मज़दूर मोर्चा ब्यूरो हरियाणा विधानसभा के 6 विधायकों-सोहना से भाजपा के संजय सिंह, सढ़ोरा से कांग्रेस की रेणु बाला, सोनीपत से सुरेन्द्र पवार, सफीदों से सुभाष गांगोली और बादली से कुलदीप वत्स व फिरोजपुर झिरका से मामन खान को धमकियां मिली तो सरकार ने उनकी सुरक्षा बढ़ाने का निर्णय किया है। प्रत्येक विधायक की सुरक्षा के लिये चार-चार सशत्र पुलिसकर्मी तैनात रहते हैं। फिलहाल इनके पास अपेक्षाकृत हल्के हथियार रहते हैं जिनके स्थान पर बेहतर मारक क्षमता वाली एके-47 बंदूक दी जा रही है। इसके अलावा इन सुरक्षाकर्मियों को विधायकों के घरेलू काम करने से रोक कर बेहतर ट्रेनिंग की व्यवस्था भी की जा रही है।
विदित है कि अधिकांश सुरक्षाकर्मी विधायकों एवं मंत्रियों के घरेलू काम करते-करते उनके परिवारों में इस प्रकार घुल-मिल जाते हैं कि वर्षों-वर्षों तक वहीं जमे रह कर बिल्कुल नाकारा हो जाते हैं। नियमानुसार तीन से छ: माह के बाद इन सुरक्षाकर्मियों का तबादला हो जाना चाहिये।
बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि किसी भी व्यक्ति के चुनाव जीतने यानी विधायक अथवा मंत्री बनने पर उसकी जान को खतरा क्यों हो जाता है? क्या वह चुनाव जीतने के बाद इतना अलोकप्रिय हो जाता है कि उसकी जान के लाले पड़ जाते हैं?
जाहिर है कि पदासीन होने के बाद ये राजनेता जिस तरह के जन विरोधी एवं लूट-मार के धंधे करते हैं, तरह-तरह के गिरोहों का पालन-पोषण करते हैं उसी के चलते ये लोग जनता में इतने बदनाम हो चुके होते हैं कि इनके अपने मतदाता ही इन्हें दुश्मन नज़र आने लगते हैं। चुनावी वायदे भूल कर जनप्रतिनिधि जब केवल अपना घर भरने में जुट जाता है तो लोकप्रियता कहां बचेगी? ऐसे में अपने ही लोगों के बीच जाने के लिये उन्हें पुलिस घेरे की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन वे नहीं जानते कि जब जन आक्रोश उठेगा तो उसके सामने यह घेरा कभी नहीं टिक पाता।
विधायकों तथा उनके बल पर टिकी सरकार को अपनी सुरक्षा की तो बहुत चिंता है लेकिन आम जनता की सुरक्षा से उनका कोई लेना-देना नहीं। जिस तरह की धमकियां उक्त विधायकों को मिली बताते है उस तरह की न केवल धमकियां बल्कि वारदातें आम लोगों के साथ होना रोजमर्रा की बात हो गई है। सुरक्षा देना तो दूर की बात पुलिस आसानी से एफआईआर तक दर्ज नहीं करती।