स्कूलों को मान्यता अफसरों व नेताओं की कमाई का एक बड़ा ज़रिया

स्कूलों को मान्यता अफसरों व नेताओं की कमाई का एक बड़ा ज़रिया
March 03 15:47 2024

फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार से प्रदेश में गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों पर कार्रवाई से जुड़ी स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। सरकार पिछले दस साल में हाई कोर्ट में यह रिपोर्ट पेश नहीं कर सकी है, ज़ाहिर है कि अधिकारी ये रिपोर्ट तैयार ही नहीं करते। करें भी क्यों, स्कूलों की मान्यता के गोरखधंधे में उनको लाखों रुपये प्रति दिन की कमाई जो होती है। दूसरे, यदि गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को बंद कर दिया जाए तो सरकार द्वारा पीटे जा रहे शिक्षा का अधिकार के ढिंढोरे की पोल खुल जाएगी।

सभ्य समाज के निर्माण की जिम्मेदारी जिस शिक्षा विभाग पर है वह लालची अधिकारियों और उनको संरक्षण देने वाले पतित नेताओं के कारण भ्रष्टाचार का गढ़ बन चुका है। बताया जाता है कि मोटी कमाई वाला डीईओ पद हासिल करने के लिए ऊपर पांच लाख रुपये पहुंचाने पड़ते हैं, पद मिलने के बाद प्रतिमाह लाखों का पैकेज अलग देना पड़ता है। जो चढ़ावा देने में कमजोर पड़ता है तो उसकी जगह दूसरा व्यक्ति पद हासिल करने के लिए तैयार बैठा होता है। जाहिर है कि यह हर महीने मोटी काली कमाई होने के कारण ही यह पद हासिल करने वालों की होड़ लगी रहती है।

इन अधिकारियों की मोटी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं मान्यता प्राप्त-गैर मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों से आता है। दरअसल छोटी सी जगह में चलाई जा रही शिक्षा की ये निजी दुकानें स्कूल चलाने के लिए जरूरी मानक पूरे न करने के कारण मान्यता हासिल नहीं कर पातीं। अभिभावकों से मोटी फीस वसूल कर फल- फूल रही इन दुकानों के प्रबंधक शिक्षा विभाग को मोटा चढ़ावा चढ़ा कर इन्हें चलाते रहते हैं। शिक्षा विभाग के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार इन निजी स्कूलों से ही प्रतिदिन लाखों रुपये की ऊपरी कमाई होती है।

शिक्षा विभाग ने स्कूलों को मान्यता देने के मानक इतने कठोर बनाए हैं कि निजी तो छोड़ो बहुत से सरकारी स्कूल ही इन पर खरे नहीं उतरते। मानक के अनुसार प्रति चालीस छात्र पर एक शौचालय होना चाहिए, लेकिन अंतरराष्ट्रीय चैरिटी संस्था वाटरएड द्वारा 2016 में किए गए देशव्यापी सर्वे में पाया गया कि सरकारी स्कूलों में 76 छात्रों पर एक जबकि 66 छात्राओं पर एक शौचालय उपलब्ध थे। 76 प्रतिशत सरकारी विद्यालयों में छात्राओं के लिए अलग शौचालय नहीं थे। विकलांग विद्यार्थियों के लिए कक्षा तक पहुंचने के लिए रैंप, का निर्माण जरूरी है। शुद्ध पेयजल, इनडोर खेलों के लिए हॉल व आउटडोर खेल के लिए 1000-2000 वर्ग गज से का मैदान होना आवश्यक है।

कक्षा दस वर्ग गज से छोटा नहीं हो सकता। यदि प्रथम तल है तो कक्षा के बाहर चौड़ी गैलरी, विकलांग विद्यार्थियों के लिए रैंप की व्यवस्था अनिवार्य है। अधिकतर सरकारी स्कूल ये मानक पूरे नहीं करते। ये तो आधारभूत ढांचे की कमी की बात है, पढ़ाने के लिए सबसे जरूरी शिक्षक हैं, लेकिन शायद ही किसी सरकारी स्कूल में सभी विषयों के पूरे शिक्षक हों। अनेक सरकारी स्कूल तो केवल एक शिक्षक के सहारे चलाई जा रहे हैं, लेकिन ये चलाए जा रहे हैं। जबकि मानकों का खौफ दिखाकर शिक्षा विभाग निजी स्कूलों से लाखों रुपये एंठता है। सरकार इन स्कूलों के खिलाफ वैसे भी कार्रवाई करने से बचती है क्योंकि देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है यानी प्रत्येक बच्चे को कक्षा आठ तक अनिवार्य रूप से शिक्षा दी जानी है। इन स्कूलों में लाखों बच्चे स्तरहीन या स्तरीय शिक्षा पाने के लिए जाते हैं। यदि ये बंद कर दिए गए तो लाखों बच्चे शिक्षा पाने से वंचित हो जाएंगे। जिम्मेदार होने के कारण सरकार को इन बच्चों के लिए स्कूलों का प्रबंध करना पड़ेगा। लेकिन कल्याणकारी योजनाएं जिनमें शिक्षा भी शामिल है, के खर्च में लगातार कटौती करने वाली सरकार इस अतिरिक्त आर्थिक बोझ से बचना चाहती है, यही कारण है कि जानबूझ कर निजी स्कूलों पर कार्रवाई नहीं की जाती।

वैसे भी सरकार कंपोजिट के नाम पर कई स्कूलों के बच्चे एक में करके बाकी स्कूल बंद करने पर रही है। सरकारी स्कूलों में मिड डे मील योजना भी लागू है ऐसे में ये लाखों बच्चे यदि सरकारी स्कूलों में पहुंच गए तो खर्च और बढ़ जाएगा, निजी स्कूलों के कारण सरकार को इतनी बड़ी राहत मिली हुई है।

हाईकोर्ट भी निजी स्कूलों पर कार्रवाई करने के लिए सरकार पर दबाव डालती है, जबकि उसे सरकार पर सभी बच्चों के लिए सरकारी स्कूल खोलने और उनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने का आदेश देना चाहिए। निजी स्कूल चल ही इसलिए रहे हैं कि एक तो सरकारी स्कूल बहुत कम हैं, जो हैं भी उनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दी जाती। यदि सरकारी स्कूल ही सही होंगे तो निजी स्कूलों की दुकान अपने आप बंद हो जाएगी। लेकिन न तो हाईकोर्ट और न ही सरकार इस ओर ध्यान दे रही हैं और इसका खामियाजा अभिभावक निजी शिक्षा माफिया के हाथों लुट कर चुका रहा है। शिक्षा माफिया ड्रेस, किताब, स्टेशनरी, कार्यक्रम आदि के नाम पर अभिभावकों से वसूली गई रकम में से बड़ा हिस्सा शिक्षा विभाग को खिलाकर लूट की अनुमति हर साल हासिल करता रहता है।

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Mazdoor Morcha
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