कविता कृष्णपल्लवी हे भक्तो ! हे भारत-व्याकुल धर्मप्राण बालको ! मेरी बात सुनो ! तुमलोगों को अँधेरे में यूँ ही भटकते और दीवारों से थूथन टकराते देखकर मुझे तो दया