क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा 1960 के दशक के, ऐतिहासिक वियतनाम युद्ध का नाम लेकर, साम्राज्यवादी लठैत, अमेरिकी सरकार को आज भी दुनियाभर में लानत भेजी जाती है. वियतनामियों ने, अमेरिकी क़त्लेआम
फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) अस्पताल में इलाज के लिये आने वाले मज़दूरों की सहायता एवं मार्गदर्शन के लिये ‘क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा’ ने गेट नम्बर एक पर हेल्प-डेस्क स्थापित करने का निर्णय
फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) सात महीने से ग्रेच्युटी व अन्य भुगतान पाने को भटक रहे लखानी फैक्ट्री के मज़दूरों के समर्थन में क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा और लखानी मज़दूर संघर्ष समिति ने
क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा भाजपा, आगामी विधान सभा तथा लोकसभा चुनाव हारने जा रही है। भीत पर लिखा हुआ, सबको साफ़ नजऱ आ रहा हैै। पुलवामा न हुआ होता, तो 2019
क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा 31 जुलाई को नूंह जि़ले के मेवातियों ने नफऱत-उन्माद के तूफ़ान को रोककर इतिहास रच दिया है। यह तारीख़ देश की फ़ासीवाद विरोधी तहरीक में एक तारीख़ी
सत्यवीर सिंह गुस्से में तिलमिलाए लखानी के मज़दूर, यूँ तो, लखानियों की किसी ना किसी फैक्ट्री में, हर रोज़ ही चीखते- चिल्लाते रहते हैं, लेकिन वह स्वत:स्फूर्त आक्रोश होता है,
सत्यवीर सिंह आम-तौर पर शांत रहने वाला, दिल्ली का रामलीला मैदान और आस-पास का इलाक़ा सोमवार 20 मार्च को भारी तादाद में हाथों में हरे-पीले और लाल झंडे थामे, नारे
सत्यवीर सिंह झूट, पाखंड, नस्लवाद, मर्दवाद, काल्पनिक शत्रु का भय, इतिहास का विकृतीकरण; फ़ासीवाद के पहिये होते हैं. यही कारण है कि कहीं के भी हों, फ़ासिस्ट सबसे ज्यादा ज्ञान-विज्ञान
सत्यवीर सिंह “बीहड़ में बागी होते हैं, डकैत मिलते हैं पार्लियामेंट में”, ‘पानसिंह तोमर’ फिल्म का ये डायलॉग बहुत मक़बूल हुआ था, हॉल में ऐसी तालियाँ गूंजी थीं, मानो किसी
सत्यवीर सिंह एक हाथ में लाल झंडा, दूसरे हाथ की मुट्ठी दृढ़ता से बंधी हुई, चहरे पर आक्रोश और जुबां पर ‘इंक़लाब जिंदाबाद’; हद्दे-नजऱ तक, अनुशासित क़तार बद्ध, बे-खौफ़; दिल्ली