मज़दूर मोर्चा ब्यूरो बीते सप्ताह गीता महोत्सव के सिल-सिले में कुरूक्षेत्र आई राष्ट्रपति मुर्मू के डिजिटल कर कमलों से सिरसा में बनने वाले एक मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास कराया गया है। खट्टर सरकार की अक्ल का नमूना देखिये कि इसके लिये कुल 21 एकड़ ज़मीन ली गई है। एक ओर तो सरकार कहती है कि अस्पतालों की बिल्डिंग सात मंजिल से ऊपर नहीं होनी चाहिये और दूसरी ओर मात्र 21 एकड़ जमीन पर मेडिकल कॉलेज बनाने जा रहे हैं। संदर्भवश रोहतक का मेडिकल कॉलेज 250 एकड़ में है। सबसे कम जगह, 30 एकड़ में फरीदाबाद का ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज है। इसमें आज जगह की सख्त कमी महसूस की जा रही है। इससे निपटने के लिये कई विकल्पों पर विचार हो रहा है।
रिवाड़ी के निकट माजरा गांव में बनने वाला मेडिकल कॉलेज, जिसे एम्स का नाम दिया गया है। इसकी घोषणा $फरवरी 2019 में की गई थी। उस वक्त इसके लिये मनोठी गांव में ज़मीन अधिगृहित कर ली गई थी। बाद में वन विभाग ने इस पर आपत्ति लगा दी तो नई जगह माजरा गांव में खोजी गई। यहां 60 एकड़ ज़मीन तो पंचायत से ले ली गई है, 104 एकड़ ज़मीन किसानों से खरीद ली गई है तथा 100 एकड़ से अधिक ज़मीन अभी खरीदी जानी बाकी है। कछुआ चाल से होती इस प्रगति को देखकर सुधी पाठक बखूबी समझ सकते हैं कि यह एम्स कितने दसकों में पूरा होकर चालू हो सकेगा।
यदि सरकार को जनता व अक्ल से दुश्मनी न होती तो झज्जर जिले के बाडसा गांव में पहले से ही 250 एकड़ में बन रहे अधूरे एम्स को ही पूरा कर लेते और रिवाड़ी के बजाय हिसार अथवा जींद की ओर नये एम्स का निर्माण करते। झज्जर वाले एम्स को बीच में छोडक़र दिल्ली के ही एम्स तथा सफदरजंग अस्पताल में ही घुसमुस करके विस्तार कार्य कर रहे हैं। विदित है कि दिल्ली एम्स के विस्तार के लिये ही बाडसा को चुना गया था। अब चुकी उस पर हुड्डा सरकार की मुहर लग चुकी थी इसलिये उसको भला कैसे पूरा होने दे सकती है मौजूदा संघी सरकार?