फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) दिनांक 12 मार्च को रतन सिंह नामक ईएसआई जो बतौर जोनल ऑफिसर ट्रैफिक हार्डवेयर चौक पर नियुक्त था, को रंगे हाथों वाहन चालकों से वसूली करते पकड़ा गया था, के मामले को दबाया जा रहा है। पुलिस द्वारा पकड़े जाने वाले छोटे-मोटे अपराधियों को लेकर प्राय: पुलिस अधिकारी प्रेसवार्ता नहीं तो कम से कम विस्तृत प्रेस नोट तो जारी करते ही हैं। इतना ही नहीं पकड़े गये अपराधियों की फोटो भी जारी करते हैं। परन्तु इस मामले में प्रेस नोट जारी करना तो दूर थाना सेन्ट्रल में दर्ज एफआईआर तक को भी पोर्टल पर नहीं डाला गया।
उपलब्ध जानकारी के अनुसार पुलिस वर्र्दी में सरेआम लूट करने वाले अपराधी रतन सिंह से कोई विस्तृत पूछताछ करने की अपेक्षा उसे तुरन्त ही न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया। जेल भेजना भी एक मजबूरी थी क्योंकि उस पर लगी धाराओं में तुरन्त बेल कराने से महकमे की रही-सही नाक भी कट जाती। इस मामले को लेकर ‘मज़दूर मोर्चा’ ने पुलिस आयुक्त राकेश आर्य को फोन लगाया तो उनके स्टाफ ऑफिसर डीएसपी भारतेन्दु ने कहा कि साहब तो ऑफिस में नहीं हैं। संवाददाता ने उनसे निवेदन किया कि साहब को संदेश देना, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया। बड़ी अजीब बात है कि सरकार द्वारा मोबाइल फोन उपलब्ध कराये जाने के बावजूद भी साहब लोग पब्लिक से बात करना पसंद नहीं करते।
दरअसल पुलिस अफसर द्वारा की जा रही इस खुली लूट के बारे में ‘मज़दूर मोर्चा’ पुलिस आयुक्त महोदय से यह जानना चाहता था कि इस मामले में पुलिस की तफ्तीश कहां तक पहुंची? पुलिस आयुक्त महोदय चाहे कितना ही छिपा लें, यह सर्वविदित है कि रतन सिंह जैसा पुलिस अधिकारी सरेआम चौराहे पर खड़े होकर इस तरह से लूट नहीं कर सकता जब तक की उसे उच्च अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त न हो। रतन सिंह यह भी कहता बताया गया था कि वह अभी दो दिन पहले ही तो एसीपी को 68,000 रुपये देकर आया है। उच्चाधिकारी न तो इसकी पुष्टि करते हैं न ही खंडन।
यदि मान लिया जाए कि रतन सिंह झूठ बोल रहा है या उसने ऐसी कोई बात कही ही नहीं तो बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि ट्रैफिक में तैनात एसीपी व डीसीपी रखे किसलिये हैं? क्या वे केवल करदाता के खून-पसीने की कमाई पर अय्याशी करने के लिये रखे हुए हैं? दूसरा प्रश्न यह है कि जिस चालानिंग मशीन के द्वारा रतन सिंह पिछले कई महीनों से जनता को लूट रहा था ऐसी कुल कितनी मशीनें बीते कितने समय से रतन सिंह जैसों के हाथ में थीं? प्रश्न यह भी है कि जब नई मशीनें आ गईं थीं तो पुरानी म मशीनें क्यों जारी की गई ? ‘मज़दूर मोर्चा’ की जानकारी के अनुसार इनकी संख्या 22-23 है जो कई महीनों से चलाई जा रही थीं। संदर्भवश जहां नई मशीनों द्वारा किये जाने वाले चालान तथा वसूली गई रकम साथ के साथ ट्रैफिक कार्यालय में रखे कम्प्यूटर में (ऑनलाइन) दर्ज हो जाती है जबकि उक्त 22-23 मशीनों का लेखा-जोखा सम्बन्धित पुलिसकर्मी द्वारा ट्रैफिक कार्यालय में जाकर चढ़वाना होता था। बस इसी दौरान सारा खेल हो जाता था।
‘मज़दूर मोर्चा’ इन्हीं सब तथ्यों को लेकर पुलिस आयुक्त का पक्ष जानने का इच्छुक था और अभी भी है। यदि ‘मोर्चा’ में प्रकाशित तथ्य गलत है तो वे अपना सार्वजनिक बयान जारी करते हुए प्रत्येक सवाल का सीधे-सीधे जवाब दें।