फरीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) मुजेसर फाटक से शुरू होकर बल्लभगढ़ तक, रेलवे पटरी के पश्चिम में फैली, आज़ाद नगर मज़दूर बस्ती में, शहीद-ए-आजम भगतसिंह के जन्म दिन 28 सितम्बर को सुबह से ही चहल-पहल थी. लोग गर्व से चर्चा कर रहे थे, क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा की रहनुमाई में, उन्हीं के सहयोग से, उनके मोहल्ले में, देश के असली हीरो, शहीद- ए-आज़म की मूर्ति के अनावरण का कार्यक्रम शाम 5:30 होना था. जहां मूर्ति प्रस्थापित हुई थी, उस छोटे से चौक का नाम भी, बस्ती के साथियों ने, ‘शहीद भगतसिंह चौक’ रखा था. शाम को निर्धारित समय से पहले ही, बड़ी तादाद में स्त्री- पुरुष एवं बच्चे, हाथों में लाल झंडे लिए और गले में भगतसिंह के विचारों की तख्तियां लटकाए इकट्ठे होने शुरू हो गए. आज़ाद नगर के लगभग सबसे पुराने मज़दूर और एटक के जुझारू कार्यकर्ता, कॉमरेड हरी शंकर शाह ने, ज़ोरदार नारों और तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच मूर्ति का अनावरण किया.
संगठन के अध्यक्ष कॉमरेड नरेश तथा महासचिव कामरेड सत्यवीर सिंह ने, शहीद- ए-आज़म भगतसिंह एवं उनके कामरेडों की क़ुर्बानी, उनके विचारों तथा आज़ादी की गौरवशाली क्रांतिकारी विचारधारा को याद रखने, उसे ज़ारी रखने के महत्त्व पर प्रकाश डाला. आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे, ये क्रांतिकारी, अंग्रेजों के साथ-साथ, मज़दूरों के निर्मम शोषण-उत्पीडऩ पर टिकी, उस औपनिवेशिक-सामंती व्यवस्था को भी उखाड़ फेंकना चाहते थे, जिससे गोर अंग्रेज़ों की जगह, देसी-भूरे अंग्रेज़, पहले टाटा-बिड़ला और बाद में अडानी-अंबानी ना लेने पाएं. वे चाहते थे कि सोवियत संघ की तरह भारत भी एक समाजवादी गणराज्य बने. सत्ता मेहनतक़श किसानों और मज़दूरों के हाथ आए. बदकिस्मती से, क्रांतिकारी धारा विजयी नहीं हो पाई, और सत्ता कांग्रेस के हाथ आई जिसके फलस्वरूप पूंजी का राज़ क़ायम हुआ. शोषण-उत्पीडऩ का ख़ूनी पहिया, पहले की तरह ही चल रहा है. देश में कंगाली, बेरोजग़ारी और मंहगाई व्याप्त हो चुकी है.
आज़ादी आंदोलन की तीसरी धारा, हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वाली थी जिसके वारिस, आज दिल्ली की सत्ता में बैठे हैं, और सत्ता के नशे में पूरी तरह गाफि़ल हैं. इस धारा का इतिहास तो बहुत ही शर्मनाक है. इन लोगों ने तो अंग्रेज़ों की मुखबरी की, दलाली की. उनके ‘वीर’ ने तो अंग्रेज़ों से पांच-पांच बार माफ़ी मांगी, उनकी पेंसन खाई और उनकी ताबेदारी की. ऐसे शर्मनाक इतिहास वाली, ये भगवा ज़मात, आज, किस मुंह से, देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांट रही है. मूर्ति अनावरण और सभा के बाद, कई सौ मज़दूरों के जत्थे ने जिसमें, ‘दुर्गा भाभी महिला मोर्चा’ के बैनर तले, बड़ी तादाद में महिलाओं ने, पूरी बस्ती में, नाहर के साथ आखरी छोर तक मोर्चा निकाला और शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के सपनों को साकार करने का अहद लिया. देर शाम निकले इस मोर्चे में गूंजने वाले नारे थे: भगतसिंह के सपनों को मंजि़ल तक पहुंचाएंगे; भगतसिंह तुम जि़ंदा हो- हम सब के अरमानों में; भगतसिंह की राह चलो- संघर्षों की राह चुनो; रोज़ी रोटी दे ना सके जो- वो सरकार बदलनी है; इंकलाब जिंदाबाद-जिंदाबाद जिंदाबाद; साम्राज्यवाद का नाश हो- नाश हो नाश हो; जात धर्म में नहीं बटेंगे – मिलजुलकर संघर्ष करेंगे; ज़ुल्म देखकर आंख मूंदना – है हमको मंज़ूर नहीं; गोरे शासक हारे थे – भूरे शासक भी हारेंगे; पूंजीवाद हो बर्बाद – हो बर्बाद, हो बर्बाद; हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में- संघर्ष हमारा नारा है; पहले भी हम जीते थे – आगे भी हम जीतेंगे; मार्क्सवाद लेनिनवाद जिंदाबाद – जिंदाबाद जिंदाबाद; मज़दूर एकता जिंदाबाद- जिंदाबाद जिंदाबाद; फासीवाद पे हल्ला बोल- हल्ला बोल, हल्ला बोल; आज़ादी की क्रांतिकारी विरासत जिंदाबाद- जिंदाबाद जिंदाबाद; भगतसिंह के विचारों को – घर घर तक पहुंचाना है; लडक़े लेंगे अपने हक़ – भूलो मत भूलो मत; युवा रक्त की गर्मी से- बफऱ् की घाटी पिघलेगी; ये सन्नाटा टूटेगा- नई राह अब निकलेगी।