फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) भ्रष्टाचार का अड्डा नगर निगम के खाऊ-कमाऊ निकम्मे अधिकारी लूट कमाई के नए नए तरीके गढऩे में माहिर हैं। अब वायु प्रदूषण के कारण पता लगाने के लिए सर्वे कराने के नाम पर 6.67 लाख रुपयों की बंदरबांट करने की तैयारी की जा रही है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी से लेकर अवैध निर्माण, स्वच्छ भारत मिशन विभागों में अधिकारियों की फौज होने के बावजूद जनता से वसूले गए करीब पौने सात लाख रुपये सर्वे के नाम पर निजी कंपनी पर लुटाए जाएंगे।
वायु प्रदूषण के मामले में शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक बीते कई वर्षों से कमोबेश बेहद खतरनाक स्तर पर बना हुआ है। वाणु गुणवत्ता में सुधार करने की प्रशासन में सबसे अधिक जिम्मेदारी नगर निगम की ही है, क्योंकि नगर निगम क्षेत्र में किसी भी तरह का प्रदूषण रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से लेकर जिला प्रशासन निगम प्रशासन पर निर्भर होते हैं। प्रदूषण नियंत्रण के लिए ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) एक से लेकर चार तक लागू करवाने की जिम्मेदारी भी नगर निगम पर सबसे ज्यादा है। अपनी ये जिम्मेदारी तो ये अधिकारी निभा नहीं रहे हैं, अब वायु प्रदूषण का कारण जानने के लिए सर्वे कराने का ड्रामा करने जा रहे हैं। यदि ये अधिकारी ग्रेप एक से चार तक ईमानदारी से लागू करवाएं तो शहर की वायु गुणवत्ता बेहतर होगी लेकिन हरामखोरी में मशगूल अधिकारी ऐसा इसलिए नहीं करते कि उनकी लूट कमाई के साधन बंद हो जाएंगे।
ग्रेप एक के तहत निर्माण एवं तोडफ़ोड़ (सीएंडडी) कार्यों को नियंत्रित ढंग से कराए जाने का प्रावधान है यानी प्रक्रिया में धूल कण पीएम 10 नहीं उठें इसके लिए छिडक़ाव, साइट को ढंकने की व्यवस्था की जानी चाहिए। म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट, सीएंडडी वेस्ट आदि कचरे का ख्रत्तों से नियमित उठान कराए जाने के साथ ही यह सुनिश्चित करना होता है कि कहीं भी खुले में कोई कूड़ा कचरा नहीं पड़ा रह जाए। सडक़ों की मशीनों से नियमित सफाई और उन पर पानी का छिडक़ाव कराया जाना चाहिए। किसी भी तरह के कचरे को खुले में जलाए जाने का सख्ती से रोकना, होटल ढाबों में तंदूर या कोयले की भट्टी नहीं जलाया जाना सुनिश्चित करना है।
सर्वे कराने को आतुर निगम अधिकारी शहर भर में चल रहे निर्माण और तोडफ़ोड़ कार्यों पर पाबंदी नहीं लगाते। तोडफ़ोड़ दस्ते का जेई प्रवीण कहां निर्माण चल रहा है कहां तोडफ़ोड़ हो रही है सब जानता है लेकिन हर जगह से सुविधा शुल्क मिलने के कारण आंखें बंद कर लेता है। तोडफ़ोड़ से हवा में पीएम 10 कणों का गुबार घुलता रहे, जेब गर्म होने के कारण कोई कार्रवाई नहीं होगी।
सडकों की मशीन से सफाई और छिडक़ाव का काम एक जगह करवा दस जगह दिखाया जाता है और अधिकारी मोटे बिल बना कर बंदरबांट करते हैं। नगर निगम क्षेत्र में कोयला भट्टी जलाने वाले होटल, ढाबे और रेहडिय़ों की संख्या एक हजार से अधिक है। प्रदूषण नियंत्रण का मोटा चालान काटने के नाम पर इनसे पांच सौ रुपये से लेकर दो हजार रुपये महीने की वसूली की जाती है। कृष्णा नगर में रेलवे लाइन किनारे, सरूरपुर इंडस्ट्रियल एरिया, बाईपास किनारे सेक्टर 9, 14, 17 के पीछे बसाई गई झुग्गियों आदि न जाने कितनी जगहें हैं जहां कबाड़ी रोजाना रबड़ प्लास्टिक जलाकर कीमती धातुएं अलग करते हैं। इनसे उठने वाला काला धुआं आम आदमी को दूर से नजर आ जाता है लेकिन भ्रष्ट निगम अधिकारियों को नहीं, वजह वही है, इन कबाडिय़ों से नियमित होने वाली मोटी आय।
वेतन से कहीं अधिक होने वाली इस मोटी कमाई का लोभ वसूली करने वाले से लेकर हिस्सा बांट करने वाले आला अधिकारियों को है। ग्रेप दो, तीन और चार के प्रावधान तो इससे भी सख्त हैं, हां, इनके नाम पर सुविधा शुल्क की दरें और बढ़ा दी जाती हैं।
सवाल ये है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के होते हुए नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारी सर्वे पर 6.67 लाख रुपये क्यों खर्च करना चाह रहे हैं। ऐसी कौन सी सर्वे एजेंसी है जिसके पास वायु प्रदूषण और उसके कारक का पता लगाने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से बेहतर उपकरण, वैज्ञानिक और शोधकर्ता हैं।
सर्वे कराने की तैयारी कर रहे निगम अधिकारी यदि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से संपर्क करते तो उन्हें शहर में वायु प्रदूषण के कारक, खास जगहों की सूची सहित अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जातीं क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शहर के बढ़ते घटते प्रदूषण की लगातार निगरानी करता है, और वायु स्वच्छ करने के उपायों पर भले ही कोई ठोस काम न करता हो लेकिन रिपोर्ट तो तैयार करता ही है। सरकारी संस्था होने के कारण नगर निगम को बोर्ड से आंकड़े और रिपोर्ट मुफ्त में मिल जाते।
लगता है कि सर्वे भी भाजपा के मंत्री-राजनेता की किसी चाटुकार कंपनी से कराकर उसे लाभ पहुंचाया जाएगा ताकि 6.67 लाख रुपये की बंदरबांट की जा सके।