीं समझ पाये कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री निकलती कहां से है? जब उन्हें यही नहीं पता तो वे इस गंगोत्री को थामेंगे कैसे? इतना सबक तो उन्हें अपनी उन तैनातियों से ही सीख लेना चाहिये था जिनसे उनको केवल इसलिये भगाया गया कि उन्होंने भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास किया था।
बतौर परिवहन सचिव अपनी तैनाती के दौरान जब उन्होंने विभाग में फैले भ्रष्टाचार पर लगाम कसने का काम शुरू ही किया था तो उन्हें पद से चलता कर दिया गया था। उस वक्त खेमका को यह समझ नहीं आया कि भ्रष्टाचार किसकी छात्रछाया में पनपता है और इससे कौन-कौन लाभान्वित होते हैं? जाहिर है भ्रष्टाचार की इस लूट कमाई से लाभान्वित होने वालों के हाथ में ही राज्य की बागडोर है। मतलब बड़ा स्पष्ट है, जो आज तक खेमका की समझ में नहीं आया, खुद मुख्यमंत्री उनका पूरा मंत्रीमंडल एवं विधायक दल की मिलीभगत से ही भ्रष्टाचार एवं लूट-खसूट का कारोबार चल रहा है। चुनाव जीतने के लिये करोड़ों-अरबों रुपये केवल इसलिये खर्च नहीं किये जाते कि सत्तारुढ़ होकर वे जनता की सेवा करेंगे बल्कि इसलिये कि जमकर लूट का मेवा खायेंगे। ऐसे में भला कौन राजनेता खेमका को भ्रष्टाचार बंद करने का ठेका दे सकता है?
अपने पत्र में खेमका ने एक बड़े काम की बात यह बताई कि वे जिस अभिलेखागार विभाग में तैनात हैं वहां करने को कोई काम नहीं है। सप्ताह भर में मात्र एक घंटे से अधिक का काम नहीं है। विभाग का सालाना बजट चार करोड़ का है। जबकि 40 लाख रुपये सालाना तो उन्हें वेतन के रूप में दे दिया जाता है और काम धेले का नहीं लिया जाता। सरकारी धन के दुरुपयोग का यह कोई अकेला मामला नहीं है। धनाभाव का रोना रोनेवाली सरकार इस तरह के अनेकों दुरुपयोग करने में जुटी है। एक अनुमान के अनुसार करीब एक तिहाई आईएएस तथा इतने ही आईपीएस अफसरों के लिये सरकार ने ऐसी कई खुड्डा लाइन पोस्ट बना रखी हैं जहां करने को कोई काम नहीं होता। इन पोस्टों पर खेमका जैसे उन अफसरों को बैठा कर रखा जाता है जो भ्रष्टाचार को समाप्त करके भ्रष्टाचारियों के पेट पर लात मारना चाहते हैं। इसके अलावा जो कोई भी अफसर सरकार के इशारे पर नाचने से इनकार करे उन्हें भी इन्हीं खुड्डों में बैठाया जाता है। सरकारी धन के इस दुरुपयोग का सारा बोझ गरीब कर दाता पर पड़ता है। पेश है खेमका की अक्ल और ईमानदारी का एक नमूना बात है दिसम्बर सन् 2005 की। एक शिकायतकर्ता ने तत्कालीन डीएसपी विजिलेंस रमेश पाल को शिकायत की कि रहेजा नामक एक आयकर अधिकारी उससे 25 हजार की रिश्वत मांग रहा है। रमेशपाल ने तुरन्त कार्रवाई शुरू करते हुए अपने एक सुरेश कुमार एएसआई को लिखित दरखास्त देकर तत्कालीन उपायुक्त, जी अनुपमा के पास डयूटी मैजिस्ट्रेट लगवाने के लिये भेजा। जी अनुपमा ने एएसआई से पूछा कि रेड किस पर करनी है? एएसआई ने कहा कि उसे नहीं मालूम, पूछना चाहो तो डीएसपी साहब से पूछ लो। उसने यह भी कहा कि दफ्तर में कुछ बिजली वाले भी घूम रहे थे, हो सकता है कि रेड किसी बिजली वाले पर हो। यह सुनकर जी अनुपमा ने सुनीता वर्मा नामक एक एचसीएस अधिकारी को बतौर डयूटी मैजिस्ट्रेट नियुक्त कर दिया।
इसी बीच डीएसपी रमेशपाल को पता चला कि केन्द्र सरकार के अधिकारियों पर रेड करना उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। विजिलेंस मुख्यालय चंडीगढ़ के निर्देश पर उन्होंने केस को जि़ला पुलिस के हवाले कर दिया। इस पर तत्कालीन पुलिस अधिक्षक महेन्द्र सिंह श्योरान ने डीएसपी बदन सिंह राणा को रेड करने का काम सौंप दिया, डयूटी मैजिस्ट्रेट के तौर पर सुनीता वर्मा ही रही। रेड कामयाब रही, भ्रष्ट आयकर अधिकारी को रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया गया।
इस पूरी कहानी में न तो कहीं डीएसपी रमेशपाल का दोष नजर आता है और न ही उस एएसआई का जो जी अनुपमा के पास दरखास्त लेकर पेश हुआ था। इसके बावजूद जी अनुपमा ने विजिलेंस के दोनों अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत कर दी कि उन्हें यह नहीं बताया गया था कि रेड किस पर होनी है? बड़ी अजीब शिकायत थी। ऐसा कोई कानून नहीं है कि उन्हें बताया ही जाय। यदि फिर भी उन्हें जानना ही था तो वे सीधे डीएसपी से बात करती, जो उन्होंने नहीं की। अनुपमा की शिकायत पर एएसआई का तो तुरन्त तबादला कर दिया गया और सारे मामले की जांच का काम श्रीमान अशोक खेमका को सौंप दिया गया। ईमानदारी की इस मूर्ति ने, दुनियां जहान की भ्रष्ट अधिकारी अनुपमा की आधारहीन शिकायत पर डीएसपी रमेशपाल को दोषी घोषित कर दिया।
अपने आप को निर्दोष सिद्ध करने के लिये रमेशपाल कई वर्षों तक जगह-जगह सिर मारते रहे, तब कहीं जाकर वे निर्दोष तो घोषित हो गये लेकिन सजा के तौर पर रोके गये उनके दो एंक्रिमेंट आज तक भी बहाल नहीं हुए जबकि वे 2018 में सेवा निवृत हो चुके हैं। ऐसी है हरियाणा की अंधी सरकार और उसको चलाने वाले अशोक खेमका व जी अनुपमा जैसे ‘ईमानदार’ अधिकारी।