‘शिक्षा का अधिकार’ कानून का तमाशा बना दिया खट्टर सरकार ने

‘शिक्षा का अधिकार’ कानून का  तमाशा बना दिया खट्टर सरकार ने
January 28 06:45 2022

फरीदाबाद (म.मो.) 14 वर्ष तक की आयु के हर बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार है। इसके लिये उसके पास खर्च करने को पैसा हो या न हो। कानून कहता है कि ये सरकार का दायित्व है कि वह उसकी शिक्षा का प्रबन्ध करे। इस दायित्व को निभाने के नाम पर सरकार ने जो स्कूल आदि खोल रखें हैं उनमें से अधिकांश ढकोसले के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं क्योंकि वहां न तो पढ़ाने वाले हैं और न ही पढऩे का माहौल है।

उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिये इसी कानून की धारा 134 ए का सहारा लेकर सरकार पर दबाव बनाया गया तो कुछ चयनित बच्चों को उन उम्दा स्कूलों में दाखिला कराने की प्रक्रिया अपनाई गई, जिनमें पढ़ाई का स्तर ठीक समझा जाता है। इसके तहत हरियाणा सरकार का शिक्षा विभाग प्रति वर्ष जनवरी, फरवरी, मार्च में एक सर्कुलर जारी करके उम्मीदवार बच्चों को चयन प्रक्रिया में शामिल होने के लिये आमंत्रित करेगी तथा निजी स्कूलों को उनके लिये अपने-अपने यहां 10 प्रतिशत स्थान सुनिश्चत करेंगे।

वर्ष 2021 में हरियाणा सरकार ने इस तरह का कोई सर्कुलर जारी नहीं किया। जाहिर है कि तमाम निजी स्कूलों ने अपने यहां की तमाम सिटें पूरी भर ली। यानी जो 10 प्रतिशत सिटें धारा 134 ए के तहत रिजर्ब रखी जानी चाहिये थीं वो भर दी गई। सितम्बर 2021 में रिवाड़ी के एक अभिभावक ने हाई कोर्ट में हरियाणा सरकार के खिलाख याचिका दायर करके अपने बच्चे के लिये धारा 134 ए का अधिकार मांगा। इस पर हाई कोर्ट द्वारा हरियाणा सरकार को दिये गये नोटिस से उसके हाथ-पैर फुल गये। नोटिस पाकर हरियाणा सरकार को अपनी मूर्खता एवं लापरवाही का अहसास हुआ। इस पर हरियाणा सरकार ने, जो सर्कुलर जनवरी, फरवरी में जारी करना था वह आनन-फानन अक्टुबर में जारी किया। इसका लाभ लेने वाले बच्चों ने तो आवेदन दाखिल कर दिये लेकिन स्कूल वालों के पास तो अब कोई सिटें खाली बची नहीं थी।

राज्य भर के जि़ला शिक्षा अधिकारियों ने चुनाव प्रक्रिया शुरू करके 35000 बच्चों का चयन करके उनमें 10000 बच्चे वे भी शामिल कर दिये जो उनके सरकारी स्कूल में पढ़ते थे। अब यहां प्रश्न यह पैदा हो गया कि 35000 बच्चे तो एक निर्धारित प्रक्रिया द्वारा चुने गये तो शेष 10000 किस आधार पर चुन लिये गये? केवल सरकारी स्कूलों में पढऩा तो कोई आधार नहीं हो सकता।

धारा 134 ए के तहत बच्चों को विभिन्न स्कूलों में दाखिल कराने के लिये, बीते करीब एक माह से अभिभावक अपनी दिहाडिय़ां तोड़ कर कभी स्कूलों के, कभी शिक्षा विभाग के तो कभी उपायुक्त कार्यालय के चक्कर पर चक्कर लगा रहें हैं। इसके बावजूद उन्हें हासिल कुछ भी नहीं हो रहा है। सरकारी अधिकारी उन्हें केवल झूठे आश्वासन देकर बहला रहें हैं। यहां समझने वाली एक और बात यह भी है कि सरकार उन तमाम स्कूलों को उन बच्चों की फीस अदा करेगी जिनको स्कूल दाखिला देंगे। कितनी फीस दी जायेगी यानी फीस की दर क्या होगी, इसके लिये स्कूलों के संगठन एवं सरकार के बीच यह तय हुआ था कि जितना खर्चा हरियाणा सरकार, अपने स्कूलों के माध्यम से बच्चों पर खर्च करती है, उतनी ही फीस प्रति बच्चे के हिसाब से स्कूल वालों को दी जायेगी। यहां एक और घुंडी यह भी है कि यदि स्कूल की फीस उस रकम से कम बनती है तो उसे कम दी जायेगी लेकिन ज्यादा बनने पर ज्यादा नहीं दी जायेगी।

हरियाणा सरकार ने विशुद्ध रूप से धोखा-धड़ी करते हुए प्रत्येक स्कूली बच्चे पर करीब 550 रुपये खर्च दिखा कर इन स्कूलों को देना चाहा था। लेकिन स्कूल वाले पांच साल तक इसे लेने से इनकार करते रहे, अभी पिछले दिनों करीब 16 करोड़ रुपये का बकाया भुगतान स्कूल वालों ने ले लिया। यहां निजी स्कूल वालों का तर्क यह है कि सरकार बताये कि 550 रुपये तय करने का आधार क्या है? इस पर सरकार ने चुप्पी साध रखी है। संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि स्कूली शिक्षा पर होने वाले कुल सरकारी खर्च को, स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की कुल संख्या से तकसीम कर दिया जाय तो प्रति बच्चे का खर्च निकल आता है। यह खर्चा आज कल करीब 4500 बनता है। सरकार की इसी हेरा-फेरी के विरुद्ध निजी स्कूल संगठन लड़ाई लड़ रहा है।

इन परिस्थितियों में बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जब सरकार प्रति स्कूली बच्चे पर इतना भारी खर्च कर रही है तो उसके स्कूल निजी स्कूलों के सामने, किसी भी मामले में टिक क्यों नहीं पा रहे? विदित है कि अधिकांश निजी स्कूलों की फीस इसी के आसपास रहती है। जाहिर है सरकार द्वारा खर्च किये जा रहे बजट में भारी सेंध मारी हो रही है। इस सेंध मारी का विवरण अक्सर ‘मज़दूर मोर्चा’ में प्रकाशित किया जाता रहा है। राज्य के शिक्षा विभाग में हर स्तर पर बैठे अधिकारी सरकारी बजट को लूट कर खाने में जुटे हुए हैं। यदि इस लूट को बंद कर दिया जाय और सारा बजट ईमानदारी से शिक्षा के प्रसार पर खर्च किया जाय तो सरकारी स्कूल भी निजी स्कूलों से बेहतर हो सकते हैं। तमाम अभिभावकों को भी इस विषय पर गौर करनी चाहिये।

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Mazdoor Morcha
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