डॉ. रामवीर देख रहा हूं आज देश के हुए हैं कुछ ऐसे हालात, मित्रों से भी नहीं है सम्भव खुल कर कर लें दिल की बात। आशंका सी रहती है
(निधन : 11 मई, 2024) 1 कविवर मैं पहली पंक्ति लिखता हूं और डर जाता हूं राजा के सिपाहियों से पंक्ति को काट देता हूं मैं दूसरी पंक्ति लिखता हूं
डॉ. रामवीर कल मेरे सपने में भारत माता हुई प्रकट, जो बोली वो बता रहा हूं बिना लाग लपट। मुझे कहा माता ने बेटा सुनना इधर जरा, पता नहीं क्या
मंगलेश डबराल तानाशाहों को अपने पूर्वजों के जीवन का अध्ययन नहीं करना पड़ता। वे उनकी पुरानी तस्वीरों को जेब में नहीं रखते या उनके दिल का एक्स-रे नहीं देखते। यह
जन्नत में हर सप्ताह तीस घंटे काम के लिए मुकर्रर हैं मजूरी ज्यादा है, कीमतें लगातार कम होती जाती हैं जिस्मानी काम थकाऊ नहीं है (गुरुत्वाकर्षण कम होने के कारण)
डॉ. रामवीर ये जो हो रहा है गलत हो रहा है मगर तंगनजरों को बड़ा भा रहा है। भौंचक हूं भारत कहां जा रहा है पीते नहीं पर नशा हो
कविता कथनी औ करनी का अन्तर बढ़ता ही जा रहा निरन्तर, बड़े बड़े नेताओं का भी हुआ निम्नतम नैतिक स्तर। राजनीति में इधर हुआ है धनिक वर्ग अतिशय ताकतवर, और
ओ ईश्वर! बहुत हुआ अब नष्ट कर दो दुनिया के तमाम पूजास्थल तुम देखना दुनिया बहुत सुखी हो जाएगी और तुम भी। ईश्वर-2 दिन-रात लाखों-लाखों लोगों के द्वारा की जा
मै मंदिर मे बैठा था वो मस्जिद में बैठी थी. मै पंडित जी का बेटा था वो काजी साहब की बेटी थी. मै बुलेट पर चल कर आता था. वो
मुस्तजाब ये टूटी बिखरी मजबूर हो गई, ये चिल्ला चिल्ला कर माज़ूर हो गई, ये नेगेटिविटी से भरपूर हो गई, आसमान जानी थी, मगर खजूर हो गई। इकोनॉमी हमारी चूर