फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) पूरी तरह से दिवालिया हो चुकी शिक्षा नीति पर पर्दा डालने के लिये भाजपा सरकार नित्य नई-नई घोषणाएं करने में जुटी है। इन घोषणाओं से भाजपा नीति की पुष्टि होती है कि धरातल पर कुछ काम करने की जरूरत नहीं केवल काम का ढोल पीटना काफी होता है।
बीते सप्ताह सैनिक स्कूल कुंजपुरा में भाषण बघारते हुए मुख्यमंत्री खट्टर ने राज्य के हर जि़ले में सैनिक स्कूल खोलने का जुमला छोड़ा था। अब राज्य में 280 ‘पीएम श्री’ स्कूल खोलने की घोषणा की है। वैसे इससे पहले मॉडल संस्कृति स्कूल खोलने का नाटक भी खट्टर जी कर चुके हैं। ‘पीएम श्री’ स्कूल केन्द्र सरकार की एक योजना का नाम है। इनका उद्घाटन करने के लिये केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान 25 अक्टूबर को रोहतक पहुंचे जहां से खट्टर के साथ मिलकर राज्य भर में ऐसे कुछ स्कूलों का श्री गणेश किया गया।
ये कितना बड़ा पाखंड है इसे समझना बहुत जरूरी है। सबसे पहली बात यह है कि इसके नाम पर कोई नया स्कूल बनने नहीं जा रहा और न ही कोई नया स्टाफ भर्ती होने वाला है। खट्टर सरकार के टूटे-फुटे जर्जर स्कूलों पर ही लीपा-पोती करके ‘पीएम श्री’ के फट्टे लगा दिये जायेंगे। स्टाफ की कमी को कुछ हद तक पूरा करने के लिये दूसरे स्कूलों से लाकर यहां तैनात कर दिया जाएगा। जाहिर है जिन स्कूलों से स्टाफ लाया जायेगा वहां पहले से चली आ रही कमी और बढ़ जायेगी। स्कूलों की लीपा-पोती एवं रंग-रोगन आदि करने के लिये फिलहाल 50-50 लाख प्रति स्कूल दिये गये थे। इसके बावजूद जिन स्कूलों की लीपा-पोती ठीक ढंग से नहीं हो पाई उन पर यह फट्टा अभी नहीं लग पाया।
फरीदाबाद के लिये ऐसे नौ स्कूल चिह्नित किये गये थे लेकिन फट्टा केवल तीन स्कूलों पर ही लग पाया। लगभग यही स्थिति राज्य के अन्य जि़लों की भी लम्बी-लम्बी छोडऩे में माहिर जुमलेबाज खट्टर इन स्कूलों में रॉकेट साइंस से लेकर रोबोटेक तक न जाने क्या-क्या पढ़ाने की बातें करते हैं। फिलहाल इन स्कूलों को हरियाणा शिक्षा बोर्ड से हटा कर सीबीएसई से जोड़ा जा रहा है। यदि सीबीएसई के साथ जोडऩे से ही शिक्षा की समस्या हल हो जाती है तो हरियरणा बोर्ड क्यों पाल रखा है, इसे भंग करके सीबीएसई से ही सभी स्कूलों को क्यों नहीं जोड़ दिया जाता?
‘पीएम श्री’ के नाम से खुलने वाले प्रत्येक स्कूल को दो-दो करोड़ रुपये भी दिये जायेंगे। जिससे स्कूल में आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति की जा सके। दरअसल इस तरह से पैसे बांटना अपने आप में ही एक फ्रॉड है। स्कूलों को इस तरह से बांटा गया पैसा शिक्षा बजट में किसी बड़ी सेंधमारी से कम नहीं होता। इस तरह से बांटा गया पैसा अधिकारियों, राजनेताओं व ठेकेदारों के बीच बंट जाता है। इस तरह बांटे गये पैसे से स्कूलों में बनी अनेकों इमारतें उद्घाटन से पहले ही कंडम हो चुकी होती है। उनको गिराने पर होने वाला खर्चा अलग से होता है। कुल मिलाकर शिक्षा विभाग को हरामखोरी व रिश्वतखोरी से मुक्त करने की बजाय खट्टर सरकार को सारा ध्यान नाटकबाज़ी के द्वारा जनता को बहकाने पर रहता है। अभी तक खोले गये तथाकथित मॉडल सांस्कृतिक स्कूलों की दुर्दशा भी देखने लायक है। इन स्कूलों में फीसें तो अच्छी-खासी लगा दी गई है लेकिन पढाने वाले शिक्षक व अन्य सम्बन्धित साजो-समान का नितांत अभाव है।