फरीदाबाद (म.मो.) अभी तक ग्राम विकास के लिये उपलब्ध तमाम तरह के धन को खर्च करने का पूर्ण अधिकार ग्राम पंचायतों के पास रहा है। इस व्यवस्था के अनुसार ग्राम पंचायत की अपने साधनों से होने वाली कमाई तथा सरकार से मिलने वाली तमाम तरह की ग्रांट को विकास कार्यों पर खर्च करने का पूरा अधिकार सरपंच व पंचों के पास रहता रहा है। लेकिन इस बार खट्टर सरकार ने सरपंचों से यह अधिकार छीन कर एक्सीएन को दे दिया है। इस प्रणाली में दो लाख तक के विकास कार्य सरपंच स्वयं करायेंगे और इससे ऊपर के कार्यों के लिये सरपंच पूरी रकम एक्सीएन के खाते में जमा करायेंगे। पुरानी व्यवस्था में करोड़ों रुपये के काम सरपंच जब खुद कराते थे तो उसमें गोल-माल करके अच्छी-खासी लूट कमाई कर लिया करते थे। इसी लूट कमाई में से नेताओं के स्वागत समारोह तथा उनके गले में नोटों की मालायें भी डला करती थीं। इसी लूट में से तमाम सम्बन्धित अधिकारियों को भी चुग्गा-पानी दे दिया जाता था। इस दौरान राजनेताओं व अफसरों से विकसित हुए सम्बन्धों से भी अच्छे-खासे लाभ प्राप्त हो जाते थे। इन्हीं सब बातों को देखते हुए सरपंची के चुनाव पर होने वाला खर्च करोड़ों तक पहुंचने लगा।
खट्टर सरकार द्वारा ई-टेंडर प्रणाली के नाम से शुरू की गई योजना ने एक प्रकार से सरपंचों के मुंह पर छीकी लगा दी है। अब सरपंच बेचारे रोयें-पीटें नहीं तो क्या करें? उन्हें यह भी साफ दिख रहा है कि जो माल-मलाई उनके हिस्से आने वाली थी वह अब एक्सीएन के माध्यम से पंचायत मंत्री तक पहुंचा करेगी। सरपंचों का मानना है कि जिस तरह से भारी खर्च करके विधायक एवं सांसद लूट कमाई का लाइसेंस प्राप्त करते हैं, उसी तरह वे भी तो अच्छा-खासा खर्च करके अपने स्तर की लूट कमाई का लाइसेंस प्राप्त करते हैं। ऐसे में विधायक से मंत्री बने नेताओं को उनकी लूट कमाई में सेंधमारी करने का क्या हक है?
ई-टेंडर प्रणाली के अलावा खट्टर सरकार ने सरपंचों से उनकी सरपंची छीनने के लिये जो ‘री-कॉल’ यानी ‘सरपंची से हटो’, व्यवस्था लागू करने का प्रस्ताव रखा है, उससे भी सरपंचों का परेशान होना स्वाभाविक है। इस ‘री-कॉल’ व्यवस्था के लागू होने से सरकार जिस सरपंच को जिस दिन भी चाहेगी, पद मुक्त करा देगी। जाहिर है कि करोड़ों रुपये खर्च करके पांच साल के लिये बने सरपंच की नौकरी तो दिहाड़ीदार मज़दूर जैसी हो जायेगी। यानी मालिक जब चाहे उसे काम से चलता कर दे। इस मुद्दे पर सरपंचों का तर्क है कि यदि ‘री-कॉल’ की व्यवस्था इतनी बढिय़ा है तो इसे विधायकों और सांसदों पर भी लागू क्यों नहीं करते? इसके अनुसार जनता जिस दिन चाहेगी उस दिन विधायक की विधायकी और सांसद की सांसदी छीन कर घर बैठा देगी। आज यदि ‘री-कॉल’ व्यवस्था के तहत मुख्यमंत्री खट्टर के बारे में जनता की राय ली जाय तो उनका भी घर बैठना निश्चित है। यानी हमारा कुत्ता तो कुत्ता और तुम्हारा कुत्ता टॉमी।
हालांकि, राज्य भर में सरपंचों के उग्र विरोध एवं सामूहिक आन्दोलन को देखते हुए खट्टर जी काफी घबराये हुए प्रतीत होते हैं। राज्य में जहां कहीं भी वे दौरे पर निकलना चाहते हैं तो सरपंचों के उग्र प्रदर्शन की सम्भावना से घबरा जाते हैं। पंचायत मंत्री देवेन्द्र सिंह का तो जमकर विरोध हो ही रहा है, बख्शा उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को भी नहीं जा रहा जबकि चौटाला का इस मसले से सीधे-सीधे कोई ताल्लुक नहीं है। इसके अलावा चौटाला आते भी ग्रामीण परिवेश से हैं और वह भी जाट समुदाय से। जब आन्दोलनकारी चौटाला को नहीं बख्श रहे तो खट्टर को क्या छोड़ेंगे? दिनांक आठ फरवरी को सूरजकुंड मेले में आने से पूर्व, घबराये खट्टर ने आन्दोलनकारी सरपंच नेताओं को उनके घरों में ही नजरबंद करा दिया।