सन्तोष ‘परिवर्तक’
मज़दूरन की हाय लगी है…..! तबै हेकड़ी जाय लगी है….!!
सरहद पर हुइ गई फजीहत, मेढक़ी तक मुस्काय लगी है.!
भगत मीडिया आग बबूला, गीले का सुलगाय लगी है…!
हिटलर, तुगलक लगे काम पर, इकोनॉमी सुस्ताय लगी है…!
खाली पेट, बखारी खाली, मेहरारू घबराय लगी है……!
बची फसल कुल गइया चरिगै, अब खोपरी भन्नाय लगी है..!
भुरवा कलि सल्फास निगलिगा, हमरिउ नौबत आय लगी है…!
‘सोम’ ठहर औ देख क्षितिज पर, फिर से लाली छाय लगी है…!
इंकलाब जिंदाबाद..!!!