न्यूज़ क्लिक के प्रवीर पुरकायस्थ का मामला मज़दूर मोर्चा ब्यूरो न्यूज़ क्लिक के संस्थापक एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रवीर पुरकायस्थ को दो अक्टूबर 2023 को ईडी द्वारा गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया था। गिरफ्तारी के वक्त सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी एवं सीआरपीसी में वर्णित गिरफ्तारी के सभी नियमों का उल्लंघन किया गया था। उसी दिन उन जैसे अनेकों पत्रकारों के घर पर भी सुबह सवेरे बड़े ही आतंकित करने वाले ढंग से दिल्ली पुलिस द्वारा छापे मारे गए थे। कुछ पत्रकारों को कई घंटे न केवल हिरासत में रखकर छोड़ दिया गया बल्कि उनके लैपटॉप तथा मोबाइल फोन जैसे तमाम उपकरणों को भी खंगाला गया था।
करीब 225 दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि पुरकायस्थ की गिरफ्तारी ही गलत है। गिरफ्तार करने वाले अधिकारियों ने न तो उन्हें गिरफ्तारी का कोई कारण बताया, न ही एफआईआर की कोई कॉपी दी, न ही उन्हें अपने परिचितों एवं वकील को सूचित करने दिया। ऐसा करके गिरफ्तार करने वाले अधिकारी ने न केवल सम्बन्धित कानूनी धाराओं एवं सुप्रीम कोर्ट की हिदायतों का उल्लंघन किया बल्कि उनके मानवाधिकारों का भी हनन किया।
सर्वविदित है कि आमतौर पर कोई भी मामला सीधे सुप्रीम कोर्ट में नहीं जाता। पहले इलाका मैजिस्ट्रेट, फिर सेशन कोर्ट, फिर हाई कोर्ट और अंत में सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है। हां, यदि मामला मोदी के चहेते पत्रकार अर्नव गोस्वामी का हो तो रात के 12 बजे भी सीधे सुप्रीम कोर्ट में आकर जमानत पा सकता है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि सुप्रीम कोर्ट से नीचे की तमाम अदालतों को गिरफ्तारी की यह अवैधता नज़र क्यों नहीं आई? इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी अवैधता को 30 अप्रैल को समझ कर 15 मई तक फैसले को सुरक्षित रखा। क्यों? क्या पहली नज़र में इतनी छोटी सी बात सुप्रीम कोर्ट को समझने में इतना समय लगता है? इससे भी बड़ी बात तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने अवैध गिरफ्तारी करने वालों के विरुद्ध किसी प्रकार की कोई कार्रवाई करने की कोई जरूरत नहीं समझी।
इस तरह का यह मामला कोई अपवाद नहीं है। देश भर में प्रति दिन इस तरह की गिरफ्तारियां होती रहती हैं जिसका संज्ञान कोई अदालत नहीं लेती। गौरतलब है कि इस मामले में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को समझाया कि पुरकायस्थ की गिरफ्तारी अवैध ढंग से हुई है।
यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए कि सिब्बल अदालत में एक बार पेश होने के लिये 15-20 लाख तक की फीस वसूलते हैं। मतलब बड़ा स्पष्ट है कि किसी के पास यदि सिब्बल जैसा महंगा वकील न हो तो सुप्रीम कोर्ट के अति विद्वान जज गिरफ्तारी की इस अवैधता को समझने में सक्षम नहीं है क्या?
इसी तरह का मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल का भी है। उनकी गिरफ्तारी की अवैधता को सुप्रीम कोर्ट अभी तक नहीं समझ पाई है। हां, उन्हें कुछ राहत देते हुए दो जून तक अंतरिम जमानत जरूर दे दी है। ऐसा ही मामला झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का भी है। ये तो चंद एक बहुचर्चित मामले हैं जो मीडिया में उछल कर सामने आ पाए, वरना ऐसे मामलों की गिनती करना आसान नहीं है। इस सबके बावजूद भी जनता यह कहने को मजबूर है कि उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है।