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Tag "kavita"

सब की यही कहानी

डॉ. रामवीर बीजेपी में सर्वेसर्वा होते थे अडवानी, दिन बदले तो हुए बेचारे पार्टी में बेमानी । आगे की घटनाएं सभी की हैं जानी पहचानी, अपना पाला पोसा चेला करने

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बाबा नागार्जुन की इस कविता के साथ भारत में सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ –

किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियाँ भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है,

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छब्बीस जनवरी का दिन लाखां क़ुरबानी देकै आया रै

डॉ० रणबीर सिंह छब्बीस जनवरी का दिन लाखां क़ुरबानी देकै आया रै।। आज हटकै म्हारे देश पै गुलामी का बादल छाया रै।। आजाद देश के सपने म्हारे सबनै मिलै पढाई

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कविता/ठेके पर देश

डॉ. रामवीर देख रहा हूं धीरे धीरे बदल रहा परिवेश, देश दिया करता था ठेका अब ठेके पर देश। सब कुछ ठेके पर देने का जब से चला रिवाज, ठेके

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दुनिया और वे

घर-बार खेत-खलिहान जहां रहती है दुनिया खाती है, पीती है मौज करती है और ये सब जुटाते हैं वे जिनके न घर हैं न बार न खेत-खलिहान वे भूखे हैं

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रागनी : भागो नहीं दुनिया को बदलो

कंवल भारती हम बदलेंगे, जग बदलेगा, बदलेगा जुग सारा। भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा।।टेक।। 1 इन्सानों ने इन्सानों की बस्ती में आग लगाई। ऊँचनीच की नफऱत

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तुझमें नयापन क्या है ?

ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या है हर तरफ़ ख़ल्क़ ने क्यूँ शोर मचा रक्खा है रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही आज हम को नजऱ आती

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कविता की सफलता

कात्यायनी कविता अगर जि़न्दगी की तकलीफ़ों को, नाउम्मीदियों को, शिकस्तों को, उम्मीदों को, खुशियों को, कामनाओं को, सपनों को बिना किसी बनाव-सिंगार के बयान कर पाने में और लोगों तक

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ख़ौफऩाक शर्मिन्दगी

कात्यायनी कैसा अजीब ख़ौफऩाक मौसम है कि बेहद सादगी से अगर कोई सीधा-सादा इंसान कोई सीधी-सच्ची बात कह दे तो लोग उसे यूँ देखते हैं जैसे वह सीधे मंगल ग्रह

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कविता/प्रजातन्त्र में प्रजा उपेक्षित…..

डॉ. रामवीर प्रजातन्त्र में प्रजा उपेक्षित तन्त्र हुआ है हावी, जन की बातें बेमानी हैं धन ही अधिक प्रभावी। साल पिछत्तर पूर्व विदेशी का कब्जा तो छूटा, किन्तु भारतोदय का

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