फरीदाबाद (म.मो.) शहरवासियों को आवागमन की सुविधा के लिये सरकार द्वारा हमेशा ही बसों की व्यवस्था की जाती रही है। वर्ष 1970 में डीटीसी द्वारा बाटा चौक, केसी सिनेमा व दशहरा ग्राऊंड से दिल्ली के लिये बसें चला करती थीं। बाद में हरियाणा रोडवेज़ की बसें कुछ फेर-पलट करके इन्हीं रुटों पर चलने लगी थीं। इसी तरह बल्लबगढ से सेक्टर सात व 15 होते हुए दिल्ली के लिये चला करती थीं। इन्हीं सेवाओं को विस्तार देते हुए दिल्ली के एम्स व कुछ कॉलेजों के लिये भी बसें चलाई गईं थी। लेकिन समय के साथ ये सब लुप्त हो गई।
वर्ष 2067 में जवाहरलाल नेहरू अर्बन मिशन के नाम पर नौटंकी करते हुए इस शहर को करीब 200 अति आधुनिक लो फ्लोर बसें सौंपी गई थीं। इनको हरा झंडा दिखाने के लिये तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा व अनेकों अफसरशाह चंडीगढ से यहां पहुंचे थे। करीब दो साल तक ये बसें खड़ी रह गई क्योंकि इन बसों का संचालन नगर निगम द्वारा किया जाना चाहिये था। लेकिन जो नगर निगम सीवर, पेयजल, स्ट्रीट लाइट, झाड़-बुहार तक न कर पाये वह भला बसों का संचालन कैसे कर पाता? लिहाज़ा दो साल तक खड़ी रखने के बाद वे बसें हरियाणा रोडवेज के फरीदाबाद डिपो को सौंप दी गई और उन्होंने भी दो-तीन साल में उनके अंजर-पंजर बिखेर दिये। यानी कि सैंकड़ों करोड़ रुपये की बसें भांग के भाड़े लग गई।
अब यही काम अनिता यादव के नेतृत्व में एफएमडीए दोहराने जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि शहर के विस्तार एवं नागरिकों के आवागमन की व्यवस्था के लिये सार्वजनिक परिवहन बहुत जरूरी है लेकिन इसका यह मतलब नहीं होना चाहिये कि इसके नाम पर जनता से बार-बार ठगी की जाय। एफएमडीए हो चाहे नगर निगम या फिर स्माट सिटी कम्पनी लिमिटेड, इनका बसें संचालन से क्या वास्ता? इनमें से किसी के पास भी परिवहन से सम्बन्धित न तो कोई अनुभव है और न ही इन्फ्रास्ट्रक्चर (मूल भूत ढांचा)। ऐसे में ‘शुभगमन’ नाम से शहर में ट्रांस्पोर्ट की व्यवस्था एक नाटक से अधिक कुछ भी नहीं होने वाला। इस ‘शुभगमन’ शब्द को गढने पर भी बीसियों हजार रुपये खर्च हो चुकेे हैं। यदि सीधी-साधी सिटी बस सेवा भी कर देती तो क्या दिक्कत थी? लोगों को तो जो लाभ होना है वह बसों के चलने से होगा न कि नामों से। होना अंत में यह है कि दो चार सौ करोड़ रुपये बट्टे-खाते लग जाने हैं।