नरवाना (मज़दूर मोर्चा) नरवाना से मात्र साढ़े तीन किलोमीटर पर स्थित गांव सुन्दरपुरा के 1610 मतदाताओं ने 25 मई को मतदान में भाग न लेकर सरकारी व्यवस्था के प्रति अपना विरोध प्रदर्शित किया। तमाम पुलिस-प्रशासनिक दबाव के बावजूद वोट नहीं डाली गई। मौके पर एसपी, डीसी, एसडीएम, बीडीओ सहित सारा अमला पहुंच गया था लेकिन कोई वोट नहीं डलवा सका। इन ग्रामीणों की मात्र दो ही मांगे हैं कि उनकी तहसील उचाना की अपेक्षा नरवाना कर दी जाए। दूसरी मांग है कि फिलहाल पूरे गांव की जो एक ही खेवट है उसे खंडित करके प्रत्येक भू-स्वामी के नाम पर किया जाय।
ग्रामीणों का कहना है कि किसी भी काम के लिये तहसील मुख्यालय जाने के लिये उन्हें पहले नरवाना आना पड़ता है, फिर वे बस के द्वारा 24 किलोमीटर उचाना पहुंचते हैं। जाहिर है इस पर समय और पैसा काफी बर्बाद होता है। कहने की जरूरत नहीं कि जाति प्रमाणपत्र हो, डोमिसाइल बनवाना हो या कोई भी छोटा-मोटा काम हो, उसके लिये तहसील जाना उन्हें बहुत महंगा पड़ता है। इसी तरह पूरे गांव की एक खेवट होने के चलते किसी भी भू-स्वामी को पटवारी से अपनी फर्द निकलवाने पर चार से पांच हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। यदि यही खेवट व्यक्तिगत हो तो फर्द निकलवाने का खर्चा 300-400 से ज्यादा नहीं आता।
ग्रामीणों का कहना है कि 2017 से पहले उनका गांव उचाना तहसील से जुड़ा हुआ था। जो बाद में राजनीतिक व प्रशासनिक बदमाशी के चलते उचाना तहसील से जोड़ दिया गया। दुर्भाग्य यह रहा है कि इसकी विधानसभा पहले नरवाना होती थी, फिर उचाना कर दी गयी, अब फिर बदलकर नरवाना कर दी गई। यानी कि गांव वालों के लिये बैठे-बिठाये एक बड़ी मुसीबत पैदा कर दी गई जिसे वे आज तक भुगत रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने अपनी इस समस्या को हल करने के लिये पहले कोई प्रयास नहीं किये। वे लगातार तमाम प्रशासनिक अधिकारियों से पत्राचार करने के साथ-साथ अपने राजनेताओं से भी गुहार लगाते रहे हैं; परन्तु किसी के भी कान पर आज तक जूं नही रेंगी।
संदर्भवश सुधी पाठक समझ लें कि तहसील बदलने का काम जि़ला उपायुक्त से लेकर वित्तीय आयुक्त एवं मुख्य सचिव स्तर तक का होता है। जबकि खेवट खंडित करने का काम तहसीलदार स्वयं कर सकता है। बीते 2017 से अब तक यह काम किसी ने भी करके नहीं दिया। दूसरी मजेदार बात यह है कि इस क्षेत्र से हरियाणा के ‘कद्दावर’ नेता आते हैं जो बीसों साल हरियाणा व केन्द्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं। उनकी पत्नी प्रेमलता उचाना से 2014-19 तक विधायक रह चुकी हैं। इतना ही नहीं उनके पूर्व आईएएस पुत्र 2019-24 तक हिसार से लोकसभा सदस्य भी रह चुके हैं। इससे भी मजेदार बात यह है कि वे भाजपा सरकार में भी केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं। और इन सबसे बढक़र बड़ी बात यह है कि 2019 में उचाना से निर्वाचित विधायक दुष्यंत चौटाला राज्य के राजस्व मंत्री के साथ उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। इस सबके बावजूद ग्रामीणों की यह छोटी सी समस्या वे हल नहीं करा सके।
कुछ लोगों का मानना है कि इस बहिष्कार की अपेक्षा सभी ग्र्रामीणों को सरकार के विरुद्ध विपक्ष के हक में मतदान करना चाहिये था ताकि सत्तारूढ़ दल को गहरी चोट लगे। लेकिन हालात ये बता रहे हैं कि सभी राजनेता एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। इस मामले में कल तक जो सत्तारूढ़ थे आज विपक्ष में आ बैठे हैं और न जाने कब कहां जा बैठें? कुल मिलाकर इन राजनेताओं की कोई विश्वसनीयता बची नहीं हैं। इस बहिष्कार को नोटा के नजरिये से भी देखा जा सकता है, यानी कि इन ग्रामीणों को न ये पसंद हैं न वे पसंद हैं।