फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) मोटा वेतन पाने वाले नगर निगम के भ्रष्ट और निकम्मे अधिकारी कायदे का काम तो कोई करते नहीं, कर्मचारियों को बेवजह बेघर करने के वाहियात काम में जनता का धन बर्बाद करने में लगे हुए हैं। नगर निगम के ट्यूबेवल ऑपरेटर राजेंद्र सिंह का आवास बिना उनको सूचना दिए ही खाली कराने की कवायद शुरू कर दी गई। जानकारी होने पर उन्होने हाईेकोर्ट में अपील की, जहां जज के सामने निगम अधिकारियों की करतूत का खुलासा हुआ। कोर्ट ने निगम अधिकारियों को स्पष्ट आदेश दिया कि जब तक राजेंद्र सिंह के लिए किसी दूसरे रहने लायक आवास का बंदोबस्त नहीं किया जाए तब तक उससे वर्तमान घर खाली न कराया जाए।
राजेंद्र सिंह नगर निगम में 2014 में ट्यूबवेल ऑपरेटर के पद पर तैनात हुए थे। स्थायी कर्मचारी होने के कारण उन्होंने निगम में नियमानुसार आवास के लिए आवेदन किया था। आवास आवंटन के लिए गठित कमेटी ने उनके आवेदन की जांच परख के बाद सेक्टर 17 में नगर निगम का चेंबर नंबर पांच आवंटित किया। दरअसल इस छोटे से आवास के सामने बहुत बड़ी जमीन खाली पड़ी थी। वहां की रेजिडेंट वेलफेयर काउंसिल ने उस जगह को कचरा घर बना रखा था। राजेंद्र सिंह ने वहां रहना शुरू किया और इस खराब पड़ी खाली जमीन की साफ सफाई कर यहां पेड़ पौधे भी लगाए, घूरे जैसी जमीन को शानदार पार्क में तब्दील हुआ देख आरडब्ल्यूसी के सदस्यों की नीयत खराब हो गई, और राजेंद्र सिंह को तरह तरह से परेशान किया जाने लगा। निगरानी के लिए राजेंद्र सिंह ने अपने आवास में सीसीटीवी कैमरे लगाए तो इसे ही आधार बना कर उनके खिलाफ षणयंत्र रचा गया। नगर निगम को प्रतिवादी बनाते हुए आरडब्यूसी ने उनका आवास खाली कराने का केस स्थायी लोक अदालत में डाल दिया। लोक अदालत ने भी उनका पक्ष जानना उचित नहीं समझा और निगम अधिकारियों व आरडब्यूसी सदस्यों की आपसी सहमति से फैसला सुना दिया कि चेंबर पांच खाली करा दिया जाए।
राजेंद्र सिंह को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। उनके वकील ने अदालत को बताया कि स्थायी लोक अदालत बिना उनके मुवक्किल का पक्ष सुने एक तरफा निर्णय नहीं सुना सकती। हाईेकोर्ट की कोऑर्डिनेशन बेंच ने लोक अदालत के फैसले को रद्द कर मामले की सुनवाई की। इस बीच निगम के अधिकारियों ने राजेंद्र सिंह के चेंबर नंबर पांच जो कि उसका रिहायशी मकान है, का आवंटन रद्द कर दिया। इस पर राजेंद्र सिंह ने हाईकोर्ट में एक और याचिका दाखिल की। अदालत ने माना कि सीसीटीवी कैमरा लगाना और बेहतर जीवन यापन के लिए कुछ निर्माण करना आवंटन रद्द करने का उचित कारण नहीं हो सकते। जो वैकल्पिक आवास देने की बात की गई वो अदालत की ओर से भेजे गए कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर रहने लायक ही नहीं था, दूसरा वैकल्पिक आवास जो देने की बात की जा रही है वो भी अभी तैयार नहीं है। इस आधार पर अदालत ने आदेश जारी किया है कि जब तक निगम प्रशासन राजेंद्र सिंह और उसके परिवार के लिए जीवन यापन योग्य आवास की व्यवस्था करके नहीं देता तब तक उसे वर्तमान चेंबर यानी आवास से नहीं निकाला जाए। कोर्ट ने फैसला तो सुना दिया, उसे निगम के निकम्मे अधिकारियों को भी सजा देनी चाहिए जो अपने ही कर्मचारी को बेवजह परेशान करते हैं, बेवजह की मुकदमेबाजी में जनता का पैसा और अदालत का समय दोनों बर्बाद करते हैँ।