शहीदे-ए-आजम के नाम को बेचने में जुटा यादवेन्द्र

शहीदे-ए-आजम के नाम को बेचने में जुटा यादवेन्द्र
January 01 17:52 2023

फरीदाबाद (म.मो.) भाजपाई खट्टर सरकार के टूकड़ों पर पलने वाले, एनएच पांच निवासी यादवेन्द्र सिंह अपने आप को शहीदे आजम भगत सिंह का पौत्र बता कर ‘मेरा परिवार शहीद भगत सिंह परिवार’ के नाम से एक नया नाटक शुरू कर चुका हैं। इससे पूर्व उन्होंने भगत सिंह की मूर्ति संसद भवन में लगवाने तथा उन्हें पूर्ण सम्मान दिलाने के लिये आन्दोलन चलाने की घोषणा की थी। लेकिन जब खट्टर ने उनके मुंह में चेयरमैन रूपी लॉलीपॉप घुसा दिया तो उनकी बोलती बंद हो गई, सारा आन्दोलन धरा रह गया और खट्टर स्तुति में जुट गया।

अब वे, और अधिक कमाई करने के लिये भगत सिंह की तस्वीर को बेचने का धंधा करने जा रहे हैं। मुहूर्त के तौर पर पहली फोटो वे डीसीपी एनआईटी नरेन्द्र कादयान को बेच भी आये हैं। इससे पहले इनके पिता बाबर सिंह भी इसी तरह के पाखंड करके अपने समय की सरकारों से अच्छी-खासी वसूली करते रहते थे। जब सिमेंट ब्लैक में बिका करती थी तो उन्होंने इसकी एजेंसी लेकर अच्छा कारोबार किया था। भगत सिंह के नाम पर एक शिक्षा संस्थान चलाने के लिये सरकार से एनएच तीन में एक भूखंड भी हथिया लिया था। इन बाप-बेटों को भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से कभी कोई लेना-देना नहीं  रहा। कांग्रेस राज आया तो कांग्रेसी हो गये चौटालों का आया तो उनके भक्त हो गये अब खट्टर सरकार की जूतियां उठाने में भी इस नौजवान को कतई कोई परहेज नही ।

एनआईटी थाने के सामने वाले गोल चक्कर में वर्षों पहले स्थापित भगत सिंह की मूर्ति को उखाड़ कर जब खट्टर सरकार ने फिकवा दिया तो उसका विरोध करने की इनकी हिम्मत न हुई। विदित है कि उनकी मूर्ति के स्थान पर खट्टर ने ‘विभाजन विभिषिका’ की पट्टी लगा कर तीन बुत खड़े कर दिये। बहकाने के लिये उन्हें भगत सिंह, चन्द्रशेखर व राजगुरू बता दिया, जबकि वहां इनमें से किसी का भी नाम नहीं लिखा गया और न ही बुतों की शक्ल उक्त तीनों शहीदों से मिलती है। इसके अलावा भगत सिंह का विभाजन की विभिषिका से कोई लेना-देना नहीं क्योंकि वे विभाजन से 16 वर्ष पूर्व ही शहीद हो चुके थे।

पूंजीवाद की सेवा में जुटी भाजपाई सरकार भगत सिंह के क्रांतिकारी एवं साम्यवादी विचारों से भयभीत है। वह किसी भी कीमत पर उनके विचारों को जनता में फैलने नहीं देना चाहती। यह सरकार कभी नहीं चाहेगी कि भगत सिंह आम जनता के बीच हीरो बनकर छायें। ज्यों-ज्यों वे जनता के बीच आयेंगे त्यों-त्यों उनके विचार भी जनता तक पहुंचने लगेंगे। बस यही तो सरकार नहीं चाहती। सरकार तो केवल ‘वीर’ सावरकर, दीनदयाल उपाध्याय तथा श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे साम्प्रदायिकता फैलाने वालों को ही जनता के बीच स्थापित करना चाहती है।

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Mazdoor Morcha
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