रिश्वत कमाने का बड़ा साधन स्कूलों को सरकारी मान्यता का धंधा

रिश्वत कमाने का बड़ा साधन स्कूलों को सरकारी मान्यता का धंधा
March 10 08:25 2024

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) किसी भी देश के निर्माण एवं प्रगति के लिये नागरिकों का शिक्षित होना अनिवार्य है। इसी तथ्य को मद्दे नज़र रखते हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने शिक्षा के बजट में कटौती करने से ये कहते हुए इनकार कर दिया था कि इन्फ्रा स्ट्रक्चर का निर्माण तो कभी भी कर लेंगे, लेकिन जो पीढ़ी शिक्षा से वंचित रह गई उसकी भरपाई कभी न हो सकेगी।

इसके विपरीत हरियाणा सरकार का शिक्षा विभाग बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रखने का कोई अवसर छोडऩे को तैयार नहीं है। सरकारी स्कूलों की दुर्दशा का विवरण ‘मज़दूर मोर्चा’ अनेकों बार प्रकाशित कर चुका है। इसके चलते बड़ी संख्या में शिक्षा माफिया इसके व्यापार में उतर आए हैं। सम्पन्न व्यापारियों ने जहां आलीशान शिक्षण संस्थान खड़े कर दिए वहीं हर छोटे-मोटे व्यापारी ने अपनी-अपनी औकात के अनुसार शिक्षा की दुकानें खोल डालीं।

शिक्षा के फलते- फूलते इस व्यापार में सरकार ने भी अपनी लूट कमाई के व्यापक अवसर ढूंढ निकाले। इनमें से एक है निजी स्कूलों को मान्यता देने का। इसके लिये इतनी लम्बी-चौड़ी शर्तें रखी गई हैं जिसे शायद ही कोई स्कूल पूरी करता हो। अधूरी शर्तों के बावजूद मान्यता प्रदान करने के बदले सरकारी शिक्षा विभाग प्रत्येक स्कूल से लाखों की वसूली करता है। जो छोटे एवं गरीब स्कूल शिक्षा विभाग को मोटी रिश्वत न दे सकें, वे मान्यता से वंचित रह जाते हैं। इन्हीं को गैर मान्यता प्राप्त स्कूल कहा जाता है। वास्तव में मान्यता का और पढ़ाई का कोई ताल्लुक नहीं है। मजे की बात तो यह है कि सरकार का कोई भी अपना स्कूल मान्यता की शर्तें पूरी नहीं करता। इस आधार पर तमाम सरकारी स्कूलों को भी ‘गैर मान्यता प्राप्त’ का दर्जा दे दिया जाना चाहिए।

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में मनोज कुमार जायसवाल द्वारा 2012 में दायर याचिका में बताया गया है कि अकेले फरीदाबाद में ही 550 गैर मान्यता प्राप्त स्कूल हैं। जाहिर है कि इनमें कोई सरकारी स्कूल तो नहीं ही होगा। याचिकाकर्ता की मांग को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार से जवाब-तलब करते हुए इस पर स्पष्टीकरण मांगा। जवाब में हरियाणा सरकार ने राज्य के 282 स्कूलों को बंद कराने का आश्वासन दिया है। सवाल यह पैदा होता है कि इन स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे कहां पढऩे जायेंगे? लगता है कि हाईकोर्ट में याचिका दायर होने के बाद घबराए स्कूल वालों ने जैसे-तैसे रिश्वत का जुगाड़ करके मान्यता खरीद ली होगी। इसी के चलते हजारों की संख्या घटकर 282 रह गई। ताला लगने की नौबत आई देख कर ये भी शिक्षा विभाग को कुछ न कुछ देकर मान्यता का जुगाड़ करेंगे ही।

हाईकोर्ट को यदि जनहित की जरा भी चिंता होती तो वह मान्यता के इस धंधे का पूरा ऑडिट कराती और सरकार से यह भी सुनिश्चित करती कि 282 स्कूल बंद होने के बाद बच्चे कहां जाएंगे?

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Mazdoor Morcha
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