संस्थान की उपलब्धियों को डीन का पागलपन समझता है मुख्यालय

संस्थान की उपलब्धियों को डीन का पागलपन समझता है मुख्यालय
June 13 04:49 2023

एसआई कारपोरेशन मुख्यालय में बैठे जीडीएमओ गिरोह की मूल धारणा यही रही है कि वसूली तो मजदूरों से जितनी हो सके करो लेकिन उसके बदले जब उन्हें कुछ देने की बात आए तो आंय-बांय-शांय करके निकल जाओ, मेडिकल कॉलेज अस्पताल बनने से पहले ऐसा ही कुछ यहां चल रहा था, केवल यहीं नहीं लगभग पूरे देश में कारपोरेशन का यही ड्रामा आज भी चल रहा है।

इस गिरोह से जाने अनजाने एक बड़ी गलती यह हो गई कि डॉक्टर असीम दास जैसे जुनूनी शख़्स को यहां डीन बना कर बैठा दिया, उनको काम करने से रोके रखने अथवा उनकी लगाम कस कर रखने के लिए गिरोह ने अपने एजेंट के तौर पर एमएस (चिकित्सा अधीक्षक) का पद अपने हाथ में रखा था। तमाम वित्तीय शक्तियां उसी के पास रहती थीं। जाहिर है ऐसे में डीन सदैव कुछ भी कर पाने में अपने को असमर्थ समझता था। लेकिन हतोत्साहित होने की अपेक्षा डॉ. असीम दास ने अपनी कर्मठता एवं कार्य कुशलता के बल पर न केवल तमाम वित्तीय शक्तियां बतौर डीन अपने हाथ में ले लीं बल्कि एमएस का पद भी इस गिरोह के शिकंजे से निकाल लिया, अब वरिष्ठ प्रोफेसर ही एमएस के पद पर तैनात होता है।

जीडीएमओ गिरोह पैसा बचाने के लिए सदैव रेफरल रोकने की बात तो करता है परंतु चिकित्सा सुविधाओं को बढ़ाने एवं उन्नत करने के लिए होने वाले खर्च पर भी रोक लगाए रखने का भरसक प्रयास करता है। उनकी धारणा यह रहती है कि चिकित्सा सेवाओं का विस्तार करने की क्या ज़रूरत है। जिस तरह से पहले मज़दूरों को आंय-बांय-शांय करके निपटाया जाता था वैसे अब भी निपटाया जा सकता है लेकिन डॉ. असीम दास को यह स्वीकार नहीं। वे बेहतर से बेहतरीन चिकित्सा सेवा उन मज़दूरोंं को देना चाहते हैं जिनके वेतन से कॉरपोरेशन के कोष में लगातार वृद्धि होती जा रही है। मुख्यालय की पैसा खर्च न करने की नीति के चलते 31 मार्च 2022 को कॉरपोरेशन के कोष में 1 लाख 45 हजार करोड़ रुपये इकट्ठा हो चुके थे जो आज 1 लाख 55 हजार करोड़ से अधिक हो सकते हैं। जाहिर है कोष में यह वृद्धि मज़दूरों को वांछित चिकित्सा सेवांए प्रदान न करने की वजह से ही हो रही है।

नि:संदेह यहां की चिकित्सा सेवाओं मेें आश्चर्यजनक प्रगति के चलते रेफरल बिल में बड़ी भारी कमी आई है। यहां की उन्नत सेवाओं का लाभ न केवल फरीदाबाद बल्कि पूरे एनसीआर व दूरदराज के मरीज भी उठाकर लाभान्वित हो रहे हैं। इसके बावजूद भी मुख्यालय डॉ. दास को विफल करने के भरसक प्रयास में जुटा है। डायलिसिस, बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन और कैथ लैब आदि की अति विशिष्ट सेवाओं को चलाने के लिए मुख्यालय ने न तो कोई टेक्नीशियन और न ही कोई पैरा मेडिकल स्टाफ के पद स्वीकृत किए हैं। जाहिर है इसका असर सेकेंडरी चिकित्सा सेवा पर पड़ रहा है। कुल मिलाकर संस्थान आज पैरा मेडिकल स्टाफ की भयंकर कमी से जूझ रहा है और मुख्यालय में बैठे निठल्ले अधिकारी मात्र तमाशबीन बने तमाशा देख रहे हैं।

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Mazdoor Morcha
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