राज्य मानवाधिकारी आयोग में अध्यक्ष, सदस्य और सचिव का पद महीनों से खाली फऱीदाबाद (मज़दूर मोर्चा) काम नहीं काम का ढिंढोरा पीटने में माहिर सीएम खट्टर अपनी सरकार की असफलताएं छिपाने के लिए उन संस्थाओं को ही बेकार करने पर तुले हैं जो उनकी फज़ीहत कर सकती हैं। हरियाणा राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) इनमें से एक है। झूठे आंकड़ों और दावों के जरिए राज्य की सुनहरी तस्वीर पेश करने वाले खट्टर एसएचआरसी का अध्यक्ष, सदस्य और सचिव ही नहीं नियुक्त कर रहे हैं ताकि राज्य में हो रहे मानवाधिकार हनन के मामलों के कारण सरकार की फज़ीहत न हो।
हृदयाघात के कारण गंभीर हालत में 26 दिसंबर की रात बीके अस्पताल लाई गई अनीता नाम महिला को इमरजेंसी में मौजूद चिकित्सकों ने ठीक से देखे बिना ही सफदरजंग दिल्ली रेफर कर दिया। भाई रोहित के अनुसार ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने अनीता को न तो हाथ लगाया और न ही कोई दवा दी, बात करना भी उचित नहीं समझा बस रेफर कार्ड थमा दिया। हालत बहुत खराब थी सफदरजंग ले जाने में कम से कम एक घंटा लगता इसलिए सोहना रोड स्थित एक निजी अस्पताल लेकर गए, वहां थोड़ी ही देर में अनीता की सांसें थम गईं, यहां मौजूद डॉक्टरों का कहना था कि यदि समय रहते जीवन रक्षक दवाएं मिल जातीं तो महिला की जान बच जाती। रोहित का कहना है कि यदि बीके में चिकित्सक हृदयाघात के मरीज को इमरजेंसी में दी जाने वाली दवाएं दे देते तो शायद उनकी बहन जिंदा होतीं। इसी रात प्रसव पीड़ा से कराहती मनीषा नाम की महिला को परिजन लेकर बीके अस्पताल पहुचे। ड्यूटी पर मौजूद डॉ. निधि ने ब्लड प्रेशर हाई होने की बात कह मनीषा को सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया। मनीषा के साथ आए परिजन अनिल के अनुसार ब्लड प्रेशर सामान्य करने का तो इलाज करना चाहिए था लेकिन वो भी नहीं किया केवल रेफर पर्ची पकड़ा कर मरीज को जबरन बाहर कर दिया गया। मजबूरी में उसे दूसरे अस्पताल ले जाना पड़ा।
सीएम खट्टर प्रदेश में बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएं होने का झूठ आए दिन बोलते रहते हैं लेकिन उनके ही अस्पतालों में इलाज तो दूर मरीजों के मानवाधिकारों तक का हनन किया जा रहा है। डॉक्टर के इलाज देने में लापरवाही के कारण अनीता की जान चली गई और महिला चिकित्सक ने प्रसव पीडि़ता को इलाज दिए बिना अस्पताल से बाहर कर रास्ता दिखा दिया, इसकी जांच कराना भी उचित नहीं समझा गया।
वरिष्ठ समाजसेवी अनीश पाल ने इन दोनों घटनाओं की शिकायत हरियाणा राज्य मानवाधिकार आयोग से की। उनके अनुसार इस पर सख्त क़दम उठाने के बजाय आयोग के डिप्टी रजिस्ट्रार इंद्रजीत कुमार ने डीसी को उनकी शिकायत अग्रेषित कर रिपोर्ट मांगी है। अनीष पाल कहते हैं कि नाकामी व फज़ीहत छिपाने वाली सरकार और उसके जिला प्रशासन से सही रिपोर्ट मिलने की उम्मीद करना बेमानी है। मामले में लीपापोती कर आयोग को गुमराह कर पीडि़त परिवारों को न्याय से वचिंत रखा जाएगा। यह कोई पहली बार नहीं होगा, आयोग को भेजी गई उनकी न जाने कितनी ही शिकायतें लीपापोती के बाद बंद कर दी गई।
अनीष पाल कहते हैं कि इसका कारण आयोग में अध्यक्ष, मेंबर और सचिव की तैनाती नहीं किया जाना है। महीनों से खाली इन पदों पर तैनाती के लिए वह सीएम खट्टर को कई बार पत्र लिख चुके हैँ लेकिन कुछ हुआ नहीं। यदि अध्यक्ष और सदस्यों की तैनाती हो तो प्रत्येक शिकायत की विधिवत सुनवाई हो और कार्रवाई भी लेकिन सरकार जानबूझ कर ऐसा नहीं कर रही है।
आयोग के अध्यक्ष और सदस्य चुनने वाली छह सदस्यीय समिति के अध्यक्ष सीएम खट्टर हैं। आयोग के अध्यक्ष पद के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस को तैनात किया जा सकता है। कार्यकाल समाप्त होने के बाद अध्यक्ष और सदस्य केंद्र या राज्य सरकार में कोई सरकारी पद ग्रहण नहीं कर सकते। वर्तमान में बीसियों रिटायर्ड जज कोई पद पाने के लिए खट्टर की ओर ताक रहे हैं। पद पाने की आस में ये सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश खट्टर और सरकार के भले बने हुए हैं, आने वाले महीनों में कुछ और न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने वाले हैं वो भी कोई न कोई पद पाने के लिए खट्टर की ओर रुख करेंगे। खट्टर ऐसे में किसी एक को आयोग का अध्यक्ष बना कर बाकी को नाराज करने के मूड में नहीं हैं। फिलहाल, चुनावी वर्ष है खट्टर के पास जनता को गिनाने के लिए सरकार की कोई उपलब्धि नहीं हैं, ऐसे में यदि मानवाधिकार आयोग के खाली पद भर दिए गए तो राज्य में मानवाधिकारों की हकीकत जनता के सामने आने लगेगी, चुनावी मौसम में खट्टर ये जोखिम नहीं लेना चाहते।