मज़दूर मोर्चा ब्यूरो विजिलेंस डायरेक्टर शत्रुजीत कपूर के नेतृत्व में भले ही नौकरी बेचने का घोटाला अब सामने आया है, जबकि यह धंधा तो बहुत पुराना है। अभी हाल ही में एचपीएससी के जिस डिप्टी सेक्रेटरी अनिल नागर को रिश्वत लेते दबोचा गया है, उसकी न तो इतनी औकात है और न ही इतनी महारत है कि वह अपने दम इस पूरे खेल को अंजाम दे सके। उसकी तो अभी कुल नौकरी ही पांच-सात साल की हुई है।
जानकार बताते हैं कि सन् 2004 में, जब से एचपीएससी द्वारा परीक्षाओं को कम्प्यूटरीकृत किया गया है तब से पूरे सिस्टम में सेंधमारी का काम शुरू हो गया था जो समय के साथ-साथ विकसित होता चला गया। इस खेल में खिलाड़ी केवल डिप्टी सेक्रेटरी अनिल नागर अकेला नहीं है, वह तो एक प्यादा मात्र है। उसके ऊपर बैठे अफसर व नीचे तैनात कर्मचारियों से लेकर आयोग के चेयरमैन व तमाम सदस्य भी शामिल हैं। नौकरियां बेचने के साथ-साथ राजनेताओं व बड़े अफसरशाहों की नालायक औलादों को भी उन उच्च पदों पर तैनातियां मिल जाती हैं जिनके वे लायक नहीं होते। दूसरी ओर वे लोग वंचित रह जाते हैं जो लायक होते हैं। इसी के परिणामस्वरूप पूरी नौकरशाही निकम्मी व भ्रष्ट होती जा रही है।
‘मज़दूर मोर्चा’ के 3-9 अक्टूबर के अंक में लिखा गया था कि किस तरह से प्रभावशाली लोग अपनी सुविधा एवं इच्छानुसार अपने बच्चों के लिये परीक्षा केन्द्र का चुनाव करते हैं। इसी सुविधा का लाभ उठा कर वे लोग अपने बच्चों के पास हो जाने का जुगाड़ बना लेते हैं। बाकी लोग अपने-अपने तरीके से ऐसे ही जुगाड़ करते हैं। ऐसे-ऐसे भी उदाहरण हैंअसली अभ्यार्थी की जगह परीक्षा में कोई अन्य बैठ रहा होता है। ऐसे ही हेरा-फेरी से एचसीएस बने कुछ लोग अब आईएएस भी बन चुके हैं।
इन हथकंडों की ओर अब विजिलेंस का ध्यान गया तो हेरा-फेरी मास्टरों में भगदड़ मची हुई है। परीक्षा केन्द्र पर बायोमीट्रिक प्रणाली से लिये गये अंगूठे के निशानों का मिलान जब नियुक्ति के समय किया जाने लगा तो अनेकों अभ्यार्थी जो तहसीलदार बनने आये थे, अपराधी घोषित हो गये। इसका असर यह पड़ा कि अनेकों चयनित हो चुके तहसीलदार नियुक्त होने ही नहीं आये। जाहिर है कि अपराधी बनने से तो तहसीलदारी का ख्वाब छोडऩा ही ज्यादा बेहतर रहेगा।
ये तो चंद एक उदाहरण है जो शत्रुजीत कपूर के नेतृत्व में बिजिलेंस द्वारा छेड़े गये अभियान का परिणाम हैं। यदि इसी अभियान को और गहराई तक चलाया जाय तो बीते बीसियों बरस के घोटाले भी सामने आयेंगे। लेकिन इतनी बिसात खट्टर सरकार की नहीं है अंदेशा तो यह भी जताया जा रहा है कि मौजूदा अभियान को बीच में ही न रोक दिया जाय क्योंकि इसकी तपिश न केवल मोटी रकम देकर नौकरी खरीदने वालों तक पहुंच रही है बल्कि अनेकों उच्च अफसरशाह व राजनेता भी इससे परेशान हो उठे हैं। उनके दबाव के चलते कहीं कपूर को ही न चलता कर दिया जाय।