शिलान्यास एक्सपर्ट मुख्यमंत्री ने यमुना नगर में मेडिकल कॉलेज का पत्थर रखा

शिलान्यास एक्सपर्ट मुख्यमंत्री ने यमुना नगर में मेडिकल कॉलेज का पत्थर रखा
October 03 16:14 2023

फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा)। हाल ही में मुख्यमंत्री मनोहरलाल खटटर यमुना नगर में मेडिकल कॉलेज का शिलान्यास किया। शिलान्यास करना और उसका ढोल पीटना ये इनके लिए बड़ा आसान काम है। उन्हें लगता है कि शिलान्यास कर दो और मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी बन गई। शिलान्यास करने के बाद इनका काम खत्म हो जाता है। बहुत करेंगे तो जैसे मेवला महराजपुर में अस्पताल की दो तीन मंजिला इमारत खड़ी कर दी इस तरह की दो चार पांच और बिल्डिंगें बनी खड़ी हैं। कॉलेजों की बिल्डिंगें बनी खड़ी हैं लेकिन वहां न तो स्टाफ तैनात किया न जनता को कोई सुविधा दी जा रही है। बिल्डिंग बना दी और उद्घाटन कर दिया। ऐसा ही कार्यक्रम ये यमुनानगर में कर ढोल पीटे जा रहे हैं।

खट्टर ने दावा किया कि जनता को बहुत लाभ होगा डॉक्टरों की कमी पूरी हो जाएगी, हरियाणा के साथ हिमांचल की जनता को भी लाभ मिलेगा। शिलान्यास तो कर दिया अस्पताल कब बनेगा इसका कोई ठिकाना नहीं है। हालांकि दावा कर रहे हैं कि हम तीस महीने में इसे बना देंगे। अब विधानसभा का कार्यकाल ही सात आठ महीने बचा है। ऐसे में तीस महीने की घोषणा भी सिर्फ जुमला ही है। अगला चुनाव जीतने की आपकी बिसात बची नहीं है, अब तो दूसरी आने वाली सरकार ही इसे तीस महीने में बनवाएगी। इसी संदर्भ में यह भी जानना जरूरी है कि पिछले दस साल में खट्टर ने कितने शिलान्यास कर लिए और पिछले दस साल में वह कितनी बार घोषणा कर चुके हैं कि हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलेंगे। उन्होंंने कैथल में शिलान्यास कर लिया, जींद, भिवानी, सिरसा, रेवाड़ी में शिलान्यास कर लिया, नारनौल में तो एम्स बना दिया, लेकिन क्या सच में बना दिया? कुछ नहीं किया बस पंचायती जमीनें लेकर उनमें घेरा डाल कर पत्थर लगा दिया, बस बन गया। तकरीबन सबका यही हाल है, करनाल जिले में कुटैल गांव में गांव वालों को काबू करके सौ एकड़ जमीन की घेराबंदी कर दी कि यहां पर मेडिकल यूनिवर्सिटी बनाएंगे। छह साल हो गए मेडिकल यूनिवर्सिटी का तो कहीं जिक्र ही नहीं है। एक छोटा सा सेल बना रखा है कि यह मेडिकल यूनिवर्सिटी है बाकी सब फिजियोथेरेपी का कुछ धंधा कर रहे हैं।

ये सब बना कर ढकोसला, ड्रामा कर सकते हैं काम नहीं कर सकते, जनता को बेवकूफ बनाने में माहिर हैं। दूर क्यों जाते हैं छायंसा के अटल बिहारी मेडिकल कॉलेज को देखिए यह तो बना बनाया और पांच छह साल चला हुआ मेडिकल कॉलेज है। यहां तो रोजाना सैकड़ों की संख्या में मरीज आते थे, सैकड़ों भर्ती होते थे, उनका इलाज होता था आज वहां ओपीडी तक नहीं चल रही, इंजेक्शन लगाने वाला तक कोई नहीं है, इनडोर मरीजों का तो कोई मतलब ही नहीं। पिछले दिनों नेशनल मेडिकल कमीशन की टीम इंस्पेक्शन करने आई कि मेडिकल कॉलेज संचालन की अनुमति तो ले ली लेकिन क्या यहां मानक के अनुसार सारी सुविधाएं हैं। मेडिकल कॉलेज के ओपीडी, आईपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या मानक के अनुरूप है कि नहीं। टीम ने पाया कि यहां तो ओपीडी में गिने चुने मरीज ही हैं और वार्ड में कोई मरीज ही भर्ती नहीं है। टीम ने अस्पताल की अनुमति रद्द कर दी। लेकिन सत्ता में बैठी डबल इंजन की सरकार के लोगों ने एनएमसी के फैसले को खारिज करवा दिया और जल्द ही सारे मानक पूरे किए जाने का झूठा वादा कर दिया। आज तक तो कुछ हुआ नहीं, न ही कुछ होने के आसार नजर आ रहे हैं। छात्र बेचारे दुखी हैं वहां मेस तक की व्यवस्था नहीं है बिजली-पानी की व्यवस्था नहीं है। बिजली आ गई तो ठीक वरना छात्र और मरीज सब अंधेरे और गर्मी में परेशान। खट्टर नए दावे करते हैं कि नए मेडिकल कॉलेज बनाएंगे जो बना हुआ है वह तो इनसे चल नहीं रहा। बात तो चाहे जितनी करवा लो इनसे ये काम नहीं कर सकते, तो ये इनके काम करने के तौर तरीके हैं।

