फरीदाबाद (म.मो.) बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने के नाम पर हरियाणा सरकार द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों का बंटाधार होने से परेशान अभिभावक तो अपनी गरीबी एवं लाचारी के चलते कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन बेहतर शिक्षा देने वाले प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के अभिभावकों ने प्राइवेट स्कूलों द्वारा किये जाने वाले शोषण के विरुद्ध अभिभावक मंच का गठन कर डाला।
धारा 134ए के तहत प्राइवेट स्कूलों में कुछ गरीब बच्चों के लिये सीटें आरक्षित हैं। इन्हीं के लिये इस वर्ष विभिन्न कक्षाओं के लिये 4720 छात्रों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया। जिनमें से 2749 बच्चों को चयनित कर उन्हें स्कूल अलॉट कर दिये गये। परन्तु जब अभिभावक अपने बच्चों के दाखिले कराने निश्चित स्कूलों में पहुंचे तो उन्हें गेट के बाहर से ही भगा दिया गया। बताये गये नियमों के अनुसार वे इस दुव्र्यवहार के विरुद्ध एवं इसका उपाय कराने के लिये सोमवार 20 तारीख को जब सेक्टर 16 स्थित जि़ला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय पहुंचे तो जि़ला शिक्षा अधिकारी तुरन्त अपने कार्यालय से निकल कर अभिाभावकों के बीच पहुंच गई और कहा कि नौवीं व 11 वीं जमात वाले अपने हाथ खड़े करें। इन श्रेणियों के निकले मात्र सात विद्यार्थियों को डीईओ रितु चौधरी ने अपने साथ ले लिया और बाकी पहली से आठवीं वालों को मौलिक शिक्षा अधिकारी मुनीष चौधरी के दफ्तर का रास्ता दिखा दिया। मसले का समाधान करने की बजाय मुनीष चौधरी पिछले दरवाजे से खिसक गई।
अगले दिन मंगलवार को अभिभावक गण फिर से मुनीष चौधरी के दफ्तर आये तो वो दफ्तर से नदारद थीं। विदित है कि पहली जमात से लेकर आठवीं जमात तक के मामले उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
मंगलवार को अभिभावकगण काफी उग्र प्रतीत हुए क्योंकि समाधान तो कोई हो नहीं रहा था उल्टे कुछ बाबुओं द्वारा उन्हें धमकाने के चलते भीड़ इतनी उग्र हो गई कि पुलिस को बुलाना पड़ा। यही सब कुछ बुधवार को हुआ तो मामला उपायुक्त महोदय के नोटिस में लाया गया। उन्होंने तुरन्त नोटिस जारी करके तमाम प्राइवेट स्कूल वालों को चार बजे शाम अपने कार्यालय में बुला लिया। डीईओ रीतु पहले से ही छुट्टी पर थी तो उनकी ओर से एक वरिष्ठ अध्यापक उपायुक्त की इस मीटिंग में पहुंचा। वहां मौलिक शिक्षा अधिकारी मुनीष का कोई अता-पता नहीं था।
दोनों पक्षों की बात सुनकर उपायुक्त ने मामला चंडीगढ बैठे उच्चाधिकारियों की ओर धकेल दिया तथा प्राइवेट स्कूल वालों को कहा कि वे चंडीगढ़ जाकर अपने मामले को सुलझवा लें वरना बतौर उपायुक्त वे तो सरकार के आदेशों को लागू करवाने के लिये पाबंद हैं हीं।
इस मामले में गौरतलब है कि डीईओ रीतु चौधरी ने तो अपने अधिकार क्षेत्र के मामले को तुर्त-फुर्त निपटा दिया। दूसरी ओर मौलिक शिक्षा अधिकारी मुनीष चौधरी का कहीं अता-पता नहीं। पूछ-ताछ करने पर उनके एक बाबू ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मुनीष चौधरी ज्यादा सिरदर्दी मोल नहीं लेती। उनका मानना है कि ये काम तो यूं ही चलते रहते हैं। वे कभी घंटे-दो घंटे के लिये भी दफ्तर आ जायें तो बहुत बड़ी बात है। वे तो हाजरी लगाने के लिये रजिस्टर भी घर ही मंगा लेती हैं। अधिकारियों की मीटिंग में भी वे यदा-कदा ही जाती हैं। उनकी ओर से जारी होने वाले आदेशों पर भी उनकी ओर से ‘फॉर’ करके बाबू ही दस्तखत कर देते हैं। उसने सबसे मजेदार बात यह भी बताई कि बीते 7-8 साल में उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली हैं जबकि इस दौरान उन्होंने अपने दो बच्चों की शादियां भी कर दीं और विदेश यात्रायें भी कर डालीं।
सरकारी गाड़ी का प्रयोग करने में भी उनका कोई मुकाबला नहीं। कोरोना के दिनों में भी उनकी सरकारी गाड़ी हर महीने 900 किलो मीटर तक चलती रही है। उन्हें चाहे कोसी कोकिला वन जाना हो या मथुरा-वृन्दावन, सरकारी गाड़ी की सेवा उपलब्ध रहती है। गाड़ी का ड्राइवर न हो तो क्या हुआ दफ्तर के बाबू तो इस काम के लिये हाजिर रहते ही हैं। दफ्तर का काम भले ही न हो पाये पर मैडम की ड्राइवरी तो करनी ही पड़ती है। उसी बाबू ने यह भी बताया कि मैडम की पहुंच इतनी ऊपर तक है कि बड़े से बड़े अफसर भी उन्हें कुछ नहीं कह सकते, उल्टे मैडम चाहें तो किसी भी अच्छे-भले बाबू या मास्टर की ऐसी-तैसी करा सकती हैं। उनके इसी आतंक के चलते सारा स्टाफ उनसे थर्राता है। 134ए का मसला ज्यों का त्यों पड़ा है।