शर्म-निरपेक्ष गिरोह की वजह से दुनिया में शर्मसार होता धर्मनिरपेक्ष भारत

शर्म-निरपेक्ष गिरोह की वजह से दुनिया में शर्मसार होता धर्मनिरपेक्ष भारत
June 19 16:10 2022

बादल सरोज
(यह टिप्पणी जुमे को हुए उपद्रवों से पहले लिखी गयी है। हालांकि जुमे के दिन हुए प्रदर्शनों ने और उनमें,उनके बहाने घटी हिंसक वारदातों से इस टिप्पणी में कुछ भी परिवर्तित करने योग्य नहीं घटा।सिवाय इसके कि शायर मरहूम निदा फाजली साब का कहा सही साबित हुआ कि ;

रहमान की रहमत हो कि भगवान की मूरत
हर खेल का मैदान यहां भी है वहां भी।
हिंदू सुकूं से है मुसलमां भी सुकूं से
इंसान परेशान यहां भी है वहां भी।
इस बार रायता समेटने की हड़बडिय़ों की शुरुआत भी वहीं से हुयी जहाँ से इसे चौबीस घंटा सातों दिन फैलाने की गड़बडिय़ाँ की जाती हैं।)

दो जून को आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग ढूँढने की अपने ही संघ की युद्ध स्तर पर जारी मुहिम को रोकने की बात बोली। “रोज एक मामला निकालना ठीक नहीं है।” की हिदायत देते हुए वे यहाँ तक बोले कि “वो (मस्जिद में की जाने वाली) भी एक पूजा है हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है। सबके प्रति पवित्रता की भावना है। “साथ ही यह भी कहा कि “आपस में लड़ाई नहीं होनी चाहिए। आपस में प्रेम चाहिए। विविधता को अलगाव की तरह नहीं देखना चाहिए। एक-दूसरे के दुख में शामिल होना चाहिए। विविधता एकत्व की साज-सज्जा है, अलगाव नहीं है।” वगैरा, वगैरा। हालांकि अपने स्वभाव के अनुरूप वे इतना कहने के बाद भी किन्तु परन्तु लगाते हुए ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में श्रद्धाओं, परमपराओं का उल्लेख करके काशी-काण्ड को खुला छोडऩे से बाज नहीं आये।

आरएसएस प्रमुख के इस बयान में लिखे कहे को पडक़र कोई नतीजा निकालने से पहले याद रखना ठीक होगा कि यही मोहन भागवत हैं जो इससे पहले समय समय पर खुद ठीक इसके प्रतिकूल बातें कहते रहे हैं। इन्हीं ने कहा था कि आरक्षण नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, कि आरक्षण का राजनीतिक उपयोग किया गया है और सुझाव दिया था कि ऐसी अराजनीतिक समिति गठित की जाए जो यह देखे कि किसे और कितने समय तक आरक्षण की जरूरत है। यह बात किसी दूसरे अखबार या मीडिया से नहीं अपने घरू अखबार, संघ के मुखपत्र पांचजन्य और ऑर्गेनाइजर में दिए इंटरव्यू में कही थी। इन्हीं ने कहा था कि “मदर टेरेसा की गरीबों की सेवा के पीछे का मुख्य उद्देश्य ईसाई धर्म में धर्मांतरण कराना था।” निर्भया सामूहिक बलात्कार के बाद जब पूरा देश एक साथ विचलित और उबला हुआ था उस दौरान इन्हीं संघ प्रमुख ने कहा था, “रेप की घटनाएं ‘भारत’ में नहीं ‘इंडिया’ में ज्यादा होती हैं।

