फरीदाबाद (म.मो.) खट्टर सरकार ने 23 मार्च के अखबरों में भगत सिंह के नाम पर करोड़ों के विज्ञापन छपवा कर मुख्यमंत्री मनोहर लाल व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा चमकाया। जी हां, इन विज्ञापनों में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के चित्र तो छोटे-छोटे और अपने बड़े-बड़े छपवाये। कोई पूछे इन जुमलेबाज़ों से जब शहीदों को श्रद्धांजलि देने का विज्ञापन छपवाया जाता है तो इनके मुस्कुराते थोबड़ों की वहां क्या आवश्यकता होती है?
इसके बरक्स यहां के विभिन्न मज़दूर बस्तियों में मज़दूरों ने चंदा इकट्ठा करके शहीदों की याद में पुरजोश श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया। ऐसी ही एक सभा का आयोजन इनकलाबी मज़दूर केन्द्र ने भी किया। इसे कवर करने के लिये ‘मज़दूर मोर्चा’ संवाददाता को सरूरपुर औद्योगिक क्षेत्र की नारकीय स्थिति का अनुभव करना पड़ा। बल्लबगढ़-सोहना रोड से सरूरपुर गांव होते हुए इस मज़दूर बस्ती तक पहुंचने के लिये करीब चार किलो मीटर का सफर ऐसा था कि जैसे 40 किलोमीटर का हो। यहां किसी नागरिक सुविधा की बात तो छोडिय़े सडक़ तक नसीब नहीं है।
न्यूनतम वेतन से भी कम पाने तथा इन दुर्गम परिस्थितियों में रहने वाले सैंकड़ों मज़दूरों ने इस श्रद्धांजलि सभा में भाग लेकर भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों को आत्मसात किया। विभिन्न वक्ताओं ने उन्हें बताया कि जिस आजादी के लिये भगत सिंह व उसके साथियों ने आत्म बलिदान किया था उस आजादी पर अंग्रेजों से भी बड़े खतरनाक तानाशाहों ने कब्जा कर लिया है। सत्ता पर अपने इस कब्जे को बनाये रखने के लिये ये लोग जनता को धर्म की अफीम चटाकर साम्प्रदायिक दंगे कराते हैं। इनका दूसरा सिद्धांत यह है कि आम जनता के पास धन नहीं रहना चाहिये, उन्हें केवल जिंदा रहने के लिये अनाज मिलता रहना चाहिये। बेरोजगारी तथा भुखमरी का शिकार होकर ही सस्ती मज़दूरी करने को मजबूर होंगे।
देश की इस बढ़ती भयानक स्थिति से बचने के लिये तमाम मेहनतकश लोगों को एक जुट होना होगा। अपने वर्गहितों को पहचान कर, जाति व धर्म की दीवारें तोडक़र एक जुट होना होगा। यही भगत सिंह का संदेश है और इसी के आधार पर वर्ग संघर्ष चलाकर लुटेरी व्यवस्था के खिलाफ जीत हासिल की जा सकती है।