सफदरजंग अस्पताल में घूसखोरी रैकेट चला रहा है सर्जन डॉ. मनीष रावत

सफदरजंग अस्पताल में घूसखोरी रैकेट चला रहा है सर्जन डॉ. मनीष रावत
December 21 03:22 2022

दिल्ली (मुन्ना प्रसाद) पांच दिसम्बर को उत्तर प्रदेश गांव अवरना जिला मऊ की निवासी शीला देवी ने आरोप लगाया है कि सफदरजंग अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने मुंहमांगा घूस नहीं मिलने पर उनकी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन नहीं किया। शीला रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर से पीडि़त है। गरीबी के चलते प्राइवेट अस्पतालों में अपना ऑपरेशन नहीं करा सकती। इसलिये अपनी बेटी सरिता और बेटे सोनू के साथ दिल्ली आ गई।

शीला ने दिल्ली के अम्बेडकर अस्पताल में दिखाया तो न्यूरो सर्जन ने देखकर अतिशीघ्र ऑपरेशन कराने को कहा। अन्यथा बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है। अम्बेडकर अस्पताल में ऑपरेशन की पर्याप्त सुविधा नहीं होने के कारण डॉक्टर ने चार दिसम्बर को सफदरजंग अस्पताल के लिये रेफर कर दिया था। वहां पांच नवंबर 2022 को सफदरजंग अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड के न्यूरो सर्जरी विभाग में शीला ने दिखाया। वहां पर न्यूरो सर्जन डॉक्टर मनीष रावत ने जांच रिपोर्ट को देखते हुए कहा कि ऑपरेशन करना बहुत जरूरी है।

डॉ. रावत ने आठ नवम्बर को भर्ती करने का पर्चा बनाया और एक कर्मचारी से मिलने को कहा। जिसने 60 हजार रुपये मांगे। शीला द्वारा असमर्थता जताने पर उसने कहा कि आठ नवम्बर को आना फिर बतायेंगे। शीला अपने एक रिश्तेदार उपेन्द्र को साथ लेकर आठ नवम्बर को डॉ. मनीष के पास गई। वहां डॉक्टर से उपेन्द्र मिले तो उसने खुलेआम पैसे देने को कहा। उपेन्द्र द्वारा रसीद की मांग करने पर एक दूसरे डॉक्टर ने भर्ती की तारीख आठ नवम्बर को काटकर 12 बना दिया और कहा कि 12 को आना।

सूचना मिलने पर इस संवाददाता ने ऑनलाइन ही सफदरजंग अस्पताल के विजिलेंस विभाग में इसकी शिकायत की। दो दिन तक जवाब न आने पर विजिलेंस विभाग के कमरा नम्बर 518 में जाकर अधिकारी से बात की तो उसने डॉ. मनीष के पास भेज दिया। पर्चा लेकर उपेन्द्र डॉ. मनीष से मिलने गये तो उन्होंने कहा कि पैसा तो लगेगा ही। पैसा न होने की बात कहने पर फिर डॉक्टर ने भर्ती की तारीख 15 नवम्बर दी। 15 नवम्बर को जाने पर फिर वही बात कभी डॉक्टर तो कभी कर्मचारी 60 हजार मांगने लगे। फिर उपेन्द्र विजिलेंस विभाग के पास गए। 17-18 दिन चक्कर काटने व काफी विनती करने के बाद डॉ. मनीष ने 20 नवम्बर को न्यूरो सर्जरी विभाग में भर्ती तो कर लिया। लेकिन अपने कर्मचारियों से पैसे मांगने का दबाव बनाता रहा। शीला के परिजनों द्वारा इतना विनती करने पर कि मैं बहुत गरीब हूं व मेरे पास पैसा नहीं है, इसके बावजूद भी डॉ. मनीष का दिल नहीं पसीजा और ऑपरेशन नहीं किया।

न्यूरो सर्जरी विभाग में भर्ती तमाम मरीजों ने कहा कि आप कितना भी विनती कर लो या मर भी जाओ तो भी ये डॉक्टर बिना पैसे लिये ऑपरेशन नहीं करेगा। इसके बाद डॉक्टर ने 25 नवम्बर को एक पर्चा बनाकर मेडिकल सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट कमरा नं. 17 में भेजा। वहां पर कर्मचारियों ने बेटे सोनू को बहुत डांटा और पैसे देने को कहा। पैसे न होने के कारण तमाम विनती करने के बावजूद भी डॉक्टर ने ऑपरेशन नहीं किया और मानसिक परेशान करता रहा। वहां अस्पताल में भर्ती तमाम मरीजों ने भी कहा कि हम सब से भी 60 हजार रुपये लिये हैं और डॉक्टर कर्मचारियों के माध्यम से ही छुप-छुप कर पैसा लेता है। पैसा न देने पर कुछ न कुछ बहाना बनाकर टालते रहेगा व परेशान करेगा। डॉ.मनीष ने बिना पैसे लिये ऑपरेशन तो नहीं ही किया और सादे कागज पर हस्ताक्षर कराके दो दिसम्बर को काफी अपमानित करके अस्पताल से भगा दिया।

