फरीदाबाद (म.मो.) अक्टूबर-नवम्बर माह, जो मौसम परिवर्तन का समय होता है तो यकायक प्रदूषण में बढोतरी नजर आने लगती है। यही समय होता है धान कटाई का भी। धान के बाद गेहूं बुआई के लिये शीघ्रातिशीघ्र खेत खाली करने के लिये कुछ किसानों को मजबूरन थोड़ी-बहुत पराली जलानी भी पड़ती है। अधिकांश किसान इसे जलाने की बजाय पशु चारे के रूप में इस्तेमाल भी करते हैं। इसके बावजूद प्रदूषण का सारा ठीकरा किसान के पराली दहन पर फोड़ दिया जाता है। उसके खिलाफ फौजदारी-मुकदमे दर्ज होते हैं, भारी जुर्माने लगते हैं और तरह-तरह से इसे प्रताडि़त किया जाता है। लेकिन और अब कहीं कोई पराली का तिनका नहीं जल रहा और उसके बावजूद दिल्ली तथा एनसीआर के वायुप्रदूषण में कहीं कोई कमी नहीं आ रही। वायु गुणवत्ता का स्तर 300-400 तक बना रहता है। जब कभी अच्छी तेज हवा चल जाय अथवा बारिश हो जाय तो कुछ समय के लिये वायु गुणवत्ता में अच्छा-खासा सुधार हो जाता है। परन्तु ये सुधार बहुत ही अस्थाई होता है क्योंकि वायुप्रदूषण के मूल स्रोत तो ज्यों के त्यों ही प्रदूषण का उत्सर्जन करते रहते हैं, जो वायु-वेग से कुछ समय के लिये लुप्त हो जाता है।
वायु प्रदूषण के नाम पर नियंत्रण बोर्ड तथा एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) जैसी दुकानें खोल कर सरकार जनता को यह दिखाना चाहती है कि वह प्रदूषण से मुक्ति दिलाने के लिये कितने भारी-भरकम प्रयास कर रही है। वास्तव में ये उक्त दोनों दुकानें प्रदूषण को घटाने वाला कोई काम नहीं कर रहीं। ये कुछ कर रही हैं तो केवल धन उगाही का काम कर रही हैं। कुछ धन सरकारी खजाने में तो कुछ धन इनकी जेबों में चला जाता है। प्रदूषण की रोक-थाम के नाम पर जो ये दोनों महकमे खड़े कर रखे हैं, इतना काम तो इलाके के थानेदार व तहसीलदार भी कर सकते हैं।
सर्वविदित होने के साथ-साथ ‘मज़दूर मोर्चा’ अनेकों बार प्रकाशित कर चुका है कि प्रदूषण के मुख्य स्रोत सडक़ों से उडऩे वाली धूल, वाहनों से निकलने वाला धुआं खास तौर पर जाम के कारण निकलने वाला धुआं, बिजली की अपर्याप्त आपूर्ति के चलते जनरेटरों के चलने से वायु प्रदूषण बेतहाशा बढ़ता है। घरेलू एवं औद्योगिक गैस के बेतहाशा बढते भाव के चलते लोगों को जो वैकल्पिक ईंधन जलाना पड़ता है वह भी एक बड़ा प्रदूषण स्रोत है। अक्सर देखा जाता है कि गरीब बस्तियों में जब शाम को चुल्हे जलते हैं तो धुएं के गुबार छा जाते हैं। यदि घरेलू गैस के दाम उनकी पहुंच में हों तो वे काहे को धुआं उगलने वाला ईंधन जलायें? इसके अलावा जगह-जगह कूड़ा जलाने खासतौर पर स्क्रैप जलाने से जो धुआं उठता है वह बहुत ही खतरनाक होता है।
उक्त बनाये गये दोनों महकमे प्रदूषण के स्रोतों को रोकने-थामने के लिये न कभी कुछ कर सके और न ही कभी कुछ कर सकेंगे। दरअसल इसमें उनके करने लायक कुछ है भी नहीं। यदि सरकार को जनता के स्वास्थ्य की थोड़ी सी भी चिन्ता होती तो वह खुद ही प्रदूषण के इन स्रोतों को कभी का बंद कर चुकी होती। परन्तु सरकार जनता को बेवकू$फ बनाने के लिये तथा यह दिखाने के लिये कि वह प्रदूषण नियंत्रण के लिये कितना काम कर रही है, उक्त दोनों विभाग कायम करके निश्चिंत है। उसे इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि उसकी इस नाटकबाजी से कितने ही लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के शिकार होकर बेमौत मर रहे हैं। दूसरी ओर जनता को भी इस गंभीर विषय की ओर ध्यान देने की कोई फुर्सत नजर नहीं आ रही, वह भी नेताओं की रैलियों में तथा बाबों की भक्ति में ज्यादा व्यस्त रहना पसंद करती है।