गांवों में जाइए और देखिए वहां महिलाओं का रेप नहीं होता, जबकि शहरी महिलाएं रेप का ज्यादा शिकार होती हैं।” हालांकि बाद में इस बयान को उन्हें वापस लेना पड़ा था। पशुचिकत्सा में डिग्रीधारी होने के बावजूद दादरी कांड के बाद गौ हत्या पर देश भर में उन्मादी बयानों के बीच इन्होंने ही कहा था कि “अफ्रीका के एक देश में लोग गाय का खून पीते हैं, लेकिन इस बात का ख्याल रखा जाता है कि गाय मरे नहीं।” यह स्थापना भी दी थी कि “विवाह एक सामाजिक समझौता है। यह ‘थ्योरी ऑफ सोशल कांट्रैक्टक्व है, जिसके तहत पति-पत्नी के बीच सौदा होता है, भले ही लोग इसे वैवाहिक संस्कार कहते हैं।” ये कुछ बानगियां भर हैं, उनके ऐसे बयान अनगिनत हैं। इतने अधिक कि एक भरा पूरा ग्रन्थ तैयार हो सकता है और उसे बेतुकी तथा बेहूदा बातों के लिए दिए जाने वाले “इग्नोबल अवार्ड” के लिए नामित किया जा सकता है ।

दो जून को थोड़े थोड़े बदले सुर 5 जून को कुछ ज्यादा ही बदले दिखे जब देश को लगभग कौतुकी विस्मय में डालते हुए भारतीय जनता पार्टी ने आधिकारिक बयान जारी कर दावा किया कि “भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में प्रत्येक धर्म फला-फूला है। भारतीय जनता पार्टी सभी धर्मों का सम्मान करती है।” यह भी कि “बीजेपी किसी भी धर्म के किसी भी धार्मिक व्यक्ति के अपमान की कड़ी निंदा करती है। पार्टी किसी भी विचारधारा के सख्त खिलाफ है, जो किसी भी संप्रदाय या धर्म का अपमान करती है। बीजेपी ऐसी किसी विचारधारा का प्रचार नहीं करती।” इसी बयान में यह भी कहा गया कि “भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के धर्म के अभ्यास का अधिकार देता है। जैसा कि भारत अपनी स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, हम भारत को एक महान देश बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं जहां सभी समान हैं और हर कोई सम्मान के साथ रहता है, जहां सभी भारत की एकता और अखंडता के लिए प्रतिबद्ध हैं, जहां सभी विकास और विकास के फल का आनंद लेते हैं।” वगैरा, वगैरा।

दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष-जो खुद अपने नफरती, उन्मादी और भडक़ाऊ बयानों के लिए कुख्यात हैं -भी अचानक सक्रिय हो उठे और अपनी ही पार्टी के प्रवक्ता के उन्मादी बयान को रिट्वीट करने के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। हालांकि बुरी आदत आसानी से नहीं जातीं – जुबान और कलम फ्रायडियन फिसलन पर फिसल कर मन की बात कह ही जाती है; इसलिए बयान में सच बोल ही पड़े कि “साम्प्रदायिक सद्भावना भाजपा की नीति और विचार के विरुद्ध है।” सोशल मीडिया में मखौल बनने के बाद भी उन्होंने “सदभावना” की जगह दूसरा शब्द जोडक़र संशोधित बयान जारी करने की आवश्यकता नहीं समझी।

हाल के महीनों में नफरती बयानों की सप्तम सुर में बमबारी लगातार तेज से तेजतर करते जाने के बीच आरएसएस और भाजपा का अचानक एकदम से मद्धम सुर में आ जाना अनायास नहीं है। देश के सबसे नफरती चैनल पर, भाजपा के नफरती प्रवक्ताओं की टोली की शीर्ष नफरती प्रवक्ता ने इस बार जो बोला उसकी पूरी दुनिया, खासकर जिनके साथ व्यापार के मजबूत रिश्ते हैं, उस दुनिया के देशों में कड़ी प्रतिक्रिया हुयी। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दुनिया के 16 देश सार्वजनिक रूप से अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज करा चुके हैं। इन देशों के विदेश मंत्रालयों में वहां के भारतीय राजदूतों को बुलाकर आपत्ति दर्ज कराई जा चुकी है। नूपुर शर्मा और नवीन के खिलाफ की गयी कथित कार्यवाही के बावजूद इन देशों की खिन्नता में कमी नहीं आई है।

इन देशों की छोटाई या बढ़ाई से ज्यादा अहम् बात इन देशों के साथ व्यापार की मोटाई और कमाई है। जिस जहरीले प्रचार और हिंसक कार्यवाहियों के विरुद्ध विराट भारतीय अवाम की भावना की संघ भाजपा ने कभी परवाह नहीं की वह गिरोह ताबड़तोड़ दिखावे के कदम उठा रहा है तो सिर्फ इसलिए कि इस बार उसके लाडले कार्पोरेटियों अम्बानी और अडानी के लाखों करोड़ के धंधे पर लात पडऩे के हालात बनते दिखाई दे रहे हैं। जलाऊ गैस और पेट्रोल के धंधे पर आंच आने की आशंका है। प्रतिक्रिया में किये जा रहे भारतीय सामानों और उत्पादों के बहिष्कार के आह्वान इन सहित अनेक कंपनियों की दुकानदारी हमेशा के लिए चौपट कर सकते हैं। इन देशों में काम करने गए करीब पौन करोड़ भारतीयों के रोजगार छिन सकते हैं। इस तरह भागवत और केंद्र तथा दिल्ली की भाजपा में अचानक उमड़े सद्भाव और प्रेम और सब धर्मों के सम्मान और हजारों वर्ष से भारत में सभी धर्मों के आपसी निबाह और आदि इत्यादि वाले बयान एक साथ पाखंड का चरम और कायरता का प्रदर्शन दोनों है। इनके भद्दे बोलवचनों और हिंसक बर्ताव ने दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है, देश की छवि हास्यास्पद और बर्बर बनाई है।

इतिहास गवाह है कि जब-जब भेडिय़ों के फ्लैग मार्च निकालकर मनुष्यों के मन में भय पैदा करने की कुटिल योजनाएं बनाई गयी हैं तब तब इसी तरह के हालात बने हैं ; भेडिय़े मांद से निकलते तक अलग रहते हैं लेकिन निकलने के बाद फिर पंक्तिबद्ध और अनुशासनबद्ध नहीं रहते। अक्सर तो वे खुद अपनों को भी नहीं बख्शते। ये दो प्रवक्ता, जिन्हें भाजपा अब बाहरी लोग और फ्रिन्ज एलीमेंट्स -चिंदीचोर -बता रही है, जिनके खिलाफ दिखावे की कार्यवाही के अलावा कानून के हिसाब से कोई कार्यवाही न करके असल में उन्हें बचा रही है ; वे इस कुनबे में न तो अकेले हैं ना अपवाद हैं।

आरएसएस की पूरी मंडली, मोदी मंत्रिमंडल, भाजपा की राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों- मंत्रियों और नेताओं में ऐसे अनेक हैं – उनके इस तरह के बयान भी अनेक हैं। धंधे को बचाने के लिए गुड़ खाते हुए गुलगुलों से परहेज का दावा करने जैसे ये पाखण्डी बयान (ध्यान रहे कि भाजपा का बयान प्रमुख शीर्ष नेतृत्व के नाम से नहीं अपरिचित और अनजाने फ्रिंज-पदाधिकारियों के नाम से जारी करवाने की “सावधानी” बरती गयी है।) जितनी देर में पड् जाते हैं उतनी देर तक भरोसा करने लायक भी नहीं हैं।
इसके संकेत खुद भागवत महाराज ने कश्मीर फाइल्स की कड़ी में बनी दूसरी पूर्वाग्रही प्रोपेगंडा फिल्म पृथ्वीराज चौहान को टाकीज में बैठकर देखने के बाद दिए बयान से कर दी और इस तरह बता दिया कि खाने के दाँत कौन से हैं दिखाने के कौन से।

इनका संकीर्ण सोच और शर्म-निरपेक्ष आपराधिक साम्प्रदायिकता ने देश की हजारों साल की मजबूत एकता की परम्परा और धर्मनिरपेक्षता को कितने खतरनाक मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है इसका उदाहरण कश्मीर की अरसे से शान्त रही घाटी में लगातार हो रही हत्याओं के रूप में दुनिया और भारत की जनता देख रही है। धर्मनिरपेक्षता भारत की जीवनी शक्ति है -इसे राजाओं या बादशाहों, पार्टियों या सरकारों या नेताओं ने नहीं जनता ने कायम किया है – लिहाजा साफ बात है कि इसकी हिफाजत भी जनता ही कर सकती है। जनता ही करेगी भी।

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Mazdoor Morcha
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