फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे भीम सेन कॉलोनी, बल्लबगढ़ निवासी दलित हीरालाल ने डीईओ कार्यालय में ठारूराम आर्य कन्या विद्यालय, डीएवी पब्लिक स्कूल, कुंदन ग्रीन वैली स्कूल और अग्रवाल पब्लिक स्कूल के खिलाफ आरटीई (शिक्षा का अधिकार अधिनियम) का पालन नहीं करने की शिकायत की है। हीरालाल के अनुसार उन्होंने आरटीई के तहत अपनी बेटी का दाखिला कराने के लिए इन चारों विद्यालयों में आवेदन किया था लेकिन सब इनकार कर रहे हैं। डीईओ कार्यालय में ऐसी शिकायत करने वाले केवल हीरालाल नहीं हैं, उनकी ही तरह करीब सौ अभिभावकों ने निजी स्कूलों के खिलाफ शिकायत दी है।
संविधान द्वारा मौलिक अधिकार घोषित होने के बावजूद निजी विद्यालयों के प्रबंधन द्वारा पात्र विद्यार्थियों को दाखिला नहीं देने की वजह साफ है। मोटी कमाई के उद्देश्य से खोली गईं शिक्षा की दुकानों की यदि 25 फीसदी सीटें आरटीई के तहत भर दी गईं तो उन्हेंं दोहरा नुकसान होगा। पहले तो इन सीटों की मोटी फीस खत्म होगी, दूसरे इन विद्यार्थियों को मुफ्त यूनिफार्म, किताब और स्टेशनरी उपलब्ध करानी पड़ेगी।
यह सच्चाई छिपी नहीं है कि यूनिफार्म और किताबों के कारोबार में निजी स्कूलों का मोटा कमीशन बंधा होता है। ऐसे में प्रदेश भर में फैला शिक्षा माफिया गिरोह गरीब विद्यार्थियों को उनका हक नहीं देता। सत्ता से करीबी होने के कारण उसे कार्रवाई का भी डर नहीं रहता। दरअसल, सत्ता के इशारे पर राजनीतिक रैलियों में अपनी बसें भेजने, भीड़ का इंतजाम करने और चंदा देने वाले व्यापारिक स्कूूलों का प्रबंधन इसके बदले सरकार से लूट की खुली छूट हासिल करता है।
शिकायत होने के बावजूद अंत में कार्रवाई तो सरकार को ही करनी होती है, स्कूलों के अहसान के नीचे दबी सत्ता और राजनेता उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होने देते। पूर्व सीएम खट्टर के करीब दस साल के कार्यकाल में लगभग हर वर्ष दाखिले के समय स्कूलों द्वारा मनमानी, अवैध वसूली की शिकायतें की गईं लेकिन उन्होंने आज तक किसी भी स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई की हो इसकी जानकारी नहीं है।
नई नई शिक्षा मंत्री बनीं सीमा त्रिखा भाजपा की विजय संकल्प यात्रा के लिए एक एक दिन में चार सौ, साढ़े चार सौ बसें मुफ्त में बुलवाने में तो अपने पद की हनक का इस्तेमाल करती हैं लेकिन शिक्षा विभाग से संबंधित कार्यों पर निर्णय लेने के प्रश्न पर आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने का हवाला देते हुए बड़े भोलेपन से कहती हैं कि वो क्या ही कर सकती हैं। जब शिक्षा राज्यमंत्री के गृह जनपद में ही निजी स्कूल माफिया आरटीई लागू नहीं कर रहे हैं तो प्रदेश के अन्य जिलों का हाल क्या होगा, समझा जा सकता है।
जिले में शिक्षा जगत की सबसे बड़ी अथॉरिटी होने के कारण डीईओ आशा दहिया इन निजी स्कूलों पर कड़ी कार्रवाई करने मेें सक्षम हैं, वो इन स्कूल वालों को उनका पंजीकरण रद्द कराने की धमकी देकर आरटीई लागू करने को बाध्य कर सकती हैं लेकिन उन्होंने कार्रवाई की गेंद शिक्षा निदेशालय केे पाले में फेक दी है, उनके अनुसार जिले के जितने भी निजी स्कूल आरटीई के तहत आवेदन नहीं ले रहे हैं उनकी रिपोर्ट तैयार कर शिक्षा निदेशालय को भेजी जा रही है। शायद उन्हें भी मालूम है कि यदि उन्होंने सख्ती की तो भाजपा की रैलियों के लिए संसाधन झोंक रहे निजी स्कूल वाले शिक्षा राज्यमंत्री से लेकर पूर्व सीएम तक पहुंच कर उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर देंगे। ऐसे में वो रिपोर्ट बनाने के नाम पर परेशान अभिभावकों को भी संतुष्ट कर रही हैं तो राजनेताओं की नाराजगी भी नहीं ले रही हैं।