फरीदाबाद (म.मो.) डीएसपी सुरेन्द्र सिंह बिशनोई की हत्या केवल किसी व्यक्ति की हत्या न होकर राज सत्ता के एक चिन्ह की हत्या है। सम्प्रभु सरकार के किसी प्रतिनिधि पर किया जाने वाला हमला सीधे तौर पर सरकार की सम्प्रभुता को चुनौती समझा जाता है। इसी के चलते चंडीगढ़ तक से पुलिस के उच्चतम अधिकारी न केवल घटनास्थल पर पहुंच गये बल्कि अपनी राजशक्ति का भोंडा प्रदर्शन करते हुए पूरे क्षेत्र में जम कर सोटा बजाकर तांडव नृत्य किया। इसके लिये भारी मात्रा में आस-पास के जि़लों से पुलिस बल को इस काम पर लगा दिया गया।
यह सारा तांडव सरकार अपनी इज्जत बचाने, पुलिस बल का मनोबल बढ़ाने तथा अपने काले कारनामों को ढकने के लिये कर रही है। समझने वाली बात यह है कि जब बीसियों वर्ष से सुप्रीमकोर्ट अवैध खनन को रोकने की दुहाई दे रही है तो यह खनन, सरकार चलने कैसे दे रही थी? इससे भी बड़ा सवाल यह बनता है कि ऐसे कामों के लिये न्यायपालिका को ही क्यों आगे आना पड़ता है, क्या सरकारें केवल अवैध धंधेबाज़ी से लूट कमाई करने के लिये ही बनी हैं ?
सरकार भले ही अपनी आंखें बंद करके बैठने का ढोंग करती रहे परन्तु सारी जनता जानती है और देख रही है कि किस प्रकार अवैध खनन द्वारा राजनेता व उनके चहेते ठेकदार व अधिकारी अंधी लूट कमाई कर रहे हैं। उत्खनन करने वालों तथा कराने वाले शासक वर्ग के बीच में एक गहरा गठजोड़ जनता को सा$फ दिखाई देता है। सरकार चाहे चौटालों की रही हो या कांग्रेस की अथवा भाजपाईयों की, यह अवैध धंधा ज्यों का त्योंं चला आ रहा है। हां, धंधे में कुछ चेहरे जरूर सत्ता के साथ-साथ बदलते रहते हैं।
सवाल तो सेवा निवृति के मुहाने पर बैठे डीएसपी बिश्नोई पर भी बनता है। उनके आधीन तावड़ू के दो थाने…थाना सदर व थाना सिटी आते हैं। दोनों थानों में कम से कम 100 पुलिसकर्मी कार्यरत हैं। ऐसे में उन्हें केवल अपने ड्राइवर, गनमैन व रीडर यानी केवल तीन आदमियों के साथ जाकर, वह भी खदानों के अंदर जाकर डंपर रोकने की क्या जरूरत थी? क्या दोनों थानों की पुलिस पूरी तरह से नाकारा थी अथवा वे सब खनन करने वालों से मिले हुए थे? अगर यह बात सही है तो क्या इस बाबत उन्होंने कोई रिपोर्ट बनाकर अपने अधिकारियों को भेजी थी? इस बाबत कोई स्पष्ट जानकारी तो उपलब्ध नही है, परन्तु चर्चा है कि इस हमाम में सभी नंगे हैं।
इतना बड़ा कांड हो जाने के बाद अब जो बेलगाम पुलिस कार्रवाई इलाके में हो रही है क्या इससे बेहतर कार्रवाईयां सही ढंग से इस इलाके में नहीं की जा सकती थी? पुलिस के इस तांडव नृत्य से गांव के गांव खाली हो गये हैं, क्या वे सभी अपराधी रहे होंगे? यदि ऐसा है भी तो पुलिस अब तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी थी? वह क्यों इतने बड़े कांड के होने का इंतजार कर रही थी? अब बताया जा रहा है कि इलाके में चल रहे डम्परों व अन्य वाहनों के न तो कोई दस्तावेज़ हैं और न ही उन पर सही पंजीकृत नम्बर हैं। सवाल उठता है कि पुलिस ने आज तक इन तमाम वाहनों की गम्भीरता से जांच क्यों नहीं की? उत्तर बड़ा स्पष्ट है कि इस तरह के तमाम अवैध धंधे पुलिस एवं प्रशासन की लूट कमाई के बड़े स्रोत हैं।
मेवात क्षेत्र में बढ़ते अपराध, अवैध उत्खनन की जड़ में सरकार की कुछ नीतियां भी जिम्मेदार हैं। जब सरकार ने कुछ खदानों के पटे घोषित कर दिये हैं तो उन्हें विधिवत चालू क्यों नहीं किया जा रहा?
मतलब साफ है चोरी के माल में सब का मुना$फा कई गुणा बढ़ जाता है। इसके अलावा मेवात के इस क्षेत्र में न तो कोई पढ़ाई-लिखाई के उचित अवसर हैं और न ही कोई रोजगार नजर आता है। ऐसे में नौजवानों को माफियाओं द्वारा अवैध धंधों में फसाना बहुत आसान है। इन युवाओं के सामने भी अवैध धंधों व जेल के अलावा तीसरी कोई जगह नहीं है।