नल्हड़ के मेडिकल कॉलेज का हाल भी अच्छा नहीं है, आधा स्टाफ है, खानपुर में भी वही हाल है। करनाल के मेडिकल कॉलेज का हाल भी बहुत बुरा है। यहां पढ़ाने वाला स्टाफ नहीं है, इंस्ट्रूमेंट नहीं हैं, दवाइयां नहीं हैं, संसाधन नहीं है, मेडिकल कॉलेज चला रहे हैं। हां, एक काम कर दिया इन्होंने जहां एक छात्र की फीस 80,000 हुआ करती थी वह आठ लाख रुपये कर दी। जहां छांयसा के मेडिकल कॉलेज में इलाज हो न हो, छात्रों की पढ़ाई हो न हो, खट्टर साहब ने आठ करोड़ तो पहले कमा लिए और सोलह करोड़ इस साल भी आ जाएंगे। आठ करोड पहले वालों से और इस साल नए बैच वालों से आठ करोड़ कमाएंगे। आठ पिछले साल कमा चुके, इस साल सोलह करोड़ यानी कुल 24 करोड़ रुपये कमाई हो गई, बाकी छात्र और मरीज जाएं भाड़ में। यह हालात बना रखे हैं मोदी-खट्टर की डबल इंजन सरकार ने।

कहते हैं कि डॉक्टरों की कमी पूरी हो जाएगी, डॉक्टरों की कमी तो सरकार पूरी करना ही नहीं चाहती। हर साल मेडिकल कॉलेजों से सैकड़ों छात्र डॉक्टर बन कर निकल रहे हैं लेकिन क्या सरकार ने कभी डॉक्टरों की भर्ती के लिए वैकेंसी निकाली है। प्रदेश में जितने डॉक्टरों की कमी है क्या खट्टर सरकार ने कभी विज्ञापन जारी किया कि हमें इतने डॉक्टर चाहिए। हमें डॉक्टर नहीं चाहिए जी, हर मेडिकल कॉलेज से औसतन 150 डॉक्टर निकलते हैं रोहतक मेडिकल कॉलेज से तो करीब 200- 250 डॉक्टर निकलते हैं, आपने कभी भर्ती किए हैं इतने, आप भर्ती करना ही नहीं चाहते। यह है आपकी सच्चाई जो जनता समझने लगी है।

एक नई बात से ताज्जुब होगा कि भारत सरकार इस क्षेत्र में इतना बड़ा अनर्थ करने जा रही है। एमबीबीएस करने के बाद पीजी यानी एमडी, एमएस में दाखिला करने के लिए नीट की परीक्षा होती है सरकार की एजेंसियां नीट की परीक्षा कराती हैं। नीट में कम से कम पचास प्रतिशत अंक हासिल करने पर ही पीजी में एडमिशन मिलता था।अधिक मेरिट वालों को बेहतर रैंकिंग वाले शिक्षण संस्था मिलते थे। लो मेरिट वालों को कम रैंक वाले मेडिकल कॉलेज में पीजी सीट अलॉट होती थी।

