जब सुप्रीम कोर्ट के लिए भी सर्वोपरि हुए वर्गहित

जब सुप्रीम कोर्ट के लिए भी सर्वोपरि हुए वर्गहित
October 16 03:21 2021

                                      मज़दूर मोर्चा ब्यूरो

र्गहित साधने के लिये अब जरूरी हो गया था कि सुप्रीम कोर्ट अपने तथाकथित न्याय के लबादे को उतार कर, सीधे-सीधे किसानों के विरुद्ध आ कर खड़ी हो जाय। अपने अभिजात्य वर्ग विशेष के समर्थन में आकर खड़ी हुई सुप्रीम कोर्ट ने अब बहुत साफ शब्दों में किसानों को कह दिया है कि उन्होंने दिल्ली वासियों का गला घोंट रखा है जबकि यह बात बीते 10 माह में कहने की जरूरत किसी सुप्रीम कोर्ट जज ने नहीं समझी थी। अब तक, जब भी मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता था तो वहां से यही जवाब मिलता था कि प्रदर्शन करना जनता का लोकतांत्रिक अधिकार है। इसी सुप्रीम कोर्ट में यह भी स्पष्ट रूप से मान लिया था कि दिल्ली में प्रवेश करने वाली सड़कों पर बेरिकेड्स किसानों ने नहीं लगाये हैं और न ही सड़कों पर उन्होंने कीलें ठोक रखी हैं। यह सारी कारस्तानी सरकार के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने कर रखी है ताकि किसान दिल्ली में प्रवेश न कर सकें।

दरअसल अब तक अभिजात्य वर्ग यानी पुंजीपति वर्ग यही समझे बैठा था कि उनकी पालतू मोदी सरकार किसान आन्दोलन से दो-चार-छह माह में निपट लेगी। किसी को यह उम्मीद न थी कि यह आन्दोलन सालों तक न केवल चल पायेगा बल्कि अधिक से अधिक लोगों में छूत की बिमारी की तरह फैलता जायेगा। पूरे शासक वर्ग को अब यह दिखने लगा कि आन्दोलन केवल किसानों तक सीमित न रह कर समाज के दूसरे वर्गों में भी फैलने लगा है। धर्म व जातियों के नाम पर मेहनतकश वर्ग में फूट डाल कर जिस तरह शासक वर्ग सत्ता पर काबिज रहना चाहता था, उसकी यह आस भी दिन-प्रति दिन धूमिल होती जा रही है। कमेरा वर्ग, धर्म व जाति की दीवारें तोड़ कर अपने वर्ग हितों को पहचान कर लामबंद होने की ओर अग्रसर है। इसी सम्भावित एकता के खतरे को पहचानते हुए और इसे तोडऩे के लिये शासकवर्ग साम्प्रदायिक व जातिय दंगे कराने के लिये भरसक प्रयास कर रहा है।

दिन ब दिन शासक वर्ग के विपरीत होती परिस्थितियों से मोदी सरकार को उबारने के लिये अब सुप्रीमकोर्ट को भी मैदान में उतारा जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि जब आन्दोलन, प्रदर्शन, बंद व धरने आदि होते हैं तो पूरी व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है। आम आदमी को अनेकों तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है। परन्तु इसके लिये कभी भी आन्दोलनकारियों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इसके लिये वह सरकार दोषी होती है जिसकी कुनीतियों के विरोध में जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर होती है। इस तरह के जनांदोलन अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध कांग्रेस और कांग्रेसी हुकूमत के विरुद्ध संघी-भाजपाई करते आये हैं।

ऐसा भी नहीं है कि सड़कों पर धरनेे-प्रदर्शन करते, पुलिस की लाठियां गोलियां खाते व जेलों में बंद कर दिये जाने वाले प्रदर्शनकारी आनंद महसूस करते होंगे ये प्रदर्शनकारी अपने व्यक्तिगत लाभ के लिये ये मुसीबतें नहीं झेलते बल्कि पूरे समाज के लिये लड़कर अपनी कुर्बानी दे रहे होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अब 9 माह बाद यकायक किसानों को दिल्ली शहर का गला घोंटने वाला बता दिया। उन्हें वह मोदी और अमितशाह नज़र क्यों नहीं आते जिन्होंने अपनी राजनीतिक सत्ता के बल पर न केवल शहरवासियों का गला घोंट रखा है बल्कि पूरे देश में हाहाकार मचा रखा है?

लगे हाथ सुप्रीम कोर्ट यह क्यों नहीं बताती कि जब सरकार एवं संसद आवारा हो जाये, संविधान की धज्जियां उड़ाई जाने लगे और बिना मतदान के संसद में जन विरोधी बिल पास कर दिये जायें तो जनता कौनसे कुऐं में जाके पड़े?

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