शीला ने रोते हुए कहा कि बड़े ही आशा और उम्मीद से दिल्ली आये थे कि बीमारी से मुक्त होकर घर जायेंगे। लेकिन डॉ. मनीष के नेतृत्व में घूसखोरी के कारण हम भगवान भरोसे घर जा रहे हैं। हम अपने खर्चे के लिये गांव से 10 हजार रुपये कर्ज लेकर आये थे वो भी दिल्ली में एक महीने रहने पर खर्च हो गया। हम तो डॉक्टर को भगवान समझ रहे थे और मनीष जैसे डॉ. जिन्हें सरकार द्वारा मोटी तनख्वाह भी दी जाती है। फिर आर्थिक रूप से लाचार गरीब मरीजों के प्रति ईमानदार व संवेदनशील नहीं हैं।

शीला ने कहा कि घूसखोरी का रैकेट चलाने वाले डॉ. मनीष रावत की लिखित शिकायत स्पीड पोस्ट द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया, केन्द्रीय सतर्कता आयोग, मेडिकल कॉउंसिल ऑफ इंडिया, सीबीआई निदेशक, मुख्य न्यायाधीश डीवाइ चन्ंद्रचूड़ एवं चिकित्सा अधीक्षक सफदरजंग अस्पताल को भेजा है। शीला ने मांग किया है कि उच्चस्तरीय निष्पक्ष जांच कराकर डॉ. मनीष रावत व घूसखोरी रैकेट में शामिल सभी अधिकारियों, कर्मचारियों के खिला$फ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए। सफदरजंग अस्पताल में घूसखोरी का इतना बड़ा रैकेट चलाना अकेले एक डॉक्टर के बश का तो नहीं हो सकता। शीला की कहानी को सुनने से स्वत: सिद्ध हो जाता है कि नीचे से ऊपर तक तमाम अधिकारी इसमें संलिप्त हैं। और तो और इन अधिकासियों की निगरानी करने वाला विजिलेंस विभाग भी इनमेंं शामिल हो चुका है। सारे मामले की सूचना उक्त तमाम अधिकारियों को दिये जाने के बाद भी कोई कार्रवाई न होने से सिद्ध होता है कि वे सब लोग भी इसमें शामिल हैं।

डा० मनीष के एक काले इतिहास की झलक
डा० मनीष के पास वर्ष 2017 में 81 लाख रूपए की ओडी क्त७ कार होती थी। जिससे इसने चार राहगीर को कुचलकर मार दिया और मौके से फरार हो गया था। खोजबीन करके जब पुलिस ने इसे पकड़ा तो इसका जवाब था कि वह गाड़ी में मौजूद जरूर था लेकिन गाड़ी ड्राईवर चला रहा था। आउटलुक पत्रिका के संवाददाता ने जब इसके सहकर्मियों व अन्य स्टॉफ से बातचीत की तो पता लगा कि इसके पास कोई ड्राईवर नहीं है यह खुद ही हमेशा गाड़ी चलाता है।

इतनी महंगी गाड़ी को लेकर सवाल पैदा हुआ की डॉक्टर मनीष के ऐसे कौन से साधन है जिनके द्वारा इसने इतनी महंगी कार खरीद ली? इस बाबत पत्रिका का संवाददाता अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के पास पहुंचा तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस बाबत कोई सूचना नहीं दी गयी है। नियमानुसार किसी भी सरकारी कर्मचारी को कोई भी संपत्ति खरीदने से पहले अपने विभाग को इसकी सूचना देनी होती है। सूचना पाने पर विभाग उसके आय के स्त्रोतों की जांच भी करता है। लेकिन डॉ. मनीष ने इस तरह की सूचना देने की कोई आवश्यकता कभी नहीं समझी।

चार लोगों के मारे जाने के बाद केस को किस तरह से रफा-दफा कर दिया गया तो इसकी तो कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी लेकिन यह तो स्पष्ट है कि मनीष न तो आय से अधिक संपत्ति के जुर्म में तथा चार आदमियों को मारने के जुर्म में कभी जेल नहीं गया और लूट का कार्यक्रम बदस्तूर जारी रखे हुए हैं। जाहिर है कि उच्चाधिकारियों एवं राजनेताओं के संरक्षण में डा. मनीष का यह सब कारोबार बेखौफ चल रहा है।

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Mazdoor Morcha
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