इसका नतीजा यह हुआ कि जो दुकान चलाते थे और पीजी की सीटें एक करोड़, दो करोड़, तीन करोड़ में बेचते थे उनकी सीटें खाली रहने लगीं, उन्होंने शोर मचाया कि आपने जो पचास परसेंट का मानक रखा है इससे हमें तो बड़ा घाटा हो रहा है। उन्होंने मांग की कि पचास परसेंट की जगह पचास परसेंटाइल कर दो। मतलब ये हो गया कि यदि आठ लाख बच्चों ने नीट में एक्जाम दिया है तो चार लाख क्वालीफाई माने जाएंगे। इसके बावजूद सीटें खाली रह गईं तो इन लोगों ने परसेंटाइल को भी हटाने की मांग कर डाली। बताते चलें कि नीट परीक्षा में निगेटिव मार्किंग होती है यानी यदि किसी छात्र के गलत जवाब सही जवाबों से कम हुए तो उसको माइनस मार्क मिलेंगे। अब फैसला यह हुआ है कि अगर किसी के माइनस चालीस तक नंबर आ रहे हैं उसको भी पीजी में दाखिला मिलेगा। समझने वाली बात है कि जो माइनस नंबर वाले हैं या जिन्होंने शून्य अंक हासिल किए हैं वह भी एमडी, एमएस करके बाहर निकलेंगे। क्या लगता है कि ऐसे लोग सही इलाज करेंगे? तो यह चल रहा है यानी जिनके पास पैसे हैं वो पैसे के दम पर एमबीबीएस करेंगे और फिर एमएस एमडी की डिग्री हासिल कर के आपका इलाज करेंगे, तो आपका इलाज कैसा होगा यह बखूबी समझा जा सकता है। खट्टर से आप यही उम्मीद कर सकते है, ये कोई ढंग का काम नहीं करा पाएंगे। अगर चाहें तो कोई कमी नहीं है, हमारे पास इतने संसाधन हैं कि अगर उनका दुरुपयोग न किया जाए उन्हें बर्बाद न किया जाए तो हर जगह होनहार, टैलेंटेड लोगों को एमबीबीएस और पीजी करा सकते हैं लेकिन आपकी इच्छा और नीयत नहीं है।

नल्हड़ और खानपुर में पांच-छह साल पहले दो से चार नॉन क्लीनिकल पीजी शुरू हुईं थी, यानी जिन पीजी वालों को मरीज नहीं देखने होते केवल वे लेक्चरार बन सकते हैंैं, जैसे एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी, सरकार इन दो चार सीटों से आगे आज तक नहीं बढ़ सकी, और संभावना भी नहीं है। नल्हड़ में तो पूर्ण कालिक डायरेक्टर भी नहीं है किसी को अस्थायी रूप से बैठा रखा है, ये जरूरत ही नहीं महसूस करते कि संस्थान को सही ढंग से चलाने के लिए पद भरना है इनकी इसमें कोई रुचि नहीं है।

इन हालात में अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये सरकार जनता के प्रति कितनी संवेदनशील है और उसका कितना भला चाहती है। हां, फरीदाबाद का ईएसआई मेडिकल कॉलेज जो बेहतरीन संस्था है, 2015 में इसका पहला बैच आया था और आज तक जो इसकी उपलब्धियां हैं वो और भी ज्यादा हो सकती हैं, इस संस्था की राह में भी रोड़े अटकाने के सिवा कोई ढंग का काम नहीं किया जा रहा है। जो स्थानीय फैकल्टी है, कॉलेज का मैनेजमेंट है, एमएस, फैकल्टी, डीन आदि मिलकर भरपूर प्रयास से इसको बढ़ावा दे रहे हैं। लगभग सभी ब्रांचों में पीजी शुरू हो गई है, हर ब्रांच में आठ से दस पीजी सीटें हो गई हैं। इससे विशेषज्ञ डॉक्टरों की आपूर्ति बढ़ेगी और मरीजों को गुणवत्ता पूर्ण इलाज मिल सकेगा। लेकिन इन पर ऊपर बैठे मुख्यालय वालों और सरकार का नियंत्रण है, इन लोगों ने जिस तरह शिकंजा कस रखा है, उन हालात में बड़ी कठिनाई से मेडिकल कॉलेज का संचालन किया जा रहा है।

मोदी जी ने पिछले साल घोषणा कर दी कि जिन मेडिकल कॉलेजों में सौ सीटें हैं उन्हें बढ़ा कर डेढ़ सौ कर दिया जाए। ईएसआई मेडिकल कॉलेज में भी सीटें बढ़ा दी गईं लेकिन इस अनुपात में संसाधन और सुविधाएं नहीं दी गईं। मेडिकल कॉलेज परिसर में ही छात्रों के रहने के लिए हॉस्टल की सुविधा बहुत जरूरी है लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। बस घोषणा करनी है काम नहीं करना।

हॉस्टल नहीं बनाने के कारण छात्रों को करीब बीस किलोमीटर दूर सूरजकुंड रोड स्थित एनएचपीसी के हॉस्टल में रखा जा रहा है, जहां से उन्हें लाने ले जाने मेें रोजाना बहुत खर्च हो रहा है, समय बर्बाद होता है, यह सब बर्बाद होता रहे लेकिन इन्होंने हॉस्टल नहीं बनाना देश का जनता का भला तो इन्हें करना नहीं है। हां ढोल पीटने के लिए आज इन्होंने यमुनानगर में शिलान्यास कर दिया कल कहीं और कर देंगे, शिलान्यास का ढेर लगाने में कोई देर नहीं करते। जनता को समझ लेना चाहिए कि ये केवल शिलान्यास के शेर हैं घोषणावीर हैं, झूठ बोलने में माहिर हैं, अब हमें इनके बहकावे में नहीं आना चाहिए।

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Mazdoor Morcha
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