शिक्षानाश का अभियान तेज़ किया, खट्टर सरकार के विरोध में उतरे ग्रामीण

शिक्षानाश का अभियान तेज़ किया, खट्टर सरकार के विरोध में उतरे ग्रामीण
August 31 13:18 2022

मज़दूर मोर्चा ब्यूरो
जनता को शिक्षा से वंचित रखने के लिये सरकार द्वारा चलाये जा रहे अभियान में इस सप्ताह यकायक उस समय तेजी आ गई जब सरकार ने रोहतक, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़, भिवानी, झज्जर, सोनीपत आदि जिलों के 105 स्कूलों को बंद करने का एलान किया। इस एलान को सरकार स्कूलों का बंद करना न कह कर समाहित करना बता रही है। यानी कि सरकार सीधे-सीधे बंद करने का साहस नहीं जुटा पा रही। लेकिन ग्रामीण खट्टर की घोषणा को सही से समझ चुके हैं। इसी के चलते ग्रामीणों ने अपने-अपने गांवों के स्कूलों में ताले जड़ दिये हैं। कुछ स्कूलों में तो विरोधस्वरूप स्टाफ को भी भीतर ही बंद कर दिया।

जहां एक ओर सरकार जनता के खून-पसीने से टैक्स पर टैक्स वसूलने में जुटी है, वहीं जनता को मिलने वाली हर तरह की सुविधा एवं सेवायें हड़पने में लगी है। बुढापा पेंशन तथा विकलांगों को मिलने वाली सुविधाओं में भारी कटौती तो सरकार कर ही रही थी, शिक्षा पर होने वाले खर्च को भी सरकार और अधिक वहन नहीं करना चाहती। इसी नीयत से तमाम सरकारी स्कूलों व कॉलेजों में हजारों शिक्षकों के पद खाली रखे हुए हैं। जिस स्कूल में शिक्षक ही नहीं होंगे तो बच्चे काहे को वहां दाखिला लेंगे?

ढोंग बिखेरने के लिये सरकार हर साल अधिक से अधिक बच्चों को अपने स्कूलों में दाखिल करने का अभियान चलाती है। इस अभियान में केवल वही वंचित एवं मजबूर लोग फंसते हैं जिनके पास निजी स्कूलों की $फीस भरने की क्षमता न हो। जाहिर है ऐसे में सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या घटती जाती है। इसी घटती संख्या के बहाने सरकार स्कूलों को बंद करती जाती है।

जानकारों के अनुसार सरकार का छिपा एजेंडा तमाम सरकारी स्कूलों को निजी शिक्षा व्यापारियों के हाथों बेच खाने का है। जिस तरह से मोदी की केन्द्र सरकार एक-एक करके तमाम सरकारी उपक्रमों को औने-पौने में अपने कार्पोरेट मित्रों को बेच रही है, उसी तर्ज पर खट्टर भी अपने अधिकार क्षेत्र के तमाम उपक्रमों पर गिद्ध दृष्टि जमाये बैठे हैं।

इसके अलावा सरकार का दूसरा उद्देश्य, जहां तक संभव हो सके जनता को अनपढ़ रखना है। वे समझते हैं कि पढ़-लिखने के बाद एक तो उनकी बुद्धि का बेहतर विकास हो जाता है जिसके चलते वे अपने अधिकारों को समझ कर सरकार पर सवाल खड़े करने लगते हैं। दूसरे, पढ़े-लिखे युवक नौकरी की मांग  करने लगते हैं। इन दोनों आपदाओं से बचने के लिये जनता को अनपढ़ रखना ही बेहतर होगा।

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Mazdoor Morcha
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