पांच साल भी नहीं चल सके दो करोड़ रुपये की लागत वाले स्मार्ट शौचालय स्टेनलेस स्टील के शौचालयों में लग गया जंग अब दोबारा लूट कमाई की तैयारी फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) भ्रष्टाचार और लूट कमाई के लिए घोषित की गई मोदी की स्मार्ट सिटी योजना के अंत में एक बार फिर स्मार्ट टॉयलेट के नाम पर लाखों की लूट होगी। दो करोड़ रुपये लागत से वर्ष 2018 में लगाए गए स्मार्ट टॉयलेट तो तीन साल में ही बर्बाद हो गए। अधिकारी ठेकेदार पर कार्रवाई करने के बजाय फिर से इस योजना पर करोड़ों रुपये लूटने-लुटवाने की तैयारी कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही स्मार्ट सिटी का सब्ज़बाग़ जनता को दिखाया था। औद्योगिक नगरी भी स्मार्ट सिटी चुनी गई थी। इसके विकास के लिए प्रतिवर्ष सौ करोड़ रुपये खर्च किए जाने थे। चार साल तक कागजों और योजनाओं पर दौड़ती रही स्मार्ट सिटी 2017 तक कहीं नजर नहीं आई। तब स्मार्ट टॉयलेट का ढिंढोरा पीटा गया। शहर में दो करोड़ की लागत से दस स्मार्ट टायलेट लगाए गए। तब इन बाजार से चार गुना अधिक कीमत यानी बीस लाख रुपये का एक टॉयलेट खरीदे जाने और इनकी गुणवत्ता खराब होने का मुद्दा भी उठा था। इस सबके बीच आठ फरवरी 2018 को केंद्रीय मंत्री किशनपाल गूजर और बडख़ल विधायक सीमा त्रिखा ने सेक्टर 21 में स्मार्ट टायलेट का समारोहपूर्वक उद्घाटन किया। तब इन नेताओं और स्मार्ट सिटी अधिकारियों ने स्टेनलेस स्टील के बने इन स्मार्ट टायलेट के दशकों तक खराब नहीं होने, इनमें ऑटोमेटिक सेनिटरी पैड वेंडिंग मशीन, ऑटो क्लीनिंग सिस्टम, पैनिक बटन आदि लगा होने का दावा किया गया था। उदघाटन के एक महीने के भीतर ही यह स्मार्ट टॉयलेट बेकार साबित होने लगे थे। दो साल के भीतर इन कथित स्टेनलेस स्टील टॉयलटों में जंग लगने लगा और इनकी बॉडी गल कर इस्तेमाल योग्य भी नहीं रह गई। जनप्रतिनिधियों के रिश्तेदार या करीबी होने के कारण ठेकेदार ने टॉयलेट लगाने के बाद कभी पलट कर इनकी सुधि नहीं ली, न ही भ्रष्ट अधिकारियों ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की।
अब प्रदेश सरकार स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्मार्ट सिटी की तर्ज पर स्मार्ट टॉयलेट लगाने की योजना तैयार कर रही है। बताया जा रहा है कि फरीदाबाद से नगर निगम के कार्यकारी अभियंता नितिन कादियान और करनाल के नगर निगमायुक्त अभिषेक मीणा अहमदाबाद गुजरात में लगाए गए स्मार्ट टायलेट का अध्ययन करने जाएंगे। लौटने के बाद विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपेगे। इसके बाद शहर में स्मार्ट टायलेट लगाए जाएंगे।
भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के कारण दो करोड़ के स्मार्ट टायलेटों की बर्बादी देखने के बाद भी यदि मुख्यमंत्री आंख के अंधे और गांठ के पूरे व्यक्ति की तरह इस प्रोजेक्ट पर अपनी मुहर लगाते हैं तो मान लिया जाना चाहिए कि वह भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस का केवल राग अलापते हैं। नए स्मार्ट टायलेट का प्रोजेक्ट पास करने से पहले उन्हें अधिकारियों से स्मार्ट सिटी के स्मार्ट टायलेटों की रिपोर्ट तलब करनी चाहिए। बिना इस्तेमाल केवल दो साल में ही बेकार होने के लिए उन अधिकारियों पर कार्रवाई करनी चाहिए जिन्होंने बीस लाख रुपये में एक टॉयलेट लगवाया था, स्मार्ट सिटी परियोजना के पांच साल पूरे नहीं कर पाने के लिए अधिकारियों और ठेकेदारों से इस नुकसान की भरपाई की जानी चाहिए, लेकिन दबंग नेताओं और चाटुकार व गुमराह करने वाले अधिकारियों से घिरे सीएम ऐसा कर पाएंगे, लगता नहीं है।