शरीर में आत्मा नहीं, तालमेल प्रणाली कार्य करती है

शरीर में आत्मा नहीं, तालमेल प्रणाली कार्य करती है
October 08 15:04 2022

मेघ राज मित्र
दुनिया के सब से बडे हथियार आत्मा के साथ बहुत से और भी अंधविश्वास जुड़े हुए हैं। जैसे – मुक्ति , भूत, प्रेत, यमदूत, धर्मराज, स्वर्ग, नर्क, पुनर्जन्म। धर्म के नाम पर जो लूट होती है, उस में आत्मा का अहम रोल है। कहते हैं कि आत्मा इतनी शक्तिशाली होती है कि कोई तलवार भी इस को नहीं काट सकती। जहां तक मुक्ति का सवाल है, करोड़ों लोग मरने के नजदीक होकर डाकटरों के पास जाकर अपनी आयु बढाना चाहते हैं। मुक़्त होना कोई भी नहीं चाहता। मुक्ति ढूंढने वालों के अगर 10 प्रतिशत लोग जितना समय मुक्ति ढूंढने में लगाते हैं, उतने समय में सत्ता को बदलने के लिए तैयार हो जाएं तो गले-सड़े प्रबंध से कुछेक बर्षों में ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।

अब हम देखते हैं कि शरीर में आत्मा होती है? अगर होती है तो कहां रहती है? बहुत से लोग कहते हैं कि यह पूरे शरीर में होती है। जिन लोगों की टांगे और बाजू पूरी तरह कट जाते हैं, क्या उनकी आत्मा आधी ही रह जाती है? सटीफन हाकिंग अपनी जिन्दगी के ज्यादा वर्ष अपाहिज रहा। क्या उस के मन में विचार नहीं थे? वह शरीर में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता था? परन्तु फिर भी उस ने दुनियां को विज्ञान से अमीर किया। अब कुछ लोग कहते हैं कि आत्मा ह्रदय में रहती है।

प्रतिदिन हजारों व्यक्तिओं के ह्रदय के आपरेशन धरती पर होते हैं। जिन्दा मुनष्यों के बेकार हुए ह्रदय निकाल कर बाहर फैंक दिए जाते हैं और मृतकों के निकाले हुए ह्रदय डाल दिए जाते हैं। तो क्या उन मनुष्यों की आत्मा बदल जाती है। कुछ लोगों का कहना है कि यह दिमाग में रहती है। परन्तु दिमागों के भी हजारों आपरेशन धरती के अलग-अलग हिस्सों में प्रतिदिन किए जाते हैं। किसी डाकटर को कभी भी किसी आत्मा के दशर्न नहीं हुए। आज तो पूरे सिर को बदलने के प्रयत्न भी सफलता के नजदीक हैं। क्या ऐसे मनुष्यों की आत्मा बदल जाएगी? कभी किसी डाकटर ने किसी आत्मा का भार, रंग, रूप और आकार नहीं बताया है। विज्ञान में मादे की संज्ञा है, जो रंग रूप रखता है, आकार और भार रखता है, वह ही पदार्थ हो सकता है। इस लिए आत्मा पदार्थक वस्तु हो ही नहीं सकती। अगर यह पदार्थ होता तो डाकटरों ने शरीर से निकलते समय इस को पकड़ लिया होता और वापिस शरीर में रख कर व्यक्ति को जिन्दा कर लिया होता। परन्तु ऐसा नहीं है। आत्मा को रूह भी कहा जाता है। कभी किसी ने नहीं बताया कि यह रूह बच्चे में कब प्रवेश करती है और इन आत्मायों की जगह कहां होती है? आज विज्ञानिकों की दूरबीनें अर्ब-खर्ब किलोमीटरों तक चक्कर लगा आई हैं और लगा रही हैं। किसी को इन के रहने की जगह नहीं मिली और न ही इन के गति करने की सपीड किसी महात्मा वर्ग ने बताई है। सिर्फ यही कहा जाता है कि शरीर में आत्मा रहती है।

अब सवाल यह उतपन्न होता है कि यह बच्चे के शरीर में कब दाखिल होती है? गर्भ के पहले दिन सैलों के जुड़ते समय यह सैल दो हिस्सों में टूट जाते हैं। क्या उन बच्चों की आत्मा भी दो हिस्सों में टूट जाती है? 1998 में अमेरिका के शहर टैकसास में एक औरत ने इक_े आठ बच्चों को जन्म दिया। क्या स्त्री पुरूष में जुडऩे वाले सैल जुडऩे के बाद आठ हिस्सों में टूट गए? उन आठों में माता-पिता के गुन तो डी एन ए से प्रवेश कर गए, परन्तु क्या उन की आत्मा भी आठ हिस्सों में टूट गई थी और आठ आत्माएं एक समय ही दाखिल हो गईं? कहते हैं कि आत्मा बच्चे के शरीर में ह्रदय की धडक़न के साथ दाखिल हो जाती है। ह्रदय तो भरूण के तेईसवें दिन ही धडक़ना शुरू कर देता है। छ : माह के बच्चे को डाक्टर बचा ही लेते हैं। दो चार केसों में डाक्टरों ने आपरेशन से पेट में से बच्चा उठा लिया और उस के ह्रदय का आपरेशन कर दिया और वापिस मां के पेट में रख दिया। क्या इस बच्चे की आत्मा मां के पेट से बाहर निकालते समय बाहर निकल गई थी? पेट में रखने से चली गई थी और जन्म समय फिर वापिस आ गई थी? दुनियां में ऐसी बहुत सी उदाहरणें हैंं – जन्म समय पेट में से दो जुडवां बच्चे बाहर निकल आते हैंं और सारी जिन्दगी एक दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं। इन को शयामी बच्चे कहते हैं। क्या इन में एक ही आत्मा होती है, जो जुड़ी होती है अथवा दो आत्माएं होती हैं? जिस शरीर में आत्मा होती है, क्या यह मौत के समय बाहर निकल जाती है? परन्तु हम ने देखा है कि डाकटर मौत के बाद भी बहुत से व्यक्तिओं को बचा लेते हैं। उन के शरीरों को वेंटीलेटर पर रखा जाता है। बनावटी सांस प्रणाली और रक्त प्रणाली से जिन्दा रखा ही नहीं जाता, जिन्दा करने की उदाहरणें भी हमारे पास उपस्थित हैं।

अब अगला सवाल यह उत्पन्न होता है कि जिन व्यक्तिओ को बेहोश कर आपरेशन किया जाता है, क्या उस समय उन की आत्मा को छुट्टी पर भेज दिया जाता है? 27 नवम्बर 1973 को (24 बर्ष की आयु में) एक अस्पताल में अस्पताल के ही एक लडक़े ने अरूणा शानबाग के साथ बलातकार किया। ऐसी चोट लगी कि वह उसी दिन कौमा में चली गई और 42 वर्ष कौमा में रह कर 18 मई 2015 को उस की मौत हो गई। क्या इस औरत की आत्मा पूरा समय शरीर में रही? क्या आत्मा किसी दूसरे की इच्छा से शरीर में से बाहर निकाली जा सकती है? अगर कोई व्यक्ति इस बात से इन्कार करता है तो वह एक तजुर्बा करके देख सकता है।

सायाानाइड की गोली उस की आत्मा को सदा के लिए मुक़्त कर सकती है। दो बार मेरी मुलाकात कुछ ऐसे व्यक्तियों से भी हो चुकी है, जो कहते हैं कि आत्माएं धरती पर अपने अस्तित्व के सिगनल देती हैं। कई लोग भूतघरों में से भूतों द्वारा छोड़े गए सिगनल पकड़ते हैं। असल में वह बड़ी चालाक किस्म के लोग हैं। वह नई किस्म के बाबे पैदा हो रहे हैं। वह लोगों की लूट कर रहे हैं। उन के पास ऐसे यंत्र रखे होते हैं जो आवाज, प्रकाश और तरंगों को सूर्य से उठने वाली चुम्ब्की तरंगों के सिगनल को पकड़ लेते हैं और उन के यंत्रों में ऐसे सिगनल आ भी जाते हैं।

हम जानते हैं कि हमारी धरती के गर्भ में बहुत सा तरल पदार्थ और लोहा भरा पडा हैं। धरती की गतियों के कारण प्रतिदिन बहुत से छोटे-बडे भूकंप आते ही रहते हैं। इन के द्वारा छोड़ी गई किरणें ऐसे यंत्रों के सिगनल में आ जाती हैं। सूर्य से भी सूर्य तूफान उठते रहते हैं और इस तरह ही धरती के चुम्ब्कीय ध्रुव ऐसे विकिरण पैदा करते हैं।

अब अगला सवाल पैदा होता है कि जो व्यक्ति अपने शरीर अथवा अंग दान कर देते हैं तो क्या उनकी आत्मा मुक़्त नहीं होती? मेरे पिजा जी मुक्ति की बातों के विरोधी थे। 2006 में उन्होंने दयानंद मैडीकल कालेज लुधियाना के छात्रों को अपना शरीर दान में दे दिया। उस के बाद तो सैंकडों व्यक्तिओं ने असपतालों को अपने शरीर दान में दे दिए। इन की आत्मायों का क्या बना? क्या इन की आत्मायों की मुक्ति होगी या नहीं?

मुझे बहुत से व्यक्तियों ने पूछा है कि शरीर में बोलता क्या है? मैं उन को पूछ लेता हूं कि रेडीयो और टेलीविजन में बोलने वाली कौन सी चीज होती है? उन का जबाव होता है कि यह तो मशीनी यंत्र हैं। अगर बोलना बंद कर दे तो हम इस को ठीक करवा लेते है। परन्तु मकेनिक इन में आत्माएं तो दाखिल नहीं करते। वह तो इन की बिजली, चुुंबक, प्रकाश पैदा करने वाली प्रणालियों को ठीक करते हैं। हमारा शरीर भी ठीक इस तरह की प्रणालीयों का बना हुआ है। शरीर में सैल होते हैं। सैलों के समूह को हम अंग कहते हैं। कुछेक अंग जुडऩे से अंग प्रणाली बन जाती हैं और कई अंग प्रणालियों का समूह शरीर की रचना करता है। जैसे मनुष्य शरीर में पिंजर प्रणाली, रक्त प्रणाली, सोच विचार प्रणाली, सांस प्रणाली होती हैं। इन में भी आपस में तालमेल होता है। जिनता समय हमारी अंग प्रणाली ठीक रहती हैं, उतना समय हमारा शरीर समूह क्रियाएं करता रहता है। किसी अवश्यक प्रणाली के फेल हो जाने के कारण हमारा शरीर काम करना बंद कर देता है और मौत हो जाती है। जैसे ह्रदय हमारे शरीर की अवश्यक प्रणाली है। ह्रदय फेल हो जाने से हमारा शरीर काम करना बंद कर देता है। परन्तु कई बार डाक्टर ह्रदय को दोबारा चालु कर लेते हैं और शरीर फिर कार्यशील हो जाता है।

शरीर ने चलने फिरने, बोलने और गर्मी सर्दी महसूस करने का यह हुनर कहां से सीखा है? मनुष्य का इतिहास अर्बों बर्ष का है। लगभग तीन सौ करोड़ वर्ष पहले अमीबा अस्त्तिव में आ गया था। अमीबे से मनुष्य के विकास की यात्रा शुरू होती है। यह मछलीयां, चूहे और बांदरों में से होती हुई मनुष्य तक पहुंची हैं । डारविन अनुसार प्रत्येक जीव को जिन्दा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस दौरान आवयश्क अंग विकसित होते जाते हैं और अनवांछित अंग कमजोर होते जाते हैं। आज हम जानते हैं कि अगर चूने में पानी डाल दिया जाए तो उस में से सूं-सूं की आवाज आने लगती है। इस तरह मानव शरीर भी अलग-अलग रसायनिक पदार्थों में होती रसायनिक क्रियायों से बिजली, चुम्ब्की तरंगें और रसायनिक गुन प्राप्त कर गया। आज हमारे दिमाग में सोच विचार का काम करती यह बिजली चुम्ब्की क्रियाएं ही हैं जो हमारी यादाशत को कायम रखती हैं। मरने के बाद जब हमारे शरीर के पदार्थ नष्ट हो जाते हैं तो हमारी रसायनिक, बिजली, चुम्ब्की क्रियाएं भी खत्म हो जाती हैं और नए विचार भी खत्म हो जाते हैं। आत्मा एक लूट का साधन है, और कुछ भी नहीं।

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