सरकारी संरक्षण में खूब फल फूल रहा है खून का व्यापार

सरकारी संरक्षण में खूब फल फूल रहा है खून का व्यापार
June 30 07:59 2024

ऱीदबाद (मज़दूर मोर्चा) शहर के निजी ब्लडबैंक स्वैच्छिक रक्तदाताओं द्वारा दान किया गया रक्त बेच कर मोटी कमाई कर रहे हैं। ये आरोप स्वैच्छिक रक्तदाता खेड़ी गूजरान निवासी ओमबीर ने लगाए हैं। दरअसल, इस रक्तदाता को ही 18 जून को रक्त की जरूरत पड़ी तो वो अपना डोनर कार्ड लेकर नीलम बाटा रोड स्थित डिवाइन चेरिटेबल ब्लड बैंक पहुंचे और एक यूनिट रक्त मांगा। नियमानुसार ब्लडबैंक को यह यूनिट उन्हें केवल टेस्टिंग शुल्क यानी 450 रुपये लेकर उपलब्ध कराना होता है, लेकिन वहां मौजूद स्टाफ ने उन्हें ये कहते हुए लौटा दिया कि बैंक में रक्त है ही नहीं। उन्होंने मेट्रो अस्पताल के डॉक्टरों को बताया तो वहां से उन्हें एक पर्ची दी गई। ये पर्ची लेकर वह फिर डिवाइन चेरिटेबल ब्लड बैंक पहुंचे। मेट्रो अस्पताल की पर्ची देखकर उनसे 1750 रुपये वसूल कर एक यूनिट रक्त दे दिया गया। बाद में इसी तरह उन्हें दो यूनिट रक्त के लिए 3500 रुपये चुकाने पड़े।

ओमबीर ने बताया कि वे सात आठ बार स्वैच्छिक रक्तदान कर चुके हैं, डिवाइन चेरिटेबल ब्लड बैंक में भी रक्तदान कर चुके हैं। यहां का डोनर कार्ड होने के बावजूद उन्हें करीब पांच हज़ार रुपये खर्च करने पड़े। ओमवीर जैसे सब लोगों के साथ भी यही होता है। रक्त कोषों के लिए स्वैच्छिक रक्तदान शिविरों का आयोजन कराने वाली एक संस्था के पदाधिकारी ने गुमनाम रहने की शर्त पर बताया कि शिविरों में लिया गया अधिकतर रक्त ये निजी ब्लड बैंक वाले निजी अस्पताल, नर्सिंग होम के लिए दो हजार से पांच हजार रुपये यूनिट की दर से बेचते हैं। इसमें निजी अस्पताल-नर्सिंग होम वालों की भी हिस्सापत्ती होती है।

उनके अनुसार शिविर में सौ से दो सौ यूनिट जो रक्त इकट्ठा होता है, उसकी जमकर कालाबाजारी की जाती है। यही कारण है कि लगभग सभी निजी रक्त बैंक अपना रिकॉर्ड गुप्त रखते हैं। उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि यदि किसी स्वैच्छिक रक्तदाता को खून की जरूरत होती है तो वो उनसे संपर्क करता है। ब्लड बैंक वाले उन्हें भी रक्त नहीं है बता कर लौटा देते हैं, ब्लड बैंकों की इस खुदगर्जी से आहत होकर वो रक्तदान शिविरों का आयोजन बंद करने की सोच रहे हैं।

दरअसल, सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जिलेवार रक्त की उपलब्धता और प्रबंधन के लिए ई रक्तकोष पोर्टल चलाया है। इस पोर्टल पर सभी सरकारी या निजी ब्लडबैंकों को उनके यहां उपलब्ध रक्त और उनके कंपोनेंट का रियल टाइम डेटा अपडेट करना होता है। ई रक्तकोष पोर्टल के अनुसार फरीदाबाद में दो सरकारी ब्लड बैंक, तीन चेरिटेबल ब्लड बैंक और 12 निजी अस्पतालों के ब्लड बैंक हैं। इनमें केवल बीके अस्पताल के ब्लड बैंक को छोड़ कर किसी भी निजी या चेरिटेबल ब्लड बैंक का रिकॉर्ड अपडेट नहीं है। ये आंकड़े इसीलिए अपलोड नहीं करते कि स्टॉक होने पर उन्हें स्वैच्छिक रक्तदाताओं को मुफ़्त में रक्त देना पड़ेगा, जिसका कि वो किसी दूसरे मरीज से तीन से पांच हज़ार रुपये वसूलते हैं।

ओमवीर ने इसकी शिकायत रेडक्रॉस सोसायटी की प्रदेश इकाई के सदस्य मनोज बंसल से कर डिवाइन चेरिटेबल ब्लड बैंक व ऐसे ही अन्य ब्लड बैंकों पर अंकुश लगाने की मांग की है। इस संबंध में मनोज बंसल ने बताया कि यदि किसी व्यक्ति ने शिविर में स्वैच्छिक रूप से रक्तदान किया है तो आवश्यकता पडऩे पर ब्लडबैंक द्वारा उस व्यक्ति को निशुल्क रक्त उपलब्ध कराने का प्रावधान है। ओमवीर की शिकायत को कार्रवाई के लिए विभागीय अधिकारियों के पास भेज दिया गया है।

दरअसल, खून का यह धंधा जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों के संरक्षण में चल रहा है। ब्लड बैंकों का संचालन नियमानुसार किया जा रहा है या नहींं इसकी जिम्मेदारी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की है। एडिमिनिस्ट्रेशन द्वारा प्रत्येक ब्लड बैंक की वार्षिक जांच के साथ कभी भी औचक निरीक्षण करने का नियम है। ब्लड बैंक में साल भर में कितने यूनिट रक्त इक_ा हुआ उसके रक्तदाताओं का ब्यौरा, रक्तदान के लिए दाता को धन तो नहीं दिया गया है, रक्त का संरक्षण मानक के अनुसार हो रहा है या नहीं, स्टाफ की उपलब्धता और मशीनों की स्थिति सहित अन्य महत्वपूर्ण जांचें की जानी चाहिए।

ब्लड बैंकों के जानकारों के अनुसार मानक इतने कड़े होते हैं कि यदि पूर्ण रूप से लागू किए जाएं तो खर्च कई गुना बढ़ जाएगा, ऐसे में संचालक कुछ खास मानक तो पूरे करते हैं बाकियों को अधिकारियों के रहमो करम पर छोड़ दिया जाता है। यदि किसी ब्लडबैंक के खिलाफ रक्तदान के लिए पैसे के लेनदेन की शिकायत होती है तो उसका लाइसेंस निलंबित किया जा सकता है। इन धांधलियों को छिपाने के लिए अधिकारियों को माल मलाई चटाई जाती है।

संभवत: यही कारण है कि सीनियर ड्रग कंट्रोल इंस्पेक्टर करन गोदारा और उनके अधिकारी ब्लड बैंकों की जांच करने के बजाय उनके द्वारा भेजी गई वार्षिक रिपोर्ट को ही सत्य मान कर दाखिल दफ्तर कर देते हैं। ये सब इसलिए होता है कि खून से होने वाली काली कमाई का हिस्सा ये ब्लड बैंक उन तक नियमित पहुंचाते रहते हैं इसी कारण ब्लड बैंकों के खिलाफ होने वाली शिकायतों पर कोई खास कार्रवाई नहीं होती। लगता नहीं है कि ओमबीर की शिकायत पर डिवाइन चेरिटेबल ब्लड बैंक के खिलाफ सीनियर ड्रग कंट्रोल इंस्पेक्टर कोई कड़ी कार्रवाई करेंगे।

संदर्भवश सुधी पाठक जान लें कि आरटीआई कार्यकर्ता तरुण चोपड़ा की शिकायत पर 21 दिसंबर 2022 को तत्कालीन सीनियर ड्रग कंट्रोल इंस्पेक्टर राकेश दहिया की टीम ने कथित सुपरस्पेशलिटी अस्पताल मेट्रो के ब्लड बैंक में गंभीर अनियमितताएं पकड़ी थीं। जो कि इस प्रकार हैं-
1) उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार रक्तदान और प्लेटलेट एफेरेसिस सहित रक्त केंद्र का संचालन चिकित्सा अधिकारी की देखरेख के बिना किया जा रहा है।
2) जांच के दौरान ब्लड बैंक में उपलब्ध रिकॉर्ड तथा रजिस्टर कार्यप्रणाली अनुरूप नहीं पाए गए।
3) मेट्रो ब्लड बैंक द्वारा ब्लड प्लेटलेट कंसंट्रेट आईपी का गुणवत्ता नियंत्रण परीक्षण (Quality Control Test) नहीं किया जा रहा है।
4) रक्त एफेरेसिस प्रक्रियाओं के लिए डोनर काउच ब्लड बैंक में उपलब्ध नहीं पाया गया।
5) डॉक्टर निशा शेरावत को फॉर्म 26 के तहत मेट्रो ब्लड बैंक में चिकित्सा अधिकारी पृष्ठांकित पाया गया, हालांकि उपलब्ध अभिलेखों से ब्लड बैंक केंद्र गतिविधि तथा कार्य प्रणाली के साथ उनका जुड़ाव स्पष्ट नहीं पाया गया।
6) किट का स्टॉक, किट उपयोग और उपलब्धता को सत्यापित करने के लिए किटों की सूची का रखरखाव सही नहीं पाया गया।
7) किट के भंडारण तथा रखरखाव के लिए उपलब्ध रेफ्रिजरेटर पैथोलॉजी लैब में प्रयोग योग्य सामग्री से भरा मिला।
8) अधिकांश रक्त यूनिट्स आधे अधूरे लेबल्स के साथ पाए गए जिन पर रक्त एकत्र करने की तारीख, रक्त किसके द्वारा एकत्र किया गया तथा उसकी एक्सपायरी डेट उन पर नहीं मिली।
9) ब्लड बैंक में प्लेटलेट सांद्रता (Platelet Concentrate) का संग्रहण तथा समाप्ति 5 दिनों के बजाय 6 दिन निर्धारित पाई गई।

राकेश दहिया की रिपोर्ट पर मुख्य निदेशक स्वास्थ्य सेवाएं ने मेट्रो अस्पताल के ब्लड बैंक का लाइसेंस तीन महीने के लिए निलंबित कर दिया था। रसूखदार अस्पताल प्रबंधन ने पंचकूला में अधिकारियों को चढ़ावा चढ़ा कर केवल दो सप्ताह में ही ब्लड बैंक का लाइसेंस बहाल करवा लिया था। राकेश दहिया ने मेट्रो अस्पताल सहित सभी ब्लड बैंकों में गंभीर खामियां पकड़ कर उन पर कार्रवाई की रिपोर्ट तैयार की थी, लेकिन मौत की व्यापारी-लुटेरी ब्लड बैंक लॉबी जिसमें मेट्रो अस्पताल भी शामिल था, सबने मिलकर उनका तबादला करवा दिया और उनका चार्ज अपने पालतू करन गोदारा को दिलवा दिया जो बीते आठ वर्ष से उनके स्याह-सफेद कारनामों की पर्दापोशी कर रहा है। मज़दूर मोर्चा ने दिसंबर 2021 से फरवरी 2022 तक चार सीरीज में मेट्रो व अन्य ब्लड बैंकों में हो रही धांधली की खबरें प्रकाशित की थीं।

इस सीरीज में ‘मेट्रो हॉस्पिटल के ब्लड बैंक में खून का काला व्यापार सुपर स्पेशलिटी होने का दावा खोखला साबित’ शीर्षक से प्रकाशित खबर में मेट्रो अस्पताल के ब्लड बैंक में पकड़ी गई धांधलियां गिनाई गई थीं। ये अनियमितताएं आज भी न केवल मेट्रो अस्पताल के ब्लड बैंक में बल्कि अधिकतर निजी व चेरिटेबल रक्त कोषों में चल रही हैं लेकिन सीनियर ड्रग कंट्रोल इंस्पेक्टर करन गोदारा व उसके ऊपर बैठे राजनीतिक आकाओं को इससे कोई सरोकार नहीं है।

दूसरे शहर के ब्लड बैंकों के मुंह में भी लगा मुफ्त का खून
स्वैच्छिक रक्तदाताओं का जोश देख कर शहर के धंधेबाज ब्लड बैंकों के साथ ही दूसरे शहरों के व्यापारी ब्लड बैंक भी यहां शिविर लगा कर रक्तदाताओं का दोहन कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन के अनुसार यदि कोई ब्लड बैंक किसी दूसरे जिले में स्वैच्छिक रक्तदान शिविर लगाना चाहता है तो उसे स्वास्थ्य मंत्रालय और स्थानीय ड्रग कंट्रोलर से अनुमति लेनी होगी। स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन करने वाली संस्था के सदस्य के अनुसार शहर में दिल्ली, गुडग़ांव के निजी ब्लड बैंक बिना अनुमति के शिविर लगाकर सैकड़ों यूनिट रक्त समेट कर चले जाते हैं। स्थानीय रक्तदाताओं को जरूरत पडऩे पर इनसे रक्त लेने के लिए दूसरे शहर जाना पड़ेगा, फिर भी गारंटी नहीं है कि उन्हें बिना पैसा चुकाए रक्त वापस मिले। इस संबंध में सीनियर ड्रग कंट्रोल इंस्पेक्टर करण गोदारा से उनके फोन नंबर 9990900000 पर संपर्क कर उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया लेकिन उन्होंने फोन ही नहीं उठाया।

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Mazdoor Morcha
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