विष्णु नागर यह किस्सा मेरी ससुराल देवास का है। रिटायरमेंट के बाद पति ने मकान, पेंशन सबकुछ पत्नी के नाम करवा दी।पेंशन मिलने के दो साल बाद पति ने पत्नी से सेव की सब्जी खाने की इच्छा जाहिर की। पत्नी ने कहा,जाओ खरीद लाओ। पति ने कहा कि पैसे दो। पत्नी ने कहा कि नौकरी में थे,तब तो खुद ले आते थे,अब भी ले आओ।
पति ने कहा कि सब तो तुम्हें सौंप दिया,अब मेरे पास पैसे कहाँ? बात बिगड़ गई। पति महोदय इतने नाराज हुए कि घर छोडक़र चले गए।पत्नी के पास आनेवाली पेंशन भी बंद करवा दी। खुद लेने और खर्च करने लगे। पत्नी ने पति पर भरणपोषण आदि के चार मुकदमे दायर किए। 17 साल बाद न्यायाधीश के हस्तक्षेप से मामला सुलझा। उन्होंने 50 रुपये देकर बाजार से सेव मँगवाई। फिर उन महोदय की पत्नी से कहा,इन्हें इसकी सब्जी खिलाओ। खैर अब जाकर 79 साल के पति और 72 साल की पत्नी साथ रहने लगे हैं।
वैसे तो सब जानते ही होंगे सेव या सेंव क्या होती है,जिन्हें नहीं पता, उन्हें बीकानेरी भुजिया का पता तो होगा ही।बस कुछ वैसी ही मगर स्वाद में भिन्न। हम मालवियों की बहुत बड़ी कमजोरी सेव है।ऐसा मालवी आदमी-औरत-बच्चा मिलना मुश्किल है,जिसे सेव न पसंद हो मतलब बेहद पसंद न हो। समोसे के साथ सेव। खाना खा रहे हैं तो सेव। मिठाई के साथ सेव। चिवड़े के साथ सेव।मुरमुरे में प्याज काटकर उसमें मिली सेव। सेव की सूखी और गिली सब्जी भी बनती है और फटाफट बनती है। रेडी टू इट मामला है। तो सेव एक है, खाने में उसके उपयोग अनेक हैं। हम तो खाने के वैसे ही दीवाने हैं,बशर्ते मामला शाकाहारी हो और सेव तो ऐसी चीज है साहब कि मालवा से निकले हमें अड़तालीस साल हो गए मगर हम सेव को न भूले। मालवी अब उतनी अच्छी नहीं आती मगर सेव पहले की तरह ही भाती है। पहले तो हम कितनी ही सेव खा जाते थे मगर मन साला भरता ही नहीं था। अब मन भरे न भरे,भरना पड़ता है।
मालवा छोडक़र दिल्ली आने पर जो दर्द हमें झेलने पड़े,उनमें एक दर्द दिल्ली में सेव न मिलने का भी था। जैसे ही कोई मित्र परिचित रिश्तेदार आता था,आता है,उससे सेव जरूर मँगवाते हैं। अब तो खैर आनलाइन भी मिलने लगी है तो संकट दूर हुआ और जनाब हमारी बीवी भी अगर सेव की सब्जी बनाने से इनकार कर देती तो हम खैर 17 साल के लिए तो नहीं मगर चार घंटे के लिए जरूर रूठ जाते। वैसे यह संकट अभी तक आया नहीं। अब सेव न जाने कितनी तरह की बनने लगी है मगर हमें तो वही ट्रेडिशनल सेव ही पसंद है। इस सेव को वैसे रतलामी सेव के नाम से ज्यादा जाना जाता है मगर सेव तो मालवा में हर जगह, कम या ज्यादा अच्छी ही मिलती है। हमने कभी एक कविता- सी लिखी थी-रतलामी सेव। पढि़ए, सिर्फ पाँच पंक्तियों की है:
भारत में रतलामी सेव न होती तो यह देश कब का रसातल में जा चुका होता जा रहा है अभी भी रतलामी सेव भी मगर लोकप्रिय हो रही है। इससे सेव के प्रति हमारा प्रेमातिरेक आप समझ सकते हैं। ओम थानवी समेत सब बीकानेरी भुजिया के दीवाने होंगे।हमने तो बीकानेर जाकर भी वहाँ की भुजिया खाई मगर स्वाद-स्वाद की बात है,हमें तो हमारी सेव ही पसंद है। सेव जिंदाबाद।