अजात शत्रु पर्यावरण सुरक्षा की मुहिम में जुटे सेनानियों की संस्था ‘सेव अरावली’ के 27 मार्च रविवार को इस साल की पहली अरावली यात्रा आयोजित की। ध्यान रहे कि वन और पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये उन्हें बचाने की मुहिम में आम आदमी को जोडऩे के लिये कार्यरत यह संस्था 2020 से पहले लगभग हर महीने यह यात्रा आयोजित करती रही है।
2020 में कोरोना वायरस द्वारा लगाये गये अनर्गल प्रतिबंधों और लॉकडाऊन के चलते संस्था को मासिक यात्रा दो साल के लिये स्थगित रखनी पड़ी। संस्था द्वारा आयोजित यह यात्रा निशुल्क होती है और बच्चे, बूढ़े, जवान सभी के लिये होती है। इस बार की यात्रा अनंगपुर गांव के पास स्थित भारद्वाज झील तक थी। हालांकि अरावली में आज के दिन मौजूद सभी ‘लेक’ या झीलें मानव निर्मित हैं। जो अरावली के बेतहाशा खनन के दौरान अस्तित्व में आई। लेकिन फिर भी आज पर्यावरण सुरक्षा में उनकी अहम भूमिका है।
रविवार को तय शुदा 6 बजे प्रात: के टाईम पर बड़ी संख्या में लोग मानव रचना कॉलेज के सामने इकट्ठा हो गये थे। लगभग साढे छ: बजे गाडिय़ों का काफिला मानव रचना से अनंगपुर गांव होते हुए अरावली में प्रवेश कर गया। कच्चे रास्ते पर लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद एक खुले स्थान पर गाडिय़ों को पार्क कर दिया गया और यहां से शुरू हुई ‘भारद्वाज झील’ के लिये पैदल यात्रा। चारों तरफ काबुली कीकर के घने जंगल से चलते हुये लगभग 250 यात्रियों का जत्था एक अजब उत्साह व खुशी से भरा हुआ था। दिल्ली से सज संवर कर आयी महिलायें व बच्चे थे तो फरीदाबाद की कॉलोनियों व सेक्टरों से आये हुये यात्रियों की भी संख्या कम नहीं थी। कुछ लोग छोटे बच्चों को गोदी में भी लेकर आये थे। बच्चों ही नहीं बड़ों में भी उत्साह व उमंग का माहौल था।
रास्ते भर नये शामिल हुये यात्री दूसरे साथियों से पेड़ों और पक्षियों की जानकारी ले रहे थे और उन्हें यह जानकर हैरानी हो रही थी कि उनके इतना नजदीक स्थित इस जंगल में चीते व लकड़बघ्घे भी रहते हैं। लगभग एक-सवा घन्टे में साढ़े तीन किलो मीटर का रास्ता तय करके यात्रा भारद्वाज झील पहुंची। रास्ते में एक जगह एक गाय का कंकाल भी पड़ा मिला जिसका मांस तो जंगली जानवर खा गये थे लेकिन उसके पेट का पोलिथीन और कचड़ा अभी भी मौजूद था जो हमारी सरकार और समाज की गाय माता सुरक्षा के खोखले दावे की पोल खोल रहा था।
झील साफ पानी से लबालब भरी थी। लोगों ने खूब फोटोग्राफी की संस्था के अध्यक्ष जितेन्द्र ने संस्था द्वारा विकसित किये जा रहे दो जंगलों के बारे में और संस्था के अन्य कार्यों के बारे में जानकारी दी। एक जंगल सैनिक कॉलोनी के सामने तो दूसरा पाली चौकी के पास गुडग़ांव रोड पर विकसित किया जा रहा है। जंगल कम होते रहे पर अफसरोंकी फौज बढ़ती रही।
सेव अरावली और अन्य ऐसी संस्थाओं द्वारा जंगल बचाने व बढ़ाने की मुहिम सराहनीय है जिसके अन्तर्गत इन्होंने हजारों पेड़ लगाये हैं। सेव अरावली ही पिछले साल लगभग 20 हजार पेड़ लगा चुकी है और सैनिक कॉलोनी गेट न-3 पर स्थित इनकी नर्सरी में दसियों हजार की पौध इस साल के पौधारोपण के लिये तैयार है। लेकिन सरकार का क्या करें जो जंगलों के नाश पर तुली है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में जंगलों के अन्तर्गत जो रकबा 1970-71 में 2.25 प्रतिशत था वो 2010-11 तक आते-आते सिर्फ 0.89 प्रतिशत ही रह गया जबकि इसी दौर में वन विभाग में अफसरों की संख्या चार गुना से भी ज्यादा बढ़ गयी। उनके लिये नये-नये पद सृजित करके उनके लूटपाट का पूरा प्रबन्ध किया गया। इस स्थिति को देखते हुए जनता का मानना शायद सही ही है कि वन विभाग को अगर बन्द कर दिया जाये तो न सिर्फ जंगल ही बचेंगे बल्कि जनता के पैसे की भी भारी बचत होगी।