फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) शनिवार दिनांक संपादक स्वत: जनहित को लेकर माननीय सेशन जज की खुली अदालत में पेश हुए। संपादक ने उन्हें अवगत कराया कि ट्रैफिक पुलिस वाले कैमरों से ऑनलाइन चालान करने के बाद वाहन चालक को महीनों तक सूचित नहीं करते और केस सीधे न्यायालय में भेज देते हैं। दूसरी ओर जब महीनों बाद वाहन चालक को सूचना मिलती है तो वह तुरंत ऑनलाइन पेमेंट तो कर देता है लेकिन उसके बावजूद पुलिस वाले उसके सिर पर चालान खड़ा रखते हैं। अदालती बोझ तले दबी अदालतें भी चालानों को ठंडे बस्ते में रख छोड़ती हैं।
एक मामले में वाहन चालक को इस नौटंकी का पता उस वक्त लगा जब वह अपने किसी काम के लिए एसडीएम कार्यालय पहुंचा तो उसे बताया गया कि उसका तो चालान लंबित है। वाहन स्वामी हैरान कि उसने एक वर्ष पूर्व ही चालान का ऑनलाइन भुगतान कर दिया था। कई दिन इधर उधर भटकने के बाद उसे पता लगा कि ट्रैफिक पुलिस ने चालान न्यायालय में भेज दिया है। उसके बाद न्यायालय का खेल शुरू होता है। वहां बाकायदा तारीख पर तारीख छह बार लगती रही। सरकार की ओर से माननीय सरकारी वकील पेश हुए, एक वकील वाहन चालक की ओर से पेश हुआ, छह पेशियों के बाद माननीय न्यायालय ने निर्णय देकर वाहन चालक को मुक्ति प्रदान की।
अजीब तमाशा है, वाहन चालक जुर्माने की रकम अदा कर चुका हो उसके बाद काम के बोझ से दबी अदालतों में वह बाकायदा एक मुकदमे के तौर पर इसके लिए चक्कर काटता रहे, यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो क्या है? यह बताने की जरूरत नहीं कि दो हजार रुपये बतौर जुर्माना खर्चने के अलावा इससे कहीं ज्यादा खर्चा उस वाहन स्वामी को इस अदालती खेल में करना पड़ा, समय बर्बाद हुआ वह अलग से।
माननीय सेशन जज ने संपादक की बात को गौर से सुना, सुनकर बताया कि उनके नोटिस मेें भी इस तरह की बातें आई थीं, वे इस पर पहले से भी विचार कर रहे थे। उन्होंने संपादक से अनुरोध किया कि वे इस मामले में एक नोट बना कर उन्हें दे जाएं ताकि वे आगामी बैठक में इस मसले का हल करने पर विचार करें।