बल्लबगढ़ (म.मो.) अम्बेडकर चौक से मोहना को जाने वाली सडक़ पर स्थित सिटी पार्क के एक बड़े भाग (करीब एक एकड़) पर भू-माफिओ का कब्ज़ा हो गया है। इस कब्जे के लिये बीते करीब पचासों साल से साजिश रची जा रही थी।
शहर की जानकारी रखने वाले पुराने लोगों का कहना है कि मौजूदा आकाश सिनेमा वाले स्थान के पीछे तक किसी कुंदन नामक व्यक्ति के खेत हुआ करते थे। उसके बाद बहुत बड़ा खाली मैदान होता था। जिसमें स्कूलों के सैंकड़ों बच्चे हॉकी, फुटबॉल आदि खेला करते थे। इस मैदान व मोहना सडक़ के साथ-साथ एक नाला गुजरता था जिसमें आगरा नहर से पानी आया करता था। यह नाला तत्कालीन थाना, तहसील बस अड्डा आदि के चारों तरफ घूम कर समाप्त हो जाता था। उक्त मैदान व सडक़ के बीच यह नाला काफी चौड़ा होकर एक छोटे तालाब की शक्ल ले लेता था। इस तालाब के किनारे आरएसएस की शाखा लगा करती थी जिसमें शहर के बीस-तीस बच्चे आया करते थे। सारांश यह कि जिस रकबे को भू-माफिया राव बिहारी अपना खेत बताते हैं वह एकदम झूठ है।
जानकार बताते हैं कि साजिशन राव बिहारी ने पटवारी, गिरदावर आदि से मिल-मिलाकर राजस्व खातों में फर्जी एंट्रियां करा ली थी। इन्हीं के आधार पर वे इस ज़मीन की मिलकियत की दावेदारी बीते पचासों साल से ठोकते आ रहे हैं। अपने दावे को पोख्ता करने के लिये 80 के दशक में राव बिहारी ने सडक़ किनारे तालाब में कुछ मलबा आदि डलवा कर थोड़ी ज़मीन तैयार करके उस पर कपड़े बेचने की एक फड़ी लगा कर कब्जा किया था जिसे नगर निगम ने बल पूर्वक हटा दिया था। इस कब्जे व पुराने राजस्व विभाग में एंट्रियों के आधार पर राव बिहारी ने अदालत में सिविल केस दायर कर दिया था।
महत्वपूर्ण बात यह है कि दावे में राजस्व विभाग तथा नगर निगम (तत्कालीन कॉम्पलेक्स) को पार्टी बनाया गया था। इन दोनों सरकारी विभागों में काम करने वाले सरकारी बाबूओं का इस ज़मीन एवं इसके मालिकाना हक से कोई लेना-देना नहीं था। मुकदमा कोई जीते या हारे उनकी बला से। दूसरे शब्दों में जब बाबूओं की कोई रुचि न हो तो राव बिहारी जैसों के लिये इन्हें चुग्गा पानी डालकर पटाना कोई मुश्किल काम नहीं था। लिहाज़ा इन कर्मचारियों की जनता के प्रति गद्दारी एवं भ्रष्टाचार के चलते, राव बिहारी को केस जीतने दिया गया। उसके बाद राव बिहारी ने मोटा-मुनाफा लेकर ज़मीन एक अन्य भू-माफिया गिरोह को बेच दी।
देश की न्याय व्यवस्था में खास बात यह है कि अदालतें केवल वही कुछ देखती व सुनती हैं जो उन्हें दिखाया व सुनाया जाये। मतलब बड़ा स्पष्ट है कि जो कुछ राव बिहारी ने अदालतों को दिखाया वैसा ही कुछ सरकारी कारिंदों ने भी दिखा दिया। ऐसे में यदि अदालतें सच्चाई को जानती भी रही हों तो भी वह अपने आपको कुछ सही कर पाने में असमर्थ पाती हैं। इसी व्यवस्था का लाभ राव बिहारी जैसे लोग उठाते आये हैं।
अदालती दबाव के चलते पिछले दिनों भू-माफियो को जि़ला प्रशासन ने इस जमीन का कब्ज़ा तो दे दिया परन्तु शहर की जनता इतनी उद्वेलित है कि इस कब्जे को टिकने नहीं दे रही। हालात कि गम्भीरता को देखते हुए कब्जेदार भू-माफियो ने एक नया पैंतरा फेंकते हुए इस भूखंड के बदले अन्यत्र कहीं, लक्कड़ पुर अथवा सेकटर 9 के निकट बाइपास पर नया भूखंड देने का विकल्प सुझाया